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This Article is From Apr 24, 2020

Coronavirus Lockdown: यूपी के 45 मजदूरों ने 1400 किलोमीटर का सफर पैदल तय किया

कोरोना वायरस से मौतों की खबरों से डरे हुए 45 मजदूर तेलंगाना के वारंगल से पैदल चलकर उत्तर प्रदेश के बहराइच पहुंचे

Coronavirus Lockdown: यूपी के 45 मजदूरों ने 1400 किलोमीटर का सफर पैदल तय किया
Lockdown: यूपी के 45 मजदूर तेलंगाना के वारंगल से 1400 किलोमीटर पैदल सफर करके बहराइच पहुंचे.
लखनऊ:

Coronavirus Lockdown: लॉकडाउन से परेशान और कोरोना वायरस से मौतों की खबरों से डरे हुए 45 मज़दूर तेलंगाना के वारंगल से 1400 किलोमीटर पैदल चलकर बहराइच पहुंच गए हैं, जहां उन्हें क्वारेंटाइन किया गया है. इनके आने का सिलसिला अभी भी जारी है…कहीं रास्ते में कोई ट्रक वाला लिफ्ट दे दे तो उसमें बैठ जाते हैं…बाक़ी सफ़र पैदल तय करते हैं. इनके पांव सूज गए हैं और पंजों में छाले पड़ गए हैं. लेकिन कोई अंजानी ताक़त है जो इन्हें इनके गावों की तरफ खींच रही है.

हीरा लाल 20 दिन पहले रात में वारंगल से पैदल निकल लिए थे..ना कोई सवारी...ना कोई सहारा....बिल्कुल अंजान रास्तों पर अकेले निकल पड़े. पहले यह नहीं सोचा होगा कि कभी मौत का ख़ौफ़ 1400 किलोमीटर पैदल सफ़र करवाएगा. रास्ते में तरस ख़ाकर कुछ ट्रक वालों ने बिठा लिया..फिर पैदल चलने लगे.

मजदूर हीरालाल का कहना है कि उधर खाने-पीने की बहुत समस्या थी, रहने के लिए समस्या थी...फिर धीरे-धीरे अपने घर पर चला आया...घर पर गया नहीं, इधर ही हूं रोड पर. अभी स्कूल में जाएंगे...जांच-वांच होगी सब...फिर उधर रहने के लिए जगह देंगे...खाने0पीने के लिए. फिर हमको 14 दिन रखेंगे. फिर उसके बाद जांच होगी. उसके बाद फिर घर जाएंगे.

वारंगल मिर्च के कारोबार का बहुत बड़ा हब है. वहां की लाल मिर्च पूरी दुनिया में एक्सपोर्ट होती है. वहां की मिर्च मंडियों में काम करने के लिए यूपी से हजारों मज़दूर जनवरी में जाते हैं. वे कई महीने रुकते हैं. लेकिन अब काम बंद होने से वे लौट रहे हैं. संजय भी वहीं मज़दूरी करते हैं. जाहिर है 1400 किलोमीटर यूं आ जाना, उनके लिए यह ज़िंदगी का नया तजुर्बा था.

मजदूर संजय कुमार ने बताया कि पैदल यात्रा में हम लोग वहां से चले. उसके बाद थोड़ी दूर लिफ्ट मिली, फिर पैदल यात्रा चली. हम लोगों को देखो पैर में छाले पड़ गए. वहां से चलने में हमारे जितने साथी थे सब परेशान हो गए. उनके पैर में छाले पड़ गए, चप्पल टूट गईं. तीन-तीन...चार-चार दिन भूखे थे.

मुल्क के अलग-अलग हिस्सों में वक़्त-वक़्त पर बड़े पैमाने पर मज़दूर अपने गांव जाने के लिए सड़कों पर निकल पड़ते हैं. सरकार कहती है कि जो जहां है वहीं रहे लेकिन रोजी खत्म हो चुकी हो, रोटी का इंतज़ाम न हो और मौत का ख़ौफ सिर पर मंडराता हो तो इंसान अपने गांव, अपने घर को भागता है. पता नहीं कहां से इनमें इतनी ताक़त आती है कि बीवी-बच्चों समेत 14-14 सौ किलोमीटर चल पड़ते हैं. बहराइच के मालवान गांव के कृष्ण कुमार भी 1400 किलोमीटर चलकर आए हैं.

मजदूर कृष्ण कुमार ने बताया कि किसी तरीक़े से बिस्कट खाकर यहां तक पहुंच गए. किसी ने दे दिया थोड़ा बहुत तो खा भी लिया नहीं तो पानी पीते रहे. थोड़ा बहुत रोटी-पानी लोगों ने दान दिया. उनमें किसी ने बिस्कट दिए तो किसी ने पानी दिया, किसी ने फल दिए.

तमाम पढ़े-लिखे लोगों को समझ नहीं आता कि यह मजदूर सड़क पर भीड़ क्यों लगाते हैं. सोशल डिस्टेंसिंग को फॉलो क्यों नहीं करते? लेकिन हो सकता है कि इन्हें सोशल डिस्टेंसिंग कुछ अजनबी सा, विदेशी सा शब्द लगता हो, क्योंकि यह तो सारी उम्र भीड़ में ही रहे हैं. राशन की कतार की भीड़ में...ट्रेन के टायलेट में खड़े होकर सफर करते हुए...ट्रेनों की छतों की भीड़ में शामिल होकर गांव जाते हुए...और यह लोग हमेशा से रैलियों में भी भीड़ का रोल अदा करते हैं. लेकिन मौत का ख़ौफ़ शायद इन्हें यह भी सिखाएगा.

VIDEO : यूपी सरकार दूसरे राज्यों में फंसे मजदूरों को वापस लाएगी

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