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This Article is From Apr 16, 2015

बेहाल किसानों की मांग - नहीं चाहिए मुआवज़ा, कर्ज़ माफ करो

बेहाल किसानों की मांग - नहीं चाहिए मुआवज़ा, कर्ज़ माफ करो

हापुड़ : उत्तर प्रदेश में भारी बारिश और ओले गिरने से हुई तबाही का दायरा लगातार बढ़ता जा रहा है। मुश्किल ये है कि लाखों किसान इस प्राकृतिक आपदा से प्रभावित हुए हैं लेकिन उनके हुए नुकसान की भरपाई के लिए प्रशासन की तरफ से अधिकतर इलाकों में पहल अभी शुरू नहीं हुई है।

यशवीर सिंह का परिवार हापुड़ ज़िले के सीतादेई गांव में खेती कर गुज़र बसर करता है। इस बार बारिश और ओलों ने ऐसा कहर मचाया है कि उनकी गेहूं की फसल 50 फीसदी से ज्यादा बर्बाद हो गई है। एनडीटीवी की टीम जब यशवीर सिंह के खेत पर पहुंची, तो वहां तबाही का मंज़र साफ़ दिखाई दे रहा था। उनकी खेत में उगा आधा से ज़्यादा गेहूं इतना खराब हो चुका है कि वो अब खाने लायक नहीं रहा।

यशवीर ने 15 बीघे में गेहूं की फसल बोने के लिए किसान क्रेडिट कार्ड की मदद से 2.50 लाख रुपये का लोन लिया था, लेकिन बेमौसम बारिश ने किश्त चुकाने के लायक नहीं छोड़ा।

यशवीर सिंह ने एनडीटीवी से कहा, "बैंक से नोटिस आ रहे हैं कि कर्ज वापस किया जाए। अब मुझे या तो ज़मीन बेचनी पड़ेगी या जो पशु हैं उन्हें बेचना पड़ेगा, ताकि बैंक का कर्ज वापस कर सकूं।"

यशवीर सिंह कहते हैं कि नुकसान काफी ज़्यादा है, इसलिए कर्ज़ माफ होना चाहिये, मुआवज़े से कोई फायदा नहीं होगा। वह कहते हैं, "हमें सरकार से चेक के ज़रिये कोई मदद नहीं चाहिए। हमने जो कर्ज लिया है, उसे माफ किया जाए।"

बदहाल किसानों की मुश्किल ये है कि फसल बर्बाद होने के बाद भी बहुत सारा खर्चा बाकी है। गेहूं किसान कमल सिंह की फसल तो 90 फीसदी तक तबाह हो चुकी है। एनडीटीवी की टीम जब उनके खेत पर पहुंची तो पाया कि उनके खेत में नुकसान काफी ज्यादा है। कमल सिंह कहते हैं, "पैसा खर्च करना पड़ेगा खराब फसल हटाने के लिए...मज़दूर नहीं मिल रहे हैं...अब तो अगली फसल की तैयारी करनी पड़ेगी..."

सीतादेई गांव में हमें रामपाल सिंह मिले, जो सीतादेई गांव से 2 किलोमीटर दूर ददारा गांव में रहते हैं। जब हम उनके खेत पर पहुंचे, तो वहां भी नज़ारा सीतादेई गांव जैसा ही था। रामपाल सिंह कहते हैं, "अब बच्चों की फीस नहीं जमा हो पा रही है। पिछले साल के गन्ने के पैसे भी अभी तक नहीं मिले हैं।"

हापुड़ ज़िले में इस बार बारिश ने मटर के किसानों पर भी ऐसा केहर बरपाया है कि उनके पास अब कुछ भी नहीं बचा है। हापुड़ के सीतादेई गांव के ओमवीर सिंह ने 7.5 बीघे में मटर की फसल बोई थी। जब हम उनके खेत पर पहुंचे, तो हैरान रह गए। खेतों में मटर की फसल के नामोनिशान भी नहीं बचे थे, सब कुछ बर्बाद हो चुका था और चारों तरफ जंगली घास उग आई थी। ओमवीर सिंह कहते हैं, अब मटर की फसल तबाह होने के बाद एक रुपये भी कमाई नहीं हो पाएगी। उल्टे खेत की सफाई में और पैसे भी खर्च करने पड़ेंगे।

दो महीने हो चुके हैं। प्रशासन की तरफ से किसानों को हुए नुकसान का जायज़ा लेने अभी तक कोई नहीं आया। ओमवीर सिंह ने मटर बोने के लिए 30,000 का कर्ज़ लिया था। लेकिन बर्बाद फसल के लिए अगर मुआवज़ा मिला भी तो सिर्फ 8,000 रुपये हाथ में आएंगे, जिससे नुकसान की भरपाई नहीं हो सकेगी।

ओमवीर सिंह ने एनडीटीवी से कहा, "या तो हमारे बिजली बिल माफ कर दिए जाएं या हमारा कर्ज़ माफ कर दिया जाए। कहां से देंगे हम बिजली के बिल?"

हापुड़ के सीतादेई गांव में ओमवीर सिंह अकेले नहीं हैं जिनका काफी कुछ बर्बाद हो चुका है। यहां बदहाल किसानों की सूची काफी लंबी है। इनको नुकसान इतना ज़्यादा हुआ है कि परिवार चलाना मुश्किल होता जा रहा है।

दरअसल हापुड़ के इस गांव में किसी किसान को अभी तक कोई मुआवज़ा नहीं मिला है, लेकिन उनकी असल चिंता मुआवज़ा नहीं, क़र्ज़ है। उनकी मांग है कि उनका क़र्ज़ माफ़ किया जाए। ये किसान चाहते हैं कि सरकार मुआवज़े देने की जगह उनकी कर्ज़ माफी के लिए जल्दी पहल करे।

चाहे वो गेहूं के किसान हों या मटर के, हापुड़ के किसानों का दावा है कि उनके नुकसान का दायरा इतना बड़ा है कि जो मुआवज़े की राशि यूपी सरकार ने तय की है, वो उनको हुए नुकसान की भरपाई के लिए नाकाफी है। उनकी मांग है कि सरकार को उनके कर्ज़ और बिजली बिल माफ करने की तैयारी जल्दी शुरू करनी चाहिए।

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