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This Article is From Dec 24, 2015

जम्मू-कश्मीर में देश का चौथा केबल पुल "अटल सेतु" राष्ट्र को समर्पित

जम्मू-कश्मीर में देश का चौथा केबल पुल "अटल सेतु" राष्ट्र को समर्पित
बसोहली में रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर।
नई दिल्ली: जम्मू-कश्मीर के बसोहली इलाके के लोगों का 60 साल का सपना गुरुवार को उस वक्त पूरा हो गया जब रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर ने चौथे 'हावड़ा पुल' को देश को समर्पित किया। रावी नदी पर बना यह पुल आम लोगों के साथ जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तान और चीन से सटी सीमाओं पर तैनात लाखों फौजियों के लिए काफी सामरिक महत्व का माना जा रहा है।

पंजाब, हिमाचल और जम्मू-कश्मीर आपस में जुड़े
उत्तर भारत के जम्मू-कश्मीर में यह पहला केबल स्टेयड पुल है, जो जम्मू-कश्मीर, पंजाब व हिमाचल को आपस में सड़क के जरिए जोड़ रहा है। सीमा सड़क संगठन ने चार साल में यह पुल तैयार किया और अब यह आम जनता के लिए खुल गया है। पुल से बसोहली-दुनेरा-बनी-भद्रवाह के बीच सड़क संपर्क हो जाएगा। इसके साथ ही जम्मू-कश्मीर को देश से जोड़ने वाला लखनपुर के बाद यह दूसरा मुख्य सड़क संपर्क मार्ग होगा।

सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण
बसोहली का यह पुल देश में चौथा केबल स्टेयड पुल है। मौजूदा समय में देश में तीन केबल स्टेयड पुल हैं। जिसमें कोलकाता में हुगली पुल (हावड़ा ब्रिज), इलाहबाद में नैनी ब्रिज और मुबंई में राजीव गांधी सी लिंक है। यह पुल सामरिक लिहाज से बहुत ही अहम है क्योंकि इसके खुल जाने के बाद कश्मीर बार्डर और लद्दाख व सियाचिन के मोर्चों पर सेना को रसद और हथियार भिजवाना आसान हो जाएगा।

पुल की 592 मीटर लंबाई
जम्मू से करीब 200 किमी की दूरी पर बसोहली के पहाड़ी और प्राकृतिक खूबसूरती से भरपूर इलाके के विकास की खातिर 2011 में तत्कालीन यूपीए अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी ने इस पुल की नींव रखी थी। करीब 145 करोड़ की लागत से बना यह झूला पुल ठीक हावड़ा पुल की तरह है। यह देश में अपने किस्म का चौथा करीब 592 मीटर लंबा झूला पुल है। यह पुल इंजीनियरिंग का शानदार नमूना है।

सेना के लिए आपात स्थिति में मददगार
इस पुल के खुल जाने से सेना की पंजाब के पठानकोट से ही उधमपुर, भद्रवाह, अनंतनाग और कश्मीर के सीमावर्ती इलाकों तक सीधी पहुंच हो जाएगी। अभी तक सेना को इन इलाकों में रसद पहुंचाने के लिए जम्मू शहर से गुजरने वाले नेशनल हाइवे का इस्तेमाल करना पड़ता है। सेना प्रमुख जनरल दलबीर सिंह ने कहा कि अब तक सेना एनएच 24 को ही पठानकोट से जम्मू-कश्मीर में जाने में इस्तेमाल करती थी अब इस पुल के बन जाने से किसी भी आपात स्थिति में फौज तुरंत हरकत में आ जाएगी। सेना मानती है कि इस पुल के बनने से न सिर्फ करोड़ों का खर्चा बचेगा बल्कि समय की बचत भी होगी। न केवल लड़ाई के दौरान बल्कि आपातकालीन स्थिति में भी यह पुल महत्वपूर्ण साबित हो सकता है।

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