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This Article is From Aug 29, 2023

इंडिया को चाइना प्लस 1 के तौर पर क्यों नहीं देखा जाना चाहिए? एस जयशंकर ने इन सवालों के जवाब

विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा- "दुनिया के देश भारत में इंवेस्ट करेगी, क्योंकि हमारे अंदर क्षमता है. हमारे लिए इस देश में विनिर्माण बढ़ाने के तरीके ढूंढना महत्वपूर्ण है."

विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भारत को ग्लोबल साउथ की आवाज बताया है.

नई दिल्ली:

विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर (Dr S Jaishankar) ने NDTV के एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर और एडिटर इन चीफ संजय पुगलिया से एक्सक्लूसिव बातचीत में बताया कि दुनिया कैसे पहले से और ज्यादा बहुध्रुवीय (Multi-Polar) हो रही है और भारत का इसपर क्या स्टैंड है. #DecodingG20WithNDTV के तहत खास बातचीत में एस जयशंकर ने बताया कि जी-20 ने कैसे साबित कर दिया कि दुनिया और ज्यादा बहुध्रुवीय हो गई है.

दरअसल, भारत में ऑस्ट्रेलिया के हाई कमिश्नर फिलिप ग्रीन ने विदेश मंत्री एस जयशंकर की 2020 में आई किताब The India Way: Strategies for an Uncertain World का जिक्र करते हुए सवाल किया. ऑस्ट्रेलिया के हाई कमिश्नर ने जयशंकर की किताब से पहले एक कोट पढ़ा- "महाभारत के युग का भारत भी बहुध्रुवीय था, जिसमें प्रमुख ताकतें एक दूसरे को संतुलित करती थीं. लेकिन एक बार जब दो प्रमुख ध्रुवों के बीच प्रतिस्पर्धा को रोका न जा सका, तो दूसरों को मजबूरन किसी न किसी पक्ष का समर्थन करना पड़ा. लैंडस्केप की तरह उस समय जिन विकल्पों को चुना गया, उनकी हमारे समकालीन विश्व से भी कुछ समानताएं हैं."

भारत में ऑस्ट्रेलिया के हाई कमिश्नर फिलिप ग्रीन कोट पढ़ने के बाद विदेश मंत्री एस जयशंकर से सवाल किया कि क्या आज दुनिया ऐसी ही परिस्थिति में है या जा रही है? अगर ऐसा है तो क्या भारत कोई पक्ष लेने के लिए तैयार है? इसके जवाब में एस जयशंकर ने कहा, "आपके सवाल के पहले पार्ट के लिए मेरा जवाब ना है. मेरा मानना है कि दुनिया फिलहाल ऐसी परिस्थिति में नहीं जा रही है. मेरे ख्याल से दुनिया पहले से ज्यादा मल्टी पोलर यानी बहुध्रुवीय हो रही है. इसके लिए मैं आपको भारत का ही उदाहरण देता हूं. कुछ दशक पहले भारत आकार के आधार पर दुनिया की 10वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था था. आज हम दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी इकोनॉमी हैं. फैक्ट ये भी है कि पहले का जी-7 अब आज के जी-20 की तरफ झुक गया है, जो अपने-आप में बताता है कि दुनिया पहले से ज्यादा बहुध्रुवीय हो रही है. इसलिए मैं नहीं मानता कि वैश्विक फैसले या फिर किसी छोटे समूह के किसी एक्शन से आज के देश प्रभावित नहीं हो सकते. बेशक किसी मामले में एक देश नंबर वन हो सकता है और किसी दूसरे मामले में कोई देश नंबर 2. लेकिन ये नंबर 1 और नंबर 2 देश पूरे इंटरनेशनल सिस्टम को कंट्रोल नहीं कर सकते."

विदेश मंत्री से दूसरा सवाल इंटीग्रेटेड डिफेंस स्टाफ के पूर्व चीफ लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) सतीश दुआ ने किया. दुआ ने विदेश मंत्री से पूछा- "UNSC (संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद) में भारत जैसे देश स्थायी सदस्य नहीं हैं. अब जी-20 की बात करें, तो भारत ग्लोबल साउथ की आवाज होने की बात करता है. ऐसे में मेरा सवाल है कि UNSC की मौजूदा स्थिति को देखते हुए भारत जी-20 की अध्यक्षता से क्या मैसेज दे सकता है?"

इसके जवाब में विदेश मंत्री ने कहा, "जहां तक UNSC का सवाल है, तो भारत की स्थायी सदस्यता आसान नहीं है. और नहीं इससे हमें नाउम्मीद होना चाहिए. क्योंकि मेरा मानना है कि बड़ी चीजें पूरी होने में वक्त लेती हैं. ग्लोबल डिक्लेरेशन में बहुत मेहनत और बहुत नेगोशिएट करना पड़ता है. मैं इसका एक उदाहरण देता हूं. हाल ही में साउथ अफ्रीका में ब्रिक्स समिट हुआ. अगर आप ब्रिक्स समिट के डिक्लेरेशन को देखेंगे तो इसमें भारत, ब्राजील और साउथ अफ्रीका के लिए अलग से रेफरेंस है. दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाले देश भारत का UNSC नहीं होना, अपने आप में बड़ा सवाल है. लेकिन ऐसा नहीं है कि काम रुका हुआ है. काम हो रहा है, लेकिन बहुत धीमी गति से हो रहा है. "

जानेमाने बिजनेसमैन और डालमिया ग्रुप के चेयरमैन गौरव डालमिया ने भी विदेश मंत्री से सवाल पूछे. उन्होंने कहा, "मैं आपसे ग्लोबलाइजेशन के कमर्शियल पहलू पर सवाल करता हूं. पिछले साल चीन का निर्यात 22 प्रतिशत तक गिर गया था. भारत को चीन प्लस वन के रूप में देखा जाता है. क्योंकि भारत का मैन्यूफैंक्चरिंग एक्सपोर्ट भी पिछले साल 12 फीसदी तक गिरा था. इसका समाधान क्या है? 

गौरव डालमिया के सवाल के जवाब में विदेश मंत्री ने कहा, "मैं किसी आंकड़े पर सवाल नहीं करूंगा, लेकिन हमें इन आंकड़ों के पीछे के कारणों पर बात भी जरूर करनी चाहिए. मैं नहीं समझता कि भारत को चीन प्लस वन के रूप में देखा जाना चाहिए. ग्लोबल इकोनॉमी में ज्यादा योगदान देने वाली आधुनिकअर्थव्यवस्था बनाने के लिए जब हम अपनी क्षमता दिखाएंगे, तो दूसरे देश भारत में निवेश करेंगे. पिछले दशक में आपने बैंकों का री-कैपिटलाइजेशन देखा है. दुनिया के देश भारत में इंवेस्ट करेगी, क्योंकि हमारे अंदर क्षमता है. हमारे लिए इस देश में विनिर्माण बढ़ाने के तरीके ढूंढना महत्वपूर्ण है."

एस जयशंकर ने कहा, "जब हम हमारी क्षमता को देखेंगे और समझेंगे. हम कैसी प्रतिद्वंदिता का माहौल देते हैं, इंफ्रास्ट्रक्चर कैसा है, ह्यूमन स्किल क्या और कैसा है. ये सब चीजें मिलकर तय करती हैं कि भारत में इंवेस्ट कैसा हो रहा है."


 

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