अयोध्या में बाबरी मस्जिद केस के मुद्दई हाशिम अंसारी और अखाड़ा परिषद के महंत ज्ञानदास ने वहां मंदिर और मस्जिद अगल-बगल बनाने की पेशकश की है। वे चाहते हैं की वहां सरकारी क़ब्ज़े वाली 67 एकड़ जमीन पर मंदिर और मस्जिद दोनों बन जाएं और उनके बीच एक 100 फ़ीट ऊंची दीवार बना दी जाए। इस तरह वह इस मसले को अदालत के बाहर हल करना चाहते हैं। उनका कहना है की वे इस फॉर्मूले को लेकर पीएम मोदी से मिलेंगे।
हालांकि महंत ज्ञानदास सीधे इस मुक़दमे के पैरोकार नहीं हैं लेकिन वह उस अखाड़ा परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं जिसमें निर्मोही अखाड़ा शामिल है और निर्मोही अखाड़ा शुरू से ही इस मुक़दमे का पैरोकार है. हाशिम अंसारी पिछले 53 साल से बाबरी मस्जिद के मालिकाना हक़ का मुक़दमा लड़ रहे हैं। अब 92 साल की उम्र में वह भी समझौते के हक़ में हैं।
हाशिम और महंत ज्ञानदास की मीटिंग हनुमानगढ़ी के मंदिर में हुई। महंत ज्ञानदास का कहना है कि इस समझौते में अगर वीएचपी को न शामिल किया जाए तो बात बन सकती है।
लेकिन बाबरी मस्जिद एक्शन समिति के संयोजक और सुन्नी सेंट्रल वक़्फ़ बोर्ड के वकील जफरयाब जिलानी कहते हैं कि कोई भी समझौता वीएचपी के बिना इसलिए होना मुमकिन नहीं है क्योंकि वीएचपी इस मुक़दमे में एक पार्टी है। 1986 में राम लला विराजमान के नाम से वीएचपी भी इस मुक़दमे में पार्टी बन गई थी। और इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने जब इस मामले में फैसला दिया तो झगड़े वाली जगह का एक तिहाई हिस्सा रामलला विराजमान को भी दिया है।
वीएचपी उस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट अपील में गई हुई है। जफरयाब जिलानी कहते हैं कि मस्जिद और मंदिर दोनों की तरफ से क़रीब दर्जन भर पैरोकार सुप्रीम कोर्ट में केस लड़ रहे हैं। कोई भी समझौता इन सारे लोगों की सहमति के बिना नहीं हो सकता।
हालांकि मंदिर-मस्जिद मुद्दे को अदालत के बाहर निपटाने के लिए क़रीब 9 कोशिशें हो चुकी हैं। देश के पांच प्रधानमंत्रियों राजीव गांधी, वीपी सिंह, चंद्रशेखर, अटल बिहारी वाजपेयी और मनमोहन सिंह के ज़माने में यह कोशिशें हुईं। तांत्रिक चंद्रास्वामी, शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती, राम जन्मभूमि के मुख्य पुजारी सत्येन्द्र दास, पर्सनल लॉ बोर्ड के अध्यक्ष राबे हसन नदवी, उपाध्यक्ष मौलाना कल्बे सादिक़ और जस्टिस पालोक बासु इस बातचीत में अलग-अलग वक़्त शामिल हो चुके हैं।
प्रधानमंत्री राजीव गांधी के वक़्त एक बार यह तय हो गया था कि मस्जिद के बहार जो राम चबूतरा बैरागियों ने बनाया था, वहां मंदिर बन जाएगा, लेकिन वीएचपी के राज़ी न होने की वजह से समझौता नहीं हो पया। बहरहाल एक बार और कोशिश शुरू हुई है।
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