
उत्तराखंड के जंगलों में लगने वाली आग हर साल इस समय चरम पर पहुंच जाती है. 'उत्तराखंड वन विभाग' की वेबसाइट के अनुसार साल 2025 में 14 मई तक उत्तराखंड के 260.44 हेक्टेयर जंगल में आग लगी है. पहले ग्रामीण अपनी जान को कुर्बान कर भी आग बुझाते थे, लेकिन अंग्रेजों ने लोगों को जंगलों से दूर कर दिया.
इंजीनियरिंग छोड़ कर फ़िल्म मेकर बने हर्ष काफर ने उत्तराखंड के जंगलों की इसी वनाग्नि की गंभीरता को दिखाने के लिए 'दहकता हिमालय' नाम से डॉक्यूमेंट्री बनाई है. इसमें पिछले साल 'बिनसर वन्यजीव अभ्यारण्य' में आग से छह लोगों की मौत से जुड़े कुछ चौंकाने वाले खुलासे भी शामिल हैं.
वनाग्नि की गंभीरता दिखाती दहकता हिमालय में जंगल की आग की कुछ रीयल फुटेज हैं, साथ में इसमें शेखर पाठक सहित उत्तराखंड के पहाड़ों की गहरी जानकारी रखने वालों की टिप्पणियों को भी जगह दी गई है.

नैरेटर हर्ष काफर अपनी दमदार आवाज में डॉक्यूमेंट्री की शुरुआत बद्रीदत्त पांडे के साल 1921 के एक भाषण के अंश से करते हैं, यह पंक्तियां आज के हालातों पर भी सटीक बैठती हैं. इसके बाद इतिहासकार पद्मश्री शेखर पाठक बताते हैं कि पहले ग्रामीण अपनी जान को कुर्बान कर भी आग बुझाते थे, लेकिन अंग्रेजों ने लोगों को जंगलों से दूर कर दिया.
प्रभावित करती पंक्तियों के साथ बिनसर अभ्यारण्य का सच
हर्ष काफर ने डॉक्यूमेंट्री में प्रभावित करने वाले संगीत का प्रयोग किया है. भास्कर भौर्याल का संगीत डॉक्यूमेंट्री में वनाग्नि की गंभीरता को और भी बढ़ाता रहता है. हर्ष काफर की पंक्तियां 'हम जल रहे हैं, आग हमें जला रही है, हमारे जंगलों को जला रही है और हमारे संसाधनों को जला रही है' जंगल की आग का मनुष्यों से गहरा संबंध दर्शाती हैं.
जब वह घाटी से 5-6 किलोमीटर ऊपर खड़े होकर कहते हैं 'चढ़ने में वो भी दिन के उजाले में चार से पांच घंटे लगते हैं. आप चाहते हैं और आप सोचते हैं एक फायर वॉचर और एक फॉरेस्ट गार्ड यहां आए वो भी रात के अंधेरे में और आग बुझा दें' तो पहाड़ की भौगोलिक स्थिति को न समझने वाले भी पहाड़ों के जंगलों में लगने वाली आग की गंभीरता से परिचित हो जाते हैं. डॉक्यूमेंट्री देखकर लगता है कि हर्ष काफर इसे बनाने का अपना उद्देश्य पूरा कर सके हैं.

बिनसर वन्यजीव अभ्यारण्य पर चौंकाने वाले खुलासे
पिछले साल बिनसर वन्यजीव अभ्यारण्य की आग पर डॉक्यूमेंट्री में विस्तार से चर्चा की गई है. डॉक्यूमेंट्री का यह हिस्सा दर्शकों को चौंकाता है, जब वह सुनते हैं कि आग बुझाने के लिए कैसे नेपालियों को बिना संसाधनों के भेज दिया जाता है.
इसमें कैग की रिपोर्ट का जिक्र भी है, जहां बताया जाता है कि फॉरेस्ट फंड के पैसों से आईफोन, लैपटॉप लिए गए. वीडियो में बैकग्राउंड पर दिखाई जा रही अखबारों की कटिंग लगाते हुए हर्ष ने स्क्रीन पर जो दिखाया है, उसकी प्रमाणिकता भी सिद्ध की है.
कुछ महत्वपूर्ण सुझाव जो डॉक्यूमेंट्री का हासिल है
डॉक्यूमेंट्री में जंगल के आसपास रहने वाले लोगों के लिए जंगल की महत्वता दिखाने के लिए कई साक्षात्कार लिए गए हैं. इसमें से एक विनोद पाण्डे का भी है, जिसमें वह कहते हैं आग के लिए जो प्रतिरोधक शक्ति है वो है नमी या पानी. जंगल का सबसे बड़ा वरदान है पानी, मानसून और वेस्टर्न डिस्टर्बेंस से पानी मिलता है. जंगल उस पानी को रोकता है.
ऐसे ही भरत सिंह, जो वन पंचायत सरपंच भी हैं वह आग के लिए वन विभाग से अनुरोध करते दिखते हैं कि जंगल में चारा पत्ती वाले पेड़ ही न लगाएं, फलदार वृक्ष भी लगाएं. यह लगेंगे तो जो बंदर आज घर में घुस रहे हैं वो जंगल में रहेंगे, क्योंकि उनकी वहां पूर्ति हो जाएगी, वो खेती की तरफ नहीं आएंगे.

शेखर पाठक भी जंगल की आग रोकने के लिए महत्वपूर्ण सुझाव देते कहते हैं सरकार, समाज और संस्थाओं का संयुक्त मोर्चा ही आग से टैकल कर सकता है. वन विभाग अकेला कितना ही कर्मठ ईमानदार बन जाए, अकेला आग नहीं बुझा सकता, समाज अकेला नहीं बुझा सकता. कितना भी एडवांस हो जाएं अमरीका भी आग नहीं बुझा पा रहा है, कैलिफोर्निया में दर्जनों की संख्या में लोग मरते हैं.
डॉक्यूमेंट्री में पिरूल नीति पर भी सरकार की घोषणाओं और जमीनी हकीकत का आकलन किया गया है, हर्ष ने यहां भी शेखर पाठक की महत्वपूर्ण राय ली है और यह आग रोकने पर जरूरी है.
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