नई दिल्ली:
दशकों की कड़ी मेहनत के बाद पूरी तरह भारत में निर्मित हल्का लड़ाकू विमान 'तेजस' भारतीय वायुसेना का हिस्सा बनने जा रहा है. 83 तेजस अब वायुसेना के बेड़े में शामिल हो रहे हैं. यह भी पहली बार हुआ कि किसी पत्रकार को तेजस में उड़ान भरने का मौका मिला हो. वो पत्रकार हैं एनडीटीवी के पत्रकार विष्णु सोम. सोम ने ये खास उड़ान बेंगलुरू में चल रहे 'एयरो इंडिया शो' के दौरान भरी.
इस पर प्रतिक्रिया देते हुए विष्णु सोम ने कहा, "पिछले तकरीबन 20 वर्षों से मैं दुनियाभर में लड़ाकू विमानों के पीछे भागता रहा हूं लेकिन एक लड़ाकू विमान ऐसा था जिसमें उड़ने की चाहत हमेशा बनी रही, लेकिन आज ये पूरी हो गई. यह ऐसा सम्मान जो पहली बार किसी पत्रकार को हासिल हुआ. कुछ अनुभवी पायलटों के साथ विमान में मैंने उड़ान भरी. विमान की कमान ग्रुप कैप्टन राजीव जोशी के हाथ में थी.
अपने अनुभव को बयां करते हुए सोम ने बताया, "11 बजकर 45 मिनट हम बेंगलुरु के बाहरी इलाके में दूर तक फैले येलहांका एयर बेस पर विमान की तरफ बढ़े. विमान जब हवा में था हमने कलाबाज़ी खाईं. इस दौरान जिस्म गुरुत्वाकर्षण की 5.6 गुना ताकत महसूस करता है. ये वज़न पूरे जिस्म पर बराबर बंटा हुआ महसूस होता है. तकरीबन एक घंटे की उड़ान के बाद हम लोग येलहांका के रनवे की तरफ बढ़े और ज़मीन को छू लिया."
तेजस छोटा, फुर्तीला और बेशक अनोखा तेजस हल्का लड़ाकू विमान है. दुनिया के बड़े-बड़े विमान निर्माताओं से होड़ लेने की दिशा में भारत की यह एक कोशिश है. तकरीबन 30 साल के बाद ये संभव हो सका है. बेंगलुरु और मैसूर के बीच उड़ान के दौरान मैंने इसका सिस्टम, इसका कॉकपिट और इसकी चुस्ती-फ़ुर्ती देखी.
इतनी देरी के लिए जिस तेजस प्रोजेक्ट की लगातार आलोचना होती रही वो अब एक मुकाम पर पहुंच चुका है. एयर फोर्स ने 83 लड़ाकू विमानों का ऑर्डर दिया है. एयर फोर्स में तेजस लड़ाकू विमानों का पहला स्क्वाड्रन तैयार है. लेकिन अभी बहुत दूर जाना बाकी है. पिछले ही महीने नेवी चीफ ने कहा था कि नेवी के लिए इस लड़ाकू विमान का प्रोटोटाइप फिट नहीं है. जेट के निर्माताओं का कहना है कि एलसीए-नेवी मार्क 2 को सरकार पूरी मंज़ूरी है और ये नेवी की ज़रूरतों को पूरा करेगा लेकिन इसमें समय लगेगा.
तेजस के मामले में कुछ वैसा ही है कि ग्लास आधा खाली है या आधा भरा, ये आपके नज़रिए पर है. एक तरफ देश के इंजीनियरों ने शानदार टेक्नोलॉजी , डिजिटल फ़्लाइट कम्प्यूटर, कार्बन कंपोज़िट स्ट्रक्चर, आधुनिकतम कॉकपिट सरीखे कई सिस्टम तैयार कर एक बड़ी क़ामयाबी हासिल की है. हालांकि अभी भी एक अहम हिस्सा विदेशी है. मिसाल के तौर पर इसके इंजन, राडार और वेपन सिस्टम. लेकिन ऐसा सिर्फ तेजस के साथ ही नहीं है. पश्चिमी देशों के कई बड़े निर्माता भी विदेशों से ऐसे सिस्टम आयात करते हैं जो उनके पास नहीं होता. सबसे अहम है एकीकरण और यहीं पर टीम तेजस ने शानदार काम किया है.
तेजस को दरअसल पुराने मिग -21 की जगह लेने के लिये तैयार किया गया है लेकिन अब ये एक आधुनिक लड़ाकू विमान बन चुका है. लेकिन उन लड़ाकू विमानों से पीछे है जो आजकल बन रहे हैं. वो इसलिए क्योंकि इसका डिज़ाइन नब्बे के दशक का है. तो फिर तेजस के चुनाव का आधार क्या है. बेशक ये विमान कोई नई कहानी नहीं लिखेगा लेकिन साथ ही तेजस का विकास लड़ाकू विमान बनाने की भारत की क्षमताओं को लेकर एक अहम कदम है. इसरोके रॉकेटों की तरह तेजस भी इस बात की मिसाल है कि हमारे अपने इंजीनियर क्या नहीं कर सकते हैं.
इस पर प्रतिक्रिया देते हुए विष्णु सोम ने कहा, "पिछले तकरीबन 20 वर्षों से मैं दुनियाभर में लड़ाकू विमानों के पीछे भागता रहा हूं लेकिन एक लड़ाकू विमान ऐसा था जिसमें उड़ने की चाहत हमेशा बनी रही, लेकिन आज ये पूरी हो गई. यह ऐसा सम्मान जो पहली बार किसी पत्रकार को हासिल हुआ. कुछ अनुभवी पायलटों के साथ विमान में मैंने उड़ान भरी. विमान की कमान ग्रुप कैप्टन राजीव जोशी के हाथ में थी.
अपने अनुभव को बयां करते हुए सोम ने बताया, "11 बजकर 45 मिनट हम बेंगलुरु के बाहरी इलाके में दूर तक फैले येलहांका एयर बेस पर विमान की तरफ बढ़े. विमान जब हवा में था हमने कलाबाज़ी खाईं. इस दौरान जिस्म गुरुत्वाकर्षण की 5.6 गुना ताकत महसूस करता है. ये वज़न पूरे जिस्म पर बराबर बंटा हुआ महसूस होता है. तकरीबन एक घंटे की उड़ान के बाद हम लोग येलहांका के रनवे की तरफ बढ़े और ज़मीन को छू लिया."
तेजस छोटा, फुर्तीला और बेशक अनोखा तेजस हल्का लड़ाकू विमान है. दुनिया के बड़े-बड़े विमान निर्माताओं से होड़ लेने की दिशा में भारत की यह एक कोशिश है. तकरीबन 30 साल के बाद ये संभव हो सका है. बेंगलुरु और मैसूर के बीच उड़ान के दौरान मैंने इसका सिस्टम, इसका कॉकपिट और इसकी चुस्ती-फ़ुर्ती देखी.
इतनी देरी के लिए जिस तेजस प्रोजेक्ट की लगातार आलोचना होती रही वो अब एक मुकाम पर पहुंच चुका है. एयर फोर्स ने 83 लड़ाकू विमानों का ऑर्डर दिया है. एयर फोर्स में तेजस लड़ाकू विमानों का पहला स्क्वाड्रन तैयार है. लेकिन अभी बहुत दूर जाना बाकी है. पिछले ही महीने नेवी चीफ ने कहा था कि नेवी के लिए इस लड़ाकू विमान का प्रोटोटाइप फिट नहीं है. जेट के निर्माताओं का कहना है कि एलसीए-नेवी मार्क 2 को सरकार पूरी मंज़ूरी है और ये नेवी की ज़रूरतों को पूरा करेगा लेकिन इसमें समय लगेगा.
तेजस के मामले में कुछ वैसा ही है कि ग्लास आधा खाली है या आधा भरा, ये आपके नज़रिए पर है. एक तरफ देश के इंजीनियरों ने शानदार टेक्नोलॉजी , डिजिटल फ़्लाइट कम्प्यूटर, कार्बन कंपोज़िट स्ट्रक्चर, आधुनिकतम कॉकपिट सरीखे कई सिस्टम तैयार कर एक बड़ी क़ामयाबी हासिल की है. हालांकि अभी भी एक अहम हिस्सा विदेशी है. मिसाल के तौर पर इसके इंजन, राडार और वेपन सिस्टम. लेकिन ऐसा सिर्फ तेजस के साथ ही नहीं है. पश्चिमी देशों के कई बड़े निर्माता भी विदेशों से ऐसे सिस्टम आयात करते हैं जो उनके पास नहीं होता. सबसे अहम है एकीकरण और यहीं पर टीम तेजस ने शानदार काम किया है.
तेजस को दरअसल पुराने मिग -21 की जगह लेने के लिये तैयार किया गया है लेकिन अब ये एक आधुनिक लड़ाकू विमान बन चुका है. लेकिन उन लड़ाकू विमानों से पीछे है जो आजकल बन रहे हैं. वो इसलिए क्योंकि इसका डिज़ाइन नब्बे के दशक का है. तो फिर तेजस के चुनाव का आधार क्या है. बेशक ये विमान कोई नई कहानी नहीं लिखेगा लेकिन साथ ही तेजस का विकास लड़ाकू विमान बनाने की भारत की क्षमताओं को लेकर एक अहम कदम है. इसरोके रॉकेटों की तरह तेजस भी इस बात की मिसाल है कि हमारे अपने इंजीनियर क्या नहीं कर सकते हैं.
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