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This Article is From Oct 06, 2022

"ये मेरा दूसरा जन्म है..." : विदेशों में चीनी कंपनियों के जॉब रैकेट का खुलासा, पीड़ित ने सुनाई आपबीती

फिलहाल पूरे मामले के सामने आने के विदेश मंत्रालय सक्रीय हो गया है और विभिन्न जगहों पर फंसे लोगों को वापस लाने का काम जारी है. साथ ही मंत्रालय ने लोगों से अपील भी की है कि वो ऑनलाइन मिल रहे विदेशों में नौकरी के अवसरों की सही से जांच पड़ताल करने के बाद ही वहां नौकरी के लिए जाएं.

विभिन्न जगहों पर फंसे लोगों को वापस लाने का काम जारी है. (स्क्रीनग्रैब)

नई दिल्ली:

चीन की फर्जी कंपनियों ने नौकरी देने के नाम पर भारती युवाओं के साथ ठगी को अंजाम दिया है. ये कंपनियां दुबई, थाईलैंड, इंडोनेशिया में नौकरी देने के नाम पर युवाओं के साथ धोखाधड़ी कर रही थी. म्यान्मार, लाओस और कंबोडिया जैसे देशों में भारतीयों को बंधक बनाकर अवैध रूप से आईटी का काम कराया जा रहा था. हालांकि, मामले के सामने आने के बाद केंद्र सरकार सक्रीय हो गई है. अब तक ऐसे 17 पीड़ितों को वापस देश लाया गया है, जिन्हें विदेशों में बंधन बनाकर काम कराया जा रहा था. 

म्यान्मार से लौटे 43 साल के हरीष कुमार ने डबडबाई आंखों से आपबीती सुनाते हुए एनडीटीवी से कहा कि ये मेरा दूसरा जन्म है. अभी मेरा जन्मदिन बीता है. परिजनों ने कहा कि ये मेरा दूसरा जन्म है. मैंने और घर के लोगों ने तो उम्मीद ही छोड़ दी थी कि मैं वापस आउंगा. भगवान ने ही मुझे बचाया है. वे हमें बहुत टॉर्चर करते थे. खाना नहीं देते थे. 10 किलोमीटर की रेस कराते थे.

बता दें कि इसी साल मई में वो (हरीष) नौकरी की तलाश में दुबई गए और फिर वहां एक फर्जी चीनी कंपनी के झांसे में आकर थाईलैंड पहुंच गए. उनसे वादा किया गया था कि मोटी सैलरी के साथ ही रहने के लिए घर भी दिया जाएगा. लेकिन थाइलैंड पहुंचते ही उनके होश उड़ गए. वहां पर उन्होंने एक वीडियो बनाया, जिसमें उन्होंने वहां के हालात से लोगों को रूबरू कराया. उन्होंने दिखाया कि कैसे वहां भारतीयों को मवेशियों की तरह रखा जा रहा था. 

उनकी मानें तो फिल्मी स्टाइल में उन्हें बंदूक की नोक पर काम के लिए अगवा कर म्यान्मार ले जाया गया, जहां पहले से ही उनके जैसे कुछ भारतीय मौजूद थे. वहां उनसे रोजाना 16-17 घंटे काम लिया गया. वे फेसबुक पर चैट करके लोगों से उनका डेटा लेने का काम करते थे. वहीं, जब उन्होंने भारत जाने की बात की तो उन्हें पीटा गया और यहां तक कि बिजली के झटके भी लगाए गए. साथ ही वहां रह रहे दूसरे भारतीयों के साथ भी जानवरों सा व्यवहार किया गया. कुछ को तो हथकड़ियां लगाकर कमरे में बंद कर दिया जाता था.  

ये जानने के बाद उनके परिजनों ने भरतीय विदेश मंत्रालय से उनके वापसी की गुहार लगाई, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. इधर म्यान्मार की सेना ने हरीष जैसे 17 लोगों को बचाया और थाइलैंड में छोड़ दिया. हालांकि, वहां की पुलिस ने उन्हें अवैध तरीके से बॉर्डर पार करने के आरोप में लगभग एक महीने से अधिक तक जेल में बंद रखा. लेकिन हरीष 4000 थाई बक का दंड देकर जेल के निकले और एक भारतीय एजेंट की मदद से 29 सितंबर को भारत वापस लौटे. 

फिलहाल पूरे मामले के सामने आने के विदेश मंत्रालय सक्रीय हो गया है और विभिन्न जगहों पर फंसे लोगों को वापस लाने का काम जारी है. साथ ही मंत्रालय ने लोगों से अपील भी की है कि वो ऑनलाइन मिल रहे विदेशों में नौकरी के अवसरों की सही से जांच पड़ताल करने के बाद ही वहां नौकरी के लिए जाएं. साथ ही इन घटनाओं से ये भी स्पष्ट होता है कि कहीं ना कहीं चीन के साथ इन देशों की सरकार की भी मिलीभगत है, क्योंकि बिना सहयोग के ऐसी कंपनियों का चलना संभव नहीं है. 

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