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This Article is From Apr 13, 2023

Explainer: जानें क्या है 2024 लोकसभा चुनाव के लिए JDU का OSOC फार्मूला?

क्या विपक्षी तीसरी बार केंद्र में मोदी सरकार बनने से रोक पाएंगे? इसे लेकर सियासी कवायद तेज हो गई है.

Explainer: जानें क्या है 2024 लोकसभा चुनाव के लिए JDU का OSOC फार्मूला?
नीतीश कुमार ने तेजस्वी यादव के साथ बुधवार को मल्लिकार्जुन खरगे और राहुल गांधी से मुलाकात की.
नई दिल्ली:

बीजेपी से मुकाबले के लिए विपक्षी दलों में एकता की कोशिश की जा रही है.बिहार के मुख्यमंत्री और जनता दल यूनाईटेड जनता दल के नेता नीतीश कुमार ने बुधवार को उप मुख्यमंत्री और राष्ट्रीय जनता दल के नेता तेजस्वी यादव के साथ कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और राहुल गांधी समेत कांग्रेस के अन्य नेताओं से मुलाकात की. खरगे के घर पर हुई एक बैठक में नीतीश कुमार ने वन सीट वन कैंडिडेट का फार्मूला सामने रखा. यह फार्मूला बीजेपी के नेतृत्व वाले सत्तारूढ़ एनडीए से मुकाबला करने के लिए लाया गया है.  

साल 2024 के चुनाव में क्या विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी की चुनौती से निपट पाएंगे? क्या विपक्षी तीसरी बार केंद्र में मोदी सरकार बनने से रोक पाएंगे? इसे लेकर सियासी कवायद तेज हो गई है. बीजेपी ने जहां 2024 में फिर मोदी सरकार बनाने के लिए कमर कस ली है वहीं विपक्ष भी तिनका-तिनका जोड़कर मुकाबला करने की तैयारी करने लगा है. इसी जद्दोजहद में अब जेडीयू भी जुट गई है. 

जेडीयू के वरिष्ठ नेता केसी त्यागी ने राय दी है कि मोदी की चुनौती से निपटने के लिए विपक्ष वन सीट वन कैंडिडेट (OSOC), यानी कि एक विपक्ष एक सीट, एक सीट पर एक उम्मीदवार के फार्मूले पर काम करना शुरू कर दे. यह नीतीश कुमार का फार्मूला है. इसका मतलब यह है कि सभी विपक्षी दल एक संयुक्त विपक्ष के रूप में चुनाव मैदान में उतरें और लोकसभा की सीटों पर विपक्ष के एक-एक उम्मीदवार ही उतरें. यानी कि बीजेपी या उसके गठबंधन वाले दलों के सामने विपक्ष का सिर्फ एक उम्मीदवार हो. 

इस फार्मूले के पीछे रणनीति यह है कि यदि विपक्षी दल आपस में लड़ते हैं, यानी बीजेपी के सामने कई दलों के प्रत्याशी आते हैं तो वे आपस में एक-दूसरे के वोट काटते हैं. इसका फायदा बीजेपी उठा लेती है और वह कम मत प्रतिशत के बावजूद जीत जाती है. जब संयुक्त विपक्ष की ओर से एक सीट पर एक ही उम्मीदवार होगा तो वोटों का गणित बदल जाएगा. दावा किया जा रहा है कि इससे बीजेपी और एनडीए को परास्त करना संभव हो सकता है.

सन 1977 और 1989 में भी इसी फार्मूले के तहत संयुक्त विपक्ष ने चुनाव में सफलता हासिल की थी. हालांकि इसके बाद गठित सरकारें अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सकी थीं और जल्द ही गिर गई थीं. 

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