उरी में आर्मी कैंप पर हुए आतंकी हमले में 18 जवान शहीद हो गए
उरी:
18 सितंबर की सुबह सितंबर की उरी में सेना के कैंप पर हुए आतंकी हमले से जुड़ी कई अहम जानकारियां एनडीटीवी इंडिया को हासिल हुई है. काला पहाड़ ब्रिगेड पर हुए हमले में बहुत संजीदा ऑपरेशनल चूक की बातें सामने आ रही हैं. ये बात भी सामने आ रही है कि आतंकियों की घुसपैठ के समय कहीं न कहीं बड़ी लापरवाही हुई है.
NDTV इंडिया को मिली जानकारी के मुताबिक 12-13 सितंबर को ऐसे किसी हमले की खुफिया जानकारी मिली थी, जिसे सेना के साथ साझा किया गया था. 15 सितंबर को ऐसी ही दूसरी जानकारी भी मिली थी. इस जानकारी में 12 इंफैंट्री ब्रिगेड पर हमले के बारे में अंदेशा था. इस बारे में भी सेना को सूचना दे दी गई थी.
आतंकियों ने काला पहाड़ ब्रिगेड कैंप में दो जगह से घुसपैठ की. दो जगहों पर तार कटे मिले. आतंकी बेरोकटोक शिविर के 150 मीटर भीतर तक चले आए. उन्होंने पहला हमला वॉशरूम के लिए कतार में खड़े जवानों पर किया, फिर ग्रेनेड लॉन्चरों से टेंट पर हमला किया. एक आतंकी ऑफिसर्स मेस की तरफ़ गया, जबकि दूसरा मोटर ट्रांसपोर्ट की तरफ. आतंकियों के हमले से किचेन में पड़े मिट्टी तेल में आग लग गई, जो हथियारों तक पहुंच गई. आग की चपेट में टेंट में सोए जवान भी आ गए. आग से दो अस्थायी ढांचों के अलावा 15 टेंट भी जल गए.
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यह भी पता चला है कि पाकिस्तान की बोर्डर एक्शन टीम 28 अगस्त से सीमा पार तैनात थी और जानकारी थी कि वो कोई बड़ी करवाई को अंजाम दे सकते हैं.
असली सवाल ये उठ रहा है कि आखिरी आतंकी शिविर के इतने करीब कैसे पहुंच गए. उनको शिविर के अलग-अलग हिस्सों की इतनी पक्की जानकारी कैसे थी? क्या कोई भीतरी शख्स उनकी मदद कर रहा था? खुफियां एजेंसियां इन सब बातों की जांच कर रही हैं.
सेना से पूछे जा रहे हैं कई सवाल
इस सिलसिले में कई और सवाल उठ रहे हैं। सेना का दावा है कि फेंस के चारों तरफ फ्लड लाइट होती है, लेकिन इसके बावजूद किसी ने दो-दो जगह तार कटते किसी को क्यों नहीं देखा? वॉशरूम के पास बनी संतरी पोस्ट की कार्रवाई क्यों बेमानी रही? अगर पोस्ट से गोली चली तो उसके निशान कहां हैं? घाटी में घुसपैठ की लगातार ख़बरों के बीच उरी की सुरक्षा में ये ढिलाई कैसे मुमकिन हुई? मुश्किल ये है कि आतंकियों द्वारा इस्तेमाल जीपीएस जले हुए हैं, जिन्हें जांच के लिए दिल्ली भेजा गया है. इसी तरह आतंकियों के शव भी जल गए हैं
किस लोकेशन से घुसे आतंकवादी?
जीपीएस सलामत होते तो शायद आतंकियों का पाकिस्तान रूट कहीं ज्यादा साफ़ होकर सामने आ गया होता. फिलहाल जांच की सबसे बड़ी चुनौती यही है कि आतंकियों का रास्ता मालूम हो और ये पता चले कि उन्हें किस-किस की अंदरुनी मदद हासिल हुई.
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