किसान नेताओं (Farmer Leaders) ने भले ही कृषि कानूनों पर सरकार से वार्ता का प्रस्ताव दिया है, लेकिन केंद्र ने संकेत दिए हैं कि किसान संगठनों को सिर्फ इन कानूनों को रद्द करने से इतर कानूनी बिंदुओं पर बात करनी चाहिए, तभी बात आगे बढ़ सकती है.नीति आयोग के सदस्य रमेश चंद ( NITI Aayog member Ramesh Chand) ने कहा है कि किसानों को सरकार के साथ बातचीत फिर से शुरू करने के लिये कृषि कानूनों (Farm Laws) को एकदम से निरस्त करने की मांग के बजाए खामियों को स्पष्ट रूप से बताने के बारे में ‘कुछ संकेत' देने चाहिए.
कृषि कानूनों के खिलाफ कुछ किसान संगठनों के विरोध प्रदर्शन जारी रहने के बीच उन्होंने यह बात कही. भारतीय किसान संघ के नेता राकेश टिकैत ने 29 अप्रैल को कहा था कि जब भी सरकार चाहे, किसान संगठन केंद्र के साथ तीनों विवादास्पद कृषि कानूनों पर चर्चा के लिए तैयार हैं. लेकिन उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि चर्चा कानून को रद्द करने के बारे में होनी चाहिए.
नीति आयोग के सदस्य (कृषि) चंद ने कहा कि राकेश टिकैत का बयान स्वागतयोग्य है, लेकिन जब तक वे उन तीन कृषि कानूनों को निरस्त करने की मांग पर कायम रहते हैं, तब किस तरह की बात हो सकती है. सरकार तीन कृषि कानूनों के हर प्रावधान पर चर्चा करने को तैयार है. किसान संगठनों की ओर से कुछ संकेत होने चाहिए कि वे सभी मामलों पर चर्चा करने के लिए तैयार हैं और वे इन कानूनों की कमियों की ओर इशारा करने के लिए तैयार हैं. सरकार ने उनसे पहले ही कहा है कि इन कानूनों में क्या कुछ गलत है उसे सामने रखा जाए.
अगर कोई दो चीजें गलत हैं, तो हमें बताएं, अगर ऐसी पांच चीजें हैं जिन्हें आप स्वीकार नहीं करते हैं, हमें बताइए. इन कृषि कानूनों को सितंबर 2020 में लागू किया गया था. इन तीनों कृषि कानूनों को केंद्र ने कृषि क्षेत्र में प्रमुख सुधारों के रूप में पेश किया है जिससे बिचौलियों का खात्मा होगा और किसानों को देश में कहीं भी अपनी उपज बेचने की अनुमति होगी.
चंद के अनुसार, उन्हें लगता है कि अगर किसान संगठन यह संकेत देते हैं कि हम इन कृषि कानूनों पर चर्चा करने को तैयार हैं. सरकार ने आखिरी बार 22 जनवरी को किसान नेताओं के साथ बातचीत की थी. दिल्ली में किसानों द्वारा 26 जनवरी की ट्रैक्टर परेड के हिंसक हो जाने के बाद दोनों पक्षों के बीच बातचीत रुक गई थी.
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