डॉक्टर जी.एस. ग्रेवाल से बात करते एनडीटीवी के संवाददाता श्रीनिवासन जैन
लुधियाना:
कल्पना कीजिए कि आप बीमार हैं और आपका इलाज ऐसे डॉक्टर कर रहे हैं जो उस काबिल नहीं हैं, क्योंकि उन लोगों ने ऐसे कॉलेज से पढ़ाई की है जहां केवल लाइसेंस पाने के लिए निजी प्रैक्टिस करने वाले डॉक्टरों को 2-3 दिन के लिए फैकल्टी के रूप में नियुक्त किया जाता है। ऐसे लोगों को 'घोस्ट' डॉक्टर कहा जाता है।
पूरे भारत में फैली इस तरह की प्रवृत्ति को उजागर किया पंजाब मेडिकल काउंसिल के अध्यक्ष डॉ. जी.एस ग्रेवाल ने और एनडीटीवी ने अपने शो 'ट्रूथ वर्सेस हाईप' के जरिए इसकी पूरी जांच पड़ताल की।
जिस दिन हमारे कार्यक्रम का प्रसारण हुआ उसी दिन पंजाब सरकार ने डॉ. ग्रेवाल को बर्खास्त कर दिया। लेकिन व्हिसलब्लोअर को हटा देने से कड़वी सच्चाई खत्म नहीं हो जाती।
मेडिकल कॉलेजों को लाइसेंस प्रदान करने वाले मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के दिशानिर्देशों के अनुसार किसी भी मेडिकल कॉलेज के संचालन के लिए उसके पास तय संख्या में फैकल्टी, मरीज, उपकरण और इंफ्रास्ट्रक्चर होना जरूरी है।
5 साल के एमबीबीएस प्रोग्राम में प्रति बैच 150 छात्रों का दाखिला लेने वाले किसी भी कॉलेज के पास फैकल्टी के रूप में 110 पूर्णकालिक डॉक्टर और करीब 900 मरीज होने चाहिए। और किसी भी समय दोनों की 80-90 फीसदी उपस्थिति भी होनी चाहिए। लेकिन पंजाब मेडिकल काउंसिल की जांच में पता चला कि कॉलेज बड़ी आसानी से जांच के दिन बाहर से डॉक्टरों को लाकर सिस्टम को धता बता रहे हैं। टीचरों के डिक्लरेशन फॉर्म, जो एमसीआई के पास जमा किए जाते हैं, उसके मुताबिक पिछली जांच से ठीक पहले तक इन टीचरों ने दिखाया है कि वे पूर्णकालिक स्टाफ हैं। 1 जनवरी, 2015 को एमसीआई के डॉक्टरों द्वारा जांच में इन टीचरों ने अपने घर के पते के रूप में कैम्पस को ही दर्शाया है। लेकिन हकीकत में ये सैकड़ों किलोमीटर दूर प्राइवेट प्रैक्टिस कर रहे हैं। डॉ ग्रेवाल ने लुधियाना में एनडीटीवी से कहा, एक को जनरल मेडिसिन डिपार्टमेंट में बताया गया है, जबकि उसका एक हेयर ट्रांसप्लांट क्लीनिक और एक ब्यूटी क्लीनिक है। दूसरा एक सीनियर सर्जन है, जो एक हार्ट सेंटर चला रहा है। तीसरा अल्टरनेट मेडिसिन की प्रैक्टिस कर रहा है।
डॉ ग्रेवाल का दावा है कि अगर इन्हें हेलीकॉप्टर से न लाया और ले जाया जाता हो, तो ऐसा हरगिज संभव नहीं है कि ये प्राइवेट प्रैक्टिस भी करें और फुल टाइम पढ़ाते भी हों। ऐसा एक उदाहरण डॉ कुलवंत सिंह का है, जिन्हें सोलन में साल 2013 से 2015 तक एमएम मेडिकल कॉलेज के फैकल्टी मेंबर के रूप में दिखाया गया। लेकिन वह वहां से करीब 150 किलोमीटर दूर लुधियाना में एक हार्ट सेंटर चलाते हुए पाए गए। ग्रेवाल के आरोपों की सच्चाई जानने के वास्ते हम मरीज बनकर डॉ कुलवंत सिंह से दिखाने गए। उसके बाद हम एक टीवी इंटरव्यू के लिए उनसे मिलना चाहे, जिससे उन्होंने मना कर दिया। डॉ सिंह ने हमें बताया कि उन्होंने सोलन के कॉलेज में पढ़ाया था, लेकिन जनवरी, 2015 में उन्होंने इस्तीफा दे दिया था, ठीक उसी महीने जिस महीने जांच हुई थी।
हालांकि जब हमने सोलन के कॉलेज का दौरा किया, तो खुफिया कैमरे पर एक डॉक्टर ने बताया कि डॉ सिंह सिर्फ जांच के वक्त आते हैं। वह हमारे वेतनमान पर हैं, लेकिन फिलहाल यहां नहीं हैं। ये प्राइवेट मेडिकल कॉलेज प्राइवेट डॉक्टरों को रखते हैं और उन्हें जांच के वक्त ही बुलाया जाता है। चूंकि अब नियम थोड़े कड़े हो गए हैं, इसलिए अब डॉक्टर नहीं आ रहे हैं।
एनडीटीवी को मिले डॉ. सिंह के टैक्स रिटर्न दिखाते हैं कि एक तरफ जहां वह कॉलेज से 50 हजार रुपये महीने की तनख्वाह ले रहे थे, वहीं थर्ड पार्टी इंश्योरेंस कंपनी से भी पेमेंट ले रहे थे, जो इस बात का संकेत है कि उनका क्लीनिक चल रहा था। डॉ. सिंह का मामला इसलिए भी हैरान करने वाला है क्योंकि वह पंजाब मेडिकल काउंसिल (पीएमसी) की एथिक्स कमेटी के अध्यक्ष हैं। पीएमसी के एक अन्य वरिष्ठ सदस्य डॉ अरुण मित्रा कहते हैं कि यह वाकई दुखद है। मेडिकल काउंसिल के सदस्यों को कानून की जानकारी होनी चाहिए, वास्तव में वे इसके संरक्षक भी हैं। और अगर वे ऐसे मामलों में संलिप्त हैं, तो मुझे लगता है कि यह एक बड़ा अपराध है।
'घोस्ट' डॉक्टरों की संख्या को लेकर एक और कॉलेज जो काउंसिल के निशाने पर है वो है जालंधर का पंजाब इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेस (पीआईएमएस)। डॉक्टर बी.एस. भाटिया को कॉलेज ने साल 2014-15 के लिए एसोसिएट प्रोफेसर ऑफ सर्जरी दिखाया है, जबकि जालंधर से करीब 50 किलोमीटर दूर कदियां शहर में वह अपना निजी अस्पताल भी चला रहे हैं। वह पंजाब मेडिकल काउंसिल के सदस्य भी हैं।
पीआईएमएस के सर्जरी डिपार्टमेंट में किसी ने भी डॉक्टर भाटिया के बारे में सुना तक नहीं। फोन करने पर डॉक्टर भाटिया ने कहा, उन्होंने पिछली जांच के तुरंत बाद इस्तीफा दे दिया था।
दो और फैकल्टी मेंबरों - डॉ. संजीव महाजन (ऑर्थोपेडिसियन) और डॉ. वनीत कौर (गायनिकोलॉजिस्ट) ने भी यही बात कही। दोनों ही लुधियाना के फोर्टिस हॉस्पिटल में डॉक्टर हैं। कॉलेज के गायनिकोलॉजी डिपार्टमेंट ने माना कि डॉ. कौर केवल जांच के समय ही आईं थी। रिसेप्शनिस्ट ने बताया कि डॉ. कौर ने अभी तक ज्वाइन नहीं किया है। वह केवल जांच के समय ही एक-दो बार आती हैं।
लेकिन पीआईएमएस के डॉक्टर कंवलजीत सिंह ने बताया कि ये डॉक्टर 'घोस्ट' फैकल्टी नहीं है और कॉलेज में पढ़ाते भी हैं, लेकिन करीब सालभर पहले जब ये पता चला कि वो कॉलेज के अलावा वो निजी प्रैक्टिस भी करते हैं, तब उन्हें हटा दिया गया।
इन डॉक्टरों के टैक्स रिटर्न के अनुसार केवल 3-4 दिनों तक कॉलेज में आने के बदले इन्हें 6-12 लाख रुपये तक का भुगतान किया जाता है। यह बताने की जरूरत नहीं है कि कॉलेज कैसे इतनी बड़ी रकम इन्हें देते हैं। मेडिकल की पढ़ाई महंगी बनी हुई है, छात्र 5 साल के एमबीबीएस कोर्स के लिए 13 से 40 लाख रुपये तक खर्च करते हैं। स्पष्ट है कि ऐसे दागी कॉलेजों की वजह से छात्रों को उनके द्वारा खर्च किए जा रहे पैसों का सही मोल नहीं मिल पा रहा।
जब डॉक्टर ग्रेवाल ने जब ऐसे भ्रष्ट डॉक्टरों को दंडित करना चाहा तो पंजाब के मेडिकल एजुकेशन मंत्री अनिल जोशी ने पंजाब मेडिकल काउंसिल की बैठक को तकनीकी कारणों का हवाला देते हुए रद्द कर दिया।
शनिवार की सुबह मंत्री जी ने डॉ. ग्रेवाल को बर्खास्त करने का आदेश जारी कर दिया। हालांकि टिप्पणी के लिए वो खुद उपलब्ध नहीं थे।
तो इस तरह सरकार ने वैसे तो त्वरित कार्रवाई की लेकिन कदाचार में लिप्त लोगों के खिलाफ नहीं बल्कि उनके खिलाफ जो इसे उजागर कर रहे हैं।
पूरे भारत में फैली इस तरह की प्रवृत्ति को उजागर किया पंजाब मेडिकल काउंसिल के अध्यक्ष डॉ. जी.एस ग्रेवाल ने और एनडीटीवी ने अपने शो 'ट्रूथ वर्सेस हाईप' के जरिए इसकी पूरी जांच पड़ताल की।
जिस दिन हमारे कार्यक्रम का प्रसारण हुआ उसी दिन पंजाब सरकार ने डॉ. ग्रेवाल को बर्खास्त कर दिया। लेकिन व्हिसलब्लोअर को हटा देने से कड़वी सच्चाई खत्म नहीं हो जाती।
मेडिकल कॉलेजों को लाइसेंस प्रदान करने वाले मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के दिशानिर्देशों के अनुसार किसी भी मेडिकल कॉलेज के संचालन के लिए उसके पास तय संख्या में फैकल्टी, मरीज, उपकरण और इंफ्रास्ट्रक्चर होना जरूरी है।
5 साल के एमबीबीएस प्रोग्राम में प्रति बैच 150 छात्रों का दाखिला लेने वाले किसी भी कॉलेज के पास फैकल्टी के रूप में 110 पूर्णकालिक डॉक्टर और करीब 900 मरीज होने चाहिए। और किसी भी समय दोनों की 80-90 फीसदी उपस्थिति भी होनी चाहिए। लेकिन पंजाब मेडिकल काउंसिल की जांच में पता चला कि कॉलेज बड़ी आसानी से जांच के दिन बाहर से डॉक्टरों को लाकर सिस्टम को धता बता रहे हैं।
डॉ ग्रेवाल का दावा है कि अगर इन्हें हेलीकॉप्टर से न लाया और ले जाया जाता हो, तो ऐसा हरगिज संभव नहीं है कि ये प्राइवेट प्रैक्टिस भी करें और फुल टाइम पढ़ाते भी हों। ऐसा एक उदाहरण डॉ कुलवंत सिंह का है, जिन्हें सोलन में साल 2013 से 2015 तक एमएम मेडिकल कॉलेज के फैकल्टी मेंबर के रूप में दिखाया गया। लेकिन वह वहां से करीब 150 किलोमीटर दूर लुधियाना में एक हार्ट सेंटर चलाते हुए पाए गए। ग्रेवाल के आरोपों की सच्चाई जानने के वास्ते हम मरीज बनकर डॉ कुलवंत सिंह से दिखाने गए। उसके बाद हम एक टीवी इंटरव्यू के लिए उनसे मिलना चाहे, जिससे उन्होंने मना कर दिया। डॉ सिंह ने हमें बताया कि उन्होंने सोलन के कॉलेज में पढ़ाया था, लेकिन जनवरी, 2015 में उन्होंने इस्तीफा दे दिया था, ठीक उसी महीने जिस महीने जांच हुई थी।
हालांकि जब हमने सोलन के कॉलेज का दौरा किया, तो खुफिया कैमरे पर एक डॉक्टर ने बताया कि डॉ सिंह सिर्फ जांच के वक्त आते हैं। वह हमारे वेतनमान पर हैं, लेकिन फिलहाल यहां नहीं हैं। ये प्राइवेट मेडिकल कॉलेज प्राइवेट डॉक्टरों को रखते हैं और उन्हें जांच के वक्त ही बुलाया जाता है। चूंकि अब नियम थोड़े कड़े हो गए हैं, इसलिए अब डॉक्टर नहीं आ रहे हैं।
एनडीटीवी को मिले डॉ. सिंह के टैक्स रिटर्न दिखाते हैं कि एक तरफ जहां वह कॉलेज से 50 हजार रुपये महीने की तनख्वाह ले रहे थे, वहीं थर्ड पार्टी इंश्योरेंस कंपनी से भी पेमेंट ले रहे थे, जो इस बात का संकेत है कि उनका क्लीनिक चल रहा था। डॉ. सिंह का मामला इसलिए भी हैरान करने वाला है क्योंकि वह पंजाब मेडिकल काउंसिल (पीएमसी) की एथिक्स कमेटी के अध्यक्ष हैं। पीएमसी के एक अन्य वरिष्ठ सदस्य डॉ अरुण मित्रा कहते हैं कि यह वाकई दुखद है। मेडिकल काउंसिल के सदस्यों को कानून की जानकारी होनी चाहिए, वास्तव में वे इसके संरक्षक भी हैं। और अगर वे ऐसे मामलों में संलिप्त हैं, तो मुझे लगता है कि यह एक बड़ा अपराध है।
'घोस्ट' डॉक्टरों की संख्या को लेकर एक और कॉलेज जो काउंसिल के निशाने पर है वो है जालंधर का पंजाब इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेस (पीआईएमएस)। डॉक्टर बी.एस. भाटिया को कॉलेज ने साल 2014-15 के लिए एसोसिएट प्रोफेसर ऑफ सर्जरी दिखाया है, जबकि जालंधर से करीब 50 किलोमीटर दूर कदियां शहर में वह अपना निजी अस्पताल भी चला रहे हैं। वह पंजाब मेडिकल काउंसिल के सदस्य भी हैं।
पीआईएमएस के सर्जरी डिपार्टमेंट में किसी ने भी डॉक्टर भाटिया के बारे में सुना तक नहीं। फोन करने पर डॉक्टर भाटिया ने कहा, उन्होंने पिछली जांच के तुरंत बाद इस्तीफा दे दिया था।
दो और फैकल्टी मेंबरों - डॉ. संजीव महाजन (ऑर्थोपेडिसियन) और डॉ. वनीत कौर (गायनिकोलॉजिस्ट) ने भी यही बात कही। दोनों ही लुधियाना के फोर्टिस हॉस्पिटल में डॉक्टर हैं। कॉलेज के गायनिकोलॉजी डिपार्टमेंट ने माना कि डॉ. कौर केवल जांच के समय ही आईं थी। रिसेप्शनिस्ट ने बताया कि डॉ. कौर ने अभी तक ज्वाइन नहीं किया है। वह केवल जांच के समय ही एक-दो बार आती हैं।
लेकिन पीआईएमएस के डॉक्टर कंवलजीत सिंह ने बताया कि ये डॉक्टर 'घोस्ट' फैकल्टी नहीं है और कॉलेज में पढ़ाते भी हैं, लेकिन करीब सालभर पहले जब ये पता चला कि वो कॉलेज के अलावा वो निजी प्रैक्टिस भी करते हैं, तब उन्हें हटा दिया गया।
इन डॉक्टरों के टैक्स रिटर्न के अनुसार केवल 3-4 दिनों तक कॉलेज में आने के बदले इन्हें 6-12 लाख रुपये तक का भुगतान किया जाता है। यह बताने की जरूरत नहीं है कि कॉलेज कैसे इतनी बड़ी रकम इन्हें देते हैं। मेडिकल की पढ़ाई महंगी बनी हुई है, छात्र 5 साल के एमबीबीएस कोर्स के लिए 13 से 40 लाख रुपये तक खर्च करते हैं। स्पष्ट है कि ऐसे दागी कॉलेजों की वजह से छात्रों को उनके द्वारा खर्च किए जा रहे पैसों का सही मोल नहीं मिल पा रहा।
जब डॉक्टर ग्रेवाल ने जब ऐसे भ्रष्ट डॉक्टरों को दंडित करना चाहा तो पंजाब के मेडिकल एजुकेशन मंत्री अनिल जोशी ने पंजाब मेडिकल काउंसिल की बैठक को तकनीकी कारणों का हवाला देते हुए रद्द कर दिया।
शनिवार की सुबह मंत्री जी ने डॉ. ग्रेवाल को बर्खास्त करने का आदेश जारी कर दिया। हालांकि टिप्पणी के लिए वो खुद उपलब्ध नहीं थे।
तो इस तरह सरकार ने वैसे तो त्वरित कार्रवाई की लेकिन कदाचार में लिप्त लोगों के खिलाफ नहीं बल्कि उनके खिलाफ जो इसे उजागर कर रहे हैं।
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