दिल्ली सरकार बनाम उपराज्यपाल मामले में अफसरों की ट्रांसफर पोस्टिंग का अधिकार किसका? जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई में पांच जजों के संविधान पीठ ने सुनवाई शुरू की. पीठ में CJI धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ के साथ जस्टिस एमआर शाह, जस्टिस कृष्ण मुरारी, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस पीएस नरसिम्हा शामिल हैं. इससे पहले 6 मई 2022 को अफसरों की ट्रांसफर- पोस्टिंग का मामला संविधान पीठ को भेजा गया था.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सेवाओं पर पांच जजों का संविधान पीठ सुनवाई करेगा. तीन जजों ने पीठ ने मामले को संविधान पीठ भेजा था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ऐसा लगता है कि पहले की संविधान पीठ ने सेवाओं के मुद्दे पर विचार नहीं किया. IAS एसोसिएशन की ओर से हरीश साल्वे पेश हुए. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सुनवाई के दौरान उनको समय देंगे.
दिल्ली सरकार बनाम LG केस में दिल्ली सरकार की ओर से अभिषेक मनु सिंघवी ने बहस शुरू की. उन्होंने कहा कि ये सिर्फ अधिकार और शक्तियों के बंटवारे का ही विवाद या मामला नहीं है बल्कि एक-दूसरे के अधिकार क्षेत्र में दखल का भी है. दिल्ली सरकार के पास अधिकार होने से अधिकारी दिल्ली की जनता और सरकार के प्रति जवाबदेह होंगे. नौकरशाह सरकार और मंत्रिमंडल के प्रति जवाबदेह और जिम्मेदार होना चाहिए, क्योंकि निर्णायक तौर पर तो विधायिका जनता के प्रति ही जिम्मेदार है. जिम्मेदारियों और जवाबदेही की ये कड़ियां न जुड़े तो प्रशासन और सिस्टम काम ही नहीं कर पाएगा. एक कड़ी भी कमजोर हुई तो सिस्टम बैठ जाएगा. भारत में तो हमारा प्रशासनिक और संवैधानिक ढांचा संघीय व्यवस्था से भी ज्यादा सटीक है. दो स्तरीय हिस्सा स्वायत्ता और संप्रभुता है. केंद्र, राज्य और फिर दोनों के साझा स्तर पर भी.
सिविल सेवाओं पर नियंत्रण के बिना कोई सरकार कैसे काम कर सकती है : दिल्ली सरकार
दिल्ली सरकार ने कहा कि सिविल सेवाओं को नियंत्रण में रखे बिना कोई सरकार कैसे काम कर सकती है. इससे पूरी तरह अवज्ञा और अराजकता होगी. इस शक्ति के बिना काम नहीं कर सकते. इसके बिना लोगों की इच्छा पूरी नहीं कर सकते. ऐसे हालात हैं कि केंद्र दिल्ली के लोगों के प्रति जवाबदेह नहीं. बिना सिविल सर्विस के बिना कैसी सरकार. विडंबना है कि MCD के पास सिविल सेवाओं के पास शक्ति, लेकिन दिल्ली सरकार के पास नहीं.
दिल्ली सरकार की ओर से अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि कोई भी सरकार जो लोगों की इच्छा को पूरा करने वाली है और अस्तित्व में है, उसे पद सृजित करने, उन पदों पर कर्मचारियों को नियुक्त करने और विश्वास के अनुसार उन्हें बदलने की क्षमता होनी चाहिए. जब तक इस सरकार के पास शक्ति नहीं है, सरकार कार्य नहीं कर सकती है. जनता स्तर पर प्रतिनिधित्व करने वाली सरकार नीति बनाती है, लेकिन कोई भी सरकार-कार्यान्वयन केवल सिविल सेवाओं पर निर्भर करेगा.
किसी भी सरकार से सिविल सेवा शक्ति का बहिष्कार सरकार के इसे कोई स्वायत्तता देने, स्थानीय शासन या राज्य शासन बनाने के उद्देश्य को नकारता है. सिविल सेवाओं के बहिष्करण का मतलब है कि आप " वी द पीपल" को नकार रहे हैं. मेरे पास नीति बनाने का प्रभार है, लेकिन आपके पास इसे लागू करने की शक्ति नहीं है. यदि आपके पास जवाबदेही नहीं है तो पूरी तरह से अराजकता है. क्या यह तर्क देना भी संभव है कि सिविल सेवा को बाहर कर दिया जाएगा?
क्या अदालत ऐसे केंद्र शासित प्रदेश की कल्पना कर सकती है? : दिल्ली सरकार
क्या यह अदालत एक ऐसे केंद्र शासित प्रदेश की कल्पना कर सकती है जहां एक विधायिका हो और जिसका सिविल सेवाओं पर कोई नियंत्रण न हो? यहां पूरी सरकार को सिविल सेवाओं के नियंत्रण के बिना काम करना है. विडंबना है कि नगर निगमों में सिविल सेवकों द्वारा कार्यान्वयन पूरी तरह से अप्रभावित है. दिल्ली 1400 KM है जो MCD है वहां सिविल सेवकों के पास स्थायी समिति और नगरपालिका समिति के साथ बहुत अधिक शक्ति है, लेकिन दिल्ली सरकार के पास सिविल सेवाओं पर कोई शक्ति नहीं है.
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