नई दिल्ली:
यूपी के सियासी संग्राम में कांग्रेस का मुक़ाबला क्या चुनाव आयोग से भी है… हाल में एक के बाद एक आचार संहिता के उल्लंघन के मामले तो कुछ ऐसा ही कह रहे हैं… ऊपर से सरकार का यह विचार कि आचार संहिता को वैधानिक रूप दे दिया जाए… एनडीटीवी के हाथ जीओएम की बैठक से जुड़ा एक दस्तावेज़ लगा है जिसमें यह बात साफ़ हो रही है।
दस्तावेज़ में लिखा है कि मंत्री समूह का ये भी विचार है कि आचार संहिता विकास परियोजनाओं को रोकने के रास्ते में सबसे बड़ा बहाना बनता है, इसलिए क़ानून मंत्री के आग्रह पर वह इस मुद्दे पर विचार को तैयार है। यह भी सुझाव दिया गया कि क़ानून विभाग उन पहलुओं को भी देखे जहां चुनाव आयोग के अधिशासी आदेशों को वैधानिक शक्ल दिए जाने की ज़रूरत है।
आचार संहिता को वैधानिक रूप देने की सरकार की कोशिश पर चुनाव आयोग ने प्रतिक्रिया दी है। मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी का कहना है कि अगर यह सही है तो ये एक बड़ा ही ग़लत कदम है जो चुनाव आयोग की ताकतें कम करेगा। चुनाव आचार संहिता पिछले बीस साल से सभी इम्तिहानों पर खरी उतरी है। जिस तरह से देश में चुनाव कराए गए हैं उसकी सभी ने प्रशंसा की है।
चुनाव आचार संहिता को वैधानिक शक्ल देने की कोशिश चुनाव आयोग की ताकत कम करने की कोशिश है। एक बार अदालतों को नेताओं के आचार संहिता तोड़ने के मामलों के फ़ैसले का अधिकार मिल गया तो ऐसे केस सालों खींचते रहेंगे और दोषी सत्ता के मज़े लूटते रहेंगे। जनता कभी इसकी मंज़ूरी नहीं देगी।
दस्तावेज़ में लिखा है कि मंत्री समूह का ये भी विचार है कि आचार संहिता विकास परियोजनाओं को रोकने के रास्ते में सबसे बड़ा बहाना बनता है, इसलिए क़ानून मंत्री के आग्रह पर वह इस मुद्दे पर विचार को तैयार है। यह भी सुझाव दिया गया कि क़ानून विभाग उन पहलुओं को भी देखे जहां चुनाव आयोग के अधिशासी आदेशों को वैधानिक शक्ल दिए जाने की ज़रूरत है।
आचार संहिता को वैधानिक रूप देने की सरकार की कोशिश पर चुनाव आयोग ने प्रतिक्रिया दी है। मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी का कहना है कि अगर यह सही है तो ये एक बड़ा ही ग़लत कदम है जो चुनाव आयोग की ताकतें कम करेगा। चुनाव आचार संहिता पिछले बीस साल से सभी इम्तिहानों पर खरी उतरी है। जिस तरह से देश में चुनाव कराए गए हैं उसकी सभी ने प्रशंसा की है।
चुनाव आचार संहिता को वैधानिक शक्ल देने की कोशिश चुनाव आयोग की ताकत कम करने की कोशिश है। एक बार अदालतों को नेताओं के आचार संहिता तोड़ने के मामलों के फ़ैसले का अधिकार मिल गया तो ऐसे केस सालों खींचते रहेंगे और दोषी सत्ता के मज़े लूटते रहेंगे। जनता कभी इसकी मंज़ूरी नहीं देगी।
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