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This Article is From Oct 25, 2018

CBI में घूसकांड: CBI में रार से पक्ष-विपक्ष में तकरार, आलोक वर्मा की याचिका और विपक्षी हमले की 5-5 बातें

सीबीआई बनाम सीबीआई मामले (CBI vs CBI) में डायरेक्टर आलोक वर्मा (Alok Verma) को छुट्टी पर भेजे जाने को लेकर घमासान जारी है.

CBI में घूसकांड: CBI में रार से पक्ष-विपक्ष में तकरार, आलोक वर्मा की याचिका और विपक्षी हमले की 5-5 बातें
CBI vs CBI मामले पर सुप्रीम कोर्ट पहुंचे आलोक वर्मा
Quick Reads
Summary is AI generated, newsroom reviewed.
सीबीआई में रार से सरकार और विपक्ष आमने-सामने है.
आलोक वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है.
विपक्ष इसे संविधान और देश के लिए खतरा बता रही है.
नई दिल्ली: सीबीआई बनाम सीबीआई मामले (CBI vs CBI) में डायरेक्टर आलोक वर्मा (Alok Verma) को छुट्टी पर भेजे जाने को लेकर घमासान जारी है. सीबीआई के भीतर जारी जंग ने अब सियासी रूप भी अख्तियार कर लिया है और इस मामले को लेकर कांग्रेस सहित तमाम विपक्षी पार्टियां मोदी सरकार पर हमलावर है. इतना ही नहीं, खुद आलोक वर्मा ने उन्हें छुट्टी पर भेजे जाने के केंद्र सरकार के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है. जिसकी सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट तैयार हो गया है और शुक्रवार को मामले की सुनवाई होगी. सीबीआई डायरेक्टर आलोक वर्मा ( Alok Verma) ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई याचिका में कई तरह के इशारे किये हैं. आलोक वर्मा ने अपनी याचिका में इस बात की ओर भी इशारा किया है कि सरकार ने सीबीआई के कामकाज में हस्तक्षेप करने की कोशिश की है. आलोक वर्मा की याचिका के मुताबिक, 23 अक्तूबर को रातोंरात रैपिड फायर के तौर पर CVC और DoPT ने तीन आदेश जारी किए. यह फैसले मनमाने और गैरकानूनी हैं, इन्हें रद्द किया जाना चाहिए.

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आलोक वर्मा की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका में यह भी कहा गया है कि एक स्वतंत्र और स्वायत्त सीबीआई की आवश्यकता है. वर्तमान परिस्थितियों में ऐसा कदम उस वक्त उठाया गया जब हाई फंक्शनरी के खिलाफ जांच उस दिशा में नहीं गई जो सरकार के लिए वांछनीय है. याचिका में कहा गया है कि वे कोर्ट में उन मामलों के विवरण प्रस्तुत कर सकते हैं जो वर्तमान परिस्थितियों का कारण  बने. वे बेहद संवेदनशील हैं. 

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तो चलिए जानते हैं कि आलोक वर्मा की याचिका की 5 बड़ी बातें
  1. सीबीआई से उम्मीद की जाती है कि वह एक स्वतंत्र और स्वायत्त एजेंसी के तौर पर काम करेगी. ऐसे हालात को नहीं टाल जा सकता, जब उच्च पदों पर बैठे लोगों से सम्बंधित जांच की दिशा सरकार की मर्जी के मुताबिक न हो. हालिया दिनों में ऐसे केस आए जिनमें जांच अधिकारी से लेकर ज्वाइंट डायरेक्टर/ डायरेक्टर तक किसी खास एक्शन तक सहमत थे, लेकिन सिर्फ स्पेशल डायरेक्टर की राय अलग थी.
  2. सीवीसी, केंद्र ने रातोंरात मुझे सीबीआई डायरेक्टर के रोल से हटाने का फैसला लिया और नए शख्स की नियुक्ति का फैसला ले लिया, जो कि गैरकानूनी है.
  3. सरकार का यह कदम DSPE एक्ट के सेक्शन  4-b के खिलाफ है, जो सीबीआई डायरेक्टर की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए दो साल का वक्त निर्धारित करता है.
  4. DSPE एक्ट के सेक्शन 4 A के मुताबिक सीबीआई डायरेक्टर की नियुक्ति  प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता और CJI की कमेटी करेगी. सेक्शन 4b(2) में सीबीआई डायरेक्टर के ट्रांसफर के लिए इस कमेटी की मंजूरी ज़रूरी है. सरकार का आदेश इसका उल्लंघन करता है.
  5. इससे पहले सुप्रीम कोर्ट भी सीबीआई को सरकार के प्रभाव से मुक्त करने की बात कर चुकाहै. सरकार के इस कदम से साफ है कि सीबीआई को DOPT से स्वतंत्र करने की ज़रूरत है. मुझे संस्थान (CBI) के अधिकारियों पर पूरा भरोसा है, और इस तरह का गैरकानूनी दखल अधिकारियों के मनोबल को गिराता है.
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विपक्षी पार्टियों के 5 बड़े हमले 
  1. पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा ने बुधवार को आरोप लगाया कि सीबीआई में चल रहे उथल-पुथल के पीछे राफेल सौदे की जांच से बचने के मोदी सरकार के प्रयास हैं.    पूर्व भाजपा नेता ने आरोप लगाया कि मोदी सरकार ने सीबीआई की विश्वसनीयता को "नष्ट" कर दिया. उन्होंने कहा कि एजेंसी के निदेशक आलोक वर्मा को पद से हटाने का केंद्र का निर्णय "अवैध" है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ऐसा करने का कोई अधिकार नहीं है. सिन्हा ने यह भी आरोप लगाया कि सरकार किसी जांच से खुद को बचाने के लिए देश के संस्थानों को "नष्ट" करने की खातिर किसी भी हद तक जा सकती है.
  2. कांग्रेस ने बुधवार को आरोप लगाया कि चयन समिति की अनुमति के बिना सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा को रातोंरात हटा दिया गया क्योंकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी डरे हुये थे कि शीर्ष अधिकारी के उठाये गये कदमों के कारण राफेल ‘घोटाले' में उन्हें ‘नुकसान' हो सकता है. कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने कहा कि राफेल ‘घोटाले' पर पर्दा डालने का प्रधानमंत्री का ‘हताशा भरा प्रयास' है जिसके कारण केन्द्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) पूरी तरह ‘बिखर' गया है. उन्होंने दावा किया कि सरकार ‘घबराई' हुयी है क्योंकि वर्मा के जांच एजेंसी से मिली शिकायतों के आधार पर राफेल मुद्दे के सिलसिले में एक एफआईआर दायर करने की संभावना थी.
  3. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने सीबीआई की आंतरिक कलह के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को घेरने के वास्ते 2013 के उनके एक ट्वीट को रीट्वीट किया जिसमें मोदी ने तत्कालीन संप्रग सरकार पर देश के खुफिया तंत्र को कथित तौर पर कमजोर करने का आरोप लगाया था. सरकार ने सीबीआई के निदेशक आलोक वर्मा और विशेष निदेशक राकेश अस्थाना को एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगाने के चलते बुधवार को छुट्टी पर भेज दिया. इस मामले में केजरीवाल ने कई ट्वीट करके सीबीआई निदेशक को छुट्टी पर भेजने के मोदी सरकार के अधिकार पर प्रश्न उठाया और साथ ही संदेह जताया कि कहीं यह कदम राफेल सौदे से जुड़ा तो नहीं है. 
  4. वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने कहा है कि सीबीआई के निदेशक आलोक वर्मा लड़ाकू विमान राफेल की खरीद में कथित गड़बड़ी की जांच शुरु करने वाले थे, लेकिन जांच शुरु होने से पहले ही मोदी सरकार ने वर्मा की जगह पहले से भ्रष्टाचार की जांच से घिरे अधिकारी एम नागेश्वर राव को जांच एजेंसी का प्रभारी निदेशक बना दिया. 
  5. समाजवादी पार्टी (सपा) ने केन्द्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के निदेशक आलोक वर्मा के खिलाफ केन्द्र सरकार द्वारा की गयी कार्रवाई की निंदा करते हुये कहा है कि इससे सरकार की कार्यप्रणाली संदेह के घेरे में आ गयी है. 
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