अनुपम मिश्र (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
प्रख्यात पर्यावरणविद् वयोवृद्ध और गांधीवादी अनुपम मिश्र नहीं रहे. उन्होंने सोमवार तड़के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में अंतिम सांस ली. वह 68 वर्ष के थे. अनुपम मिश्र के परिवार के एक करीबी सूत्र ने बताया कि मिश्र पिछले साल भर से कैंसर से पीड़ित थे. अनुपम मिश्र के पार्थिव शरीर को पूर्वाह्न 11 बजे गांधी शांति फाउंडेशन लाया गया जहां से उनकी अंतिम यात्रा शुरू हुई. उनका अंतिम संस्कार निगम बोध घाट में किया गया. उनको श्रद्धांजलि देने के लिए बड़ी संख्या में पत्रकार, लेखक, समाजसेवी अौर राजनेता भी मौजूद थे.
अनुपम मिश्र का अपना कोई घर नहीं था. वह गांधी शांति फाउंडेशन के परिसर में ही रहते थे. उनके पिता भवानी प्रसाद मिश्र प्रख्यात कवि थे. मिश्र के परिवार में उनकी पत्नी, एक बेटा, बड़े भाई और दो बहनें हैं. मिश्र गांधी शांति प्रतिष्ठान के ट्रस्टी एवं राष्ट्रीय गांधी स्मारक निधि के उपाध्यक्ष थे. उन्होंने पर्यावरण के साथ भाषा पर बहुत काम किया.
मिश्र को इंदिरा गांधी राष्ट्रीय पर्यावरण पुरस्कार, जमना लाल बजाज पुरस्कार सहित कई पुरस्कारों से नवाजा जा गया. जल संरक्षण पर लिखी गई उनकी किताब 'आज भी खरे हैं तालाब' काफी चर्चित हुई और देशी-विदेशी कई भाषाओं में उसका अनुवाद हुआ. पुस्तक की लाखों प्रतियां बिक चुकी हैं. 'आज भी खरे हैं तालाब' पानी के संचय की लोक विधियों का ऐसा दस्तावेज है जिसमें यह बताया गया है कि कैसे बिना कुछ विशेष किए समाज अगर चाहे तो पानी को किस तरह सहेज सकता है और अपने वर्तमान एवं भविष्य को जल संकट से मुक्त कर सकता है.
उनकी अन्य चर्चित किताबों में 'राजस्थान की रजत बूंदें' और 'हमारा पर्यावरण' है. 'हमारा पर्यावरण' देश में पर्यावरण पर लिखी गई एकमात्र किताब है.
अनुपम मिश्र ऐसे पहले व्यक्ति हैं जिन्होंने देश में पर्यावरण पर काम शुरू किया. उस समय सरकार में पर्यावरण का कोई विभाग तक नहीं था. उन्होंने गांधी शांति प्रतिष्ठान में पर्यावरण कक्ष की स्थापना की. अनुपम मिश्र, जयप्रकाश नारायण के साथ दस्यु उन्मूलन आंदोलन में भी सक्रिय रहे.
(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
अनुपम मिश्र का अपना कोई घर नहीं था. वह गांधी शांति फाउंडेशन के परिसर में ही रहते थे. उनके पिता भवानी प्रसाद मिश्र प्रख्यात कवि थे. मिश्र के परिवार में उनकी पत्नी, एक बेटा, बड़े भाई और दो बहनें हैं. मिश्र गांधी शांति प्रतिष्ठान के ट्रस्टी एवं राष्ट्रीय गांधी स्मारक निधि के उपाध्यक्ष थे. उन्होंने पर्यावरण के साथ भाषा पर बहुत काम किया.
मिश्र को इंदिरा गांधी राष्ट्रीय पर्यावरण पुरस्कार, जमना लाल बजाज पुरस्कार सहित कई पुरस्कारों से नवाजा जा गया. जल संरक्षण पर लिखी गई उनकी किताब 'आज भी खरे हैं तालाब' काफी चर्चित हुई और देशी-विदेशी कई भाषाओं में उसका अनुवाद हुआ. पुस्तक की लाखों प्रतियां बिक चुकी हैं. 'आज भी खरे हैं तालाब' पानी के संचय की लोक विधियों का ऐसा दस्तावेज है जिसमें यह बताया गया है कि कैसे बिना कुछ विशेष किए समाज अगर चाहे तो पानी को किस तरह सहेज सकता है और अपने वर्तमान एवं भविष्य को जल संकट से मुक्त कर सकता है.
उनकी अन्य चर्चित किताबों में 'राजस्थान की रजत बूंदें' और 'हमारा पर्यावरण' है. 'हमारा पर्यावरण' देश में पर्यावरण पर लिखी गई एकमात्र किताब है.
अनुपम मिश्र ऐसे पहले व्यक्ति हैं जिन्होंने देश में पर्यावरण पर काम शुरू किया. उस समय सरकार में पर्यावरण का कोई विभाग तक नहीं था. उन्होंने गांधी शांति प्रतिष्ठान में पर्यावरण कक्ष की स्थापना की. अनुपम मिश्र, जयप्रकाश नारायण के साथ दस्यु उन्मूलन आंदोलन में भी सक्रिय रहे.
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