
संजीव चतुर्वेदी की फाइल फोटो
नई दिल्ली:
प्रशासनिक अधिकारियों की सबसे बड़ी अदालत सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल, यानी कैट ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली अपॉइन्टेमेंट कमेटी ऑफ कैबिनेट, यानी एसीसी के एक अहम फैसले को रद्द कर दिया और कहा कि सरकार ने वर्ष 2002 बैच के आईएफएस अधिकारी संजीव चतुर्वेदी के मामले में एक ईमानदार अफसर के साथ ज्यादती की है।
दरअसल, बहुचर्चित अधिकारी संजीव चतुर्वेदी की काडर बदलने की याचिका को एसीसी ने रोक दिया था, जिसके खिलाफ चतुर्वेदी कैट गए थे। चतुर्वेदी ने अक्टूबर, 2012 में अपना काडर हरियाणा से बदलकर उत्तराखंड करने की मांग की थी, और कहा था कि हरियाणा में उन्हें जान का खतरा है।
चतुर्वेदी की इस याचिका को उत्तराखंड और हरियाणा सरकारों के साथ-साथ पर्यावरण मंत्रालय से भी हरी झंडी मिल चुकी थी, लेकिन इस साल जनवरी में एसीसी ने इस फैसले को रोक दिया, और दोनों राज्यों से एक बार फिर मंजूरी हासिल करने के लिए कहा। एसीसी के इस फैसले के खिलाफ चतुर्वेदी ने कैट में शिकायत कर दी।
अब कैट ने अपने फैसले में कहा है कि चतुर्वेदी के खिलाफ पैनल का फैसला बिना किसी जायज़ वजह के किया गया और यह प्रिंसिपल ऑफ नेचुरल जस्टिस के खिलाफ है। कैट ने पैनल के फैसले को रद्द करते हुए दो महीने के भीतर टाइम-बाउंड तरीके से इस पर दोबारा फैसला करने को कहा है।
कैट ने अपने फैसले में गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगौर की कृति 'गीतांजलि' का एक उद्धरण भी दिया, और कहा, चतुर्वेदी जब चाहें, अदालत के दरवाज़े उनके लिए हमेशा खुले हैं।
असल में संजीव चतुर्वेदी ने दिल्ली में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) का सीवीओ बनने से पहले हरियाणा में भी भ्रष्टाचार के कई मामलों को उजागर किया, जिसकी वजह से वहां उन्हें बहुत परेशान होना पड़ा।
एम्स आकर भी उन्होंने भ्रष्टाचार के कई मामले उजागर किए और पिछले साल जब उन्हें सीवीओ पद से हटाया गया तो काफी विवाद हुआ था। एम्स में उनके द्वारा उजागर किए गए भ्रष्टाचार के मामलों में दिल्ली हाइकोर्ट ने कई लोगों को नोटिस दिया था, जिनमें सीवीसी, सीबीआई और खुद स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा निजी हैसियत में शामिल हैं।
दरअसल, बहुचर्चित अधिकारी संजीव चतुर्वेदी की काडर बदलने की याचिका को एसीसी ने रोक दिया था, जिसके खिलाफ चतुर्वेदी कैट गए थे। चतुर्वेदी ने अक्टूबर, 2012 में अपना काडर हरियाणा से बदलकर उत्तराखंड करने की मांग की थी, और कहा था कि हरियाणा में उन्हें जान का खतरा है।
चतुर्वेदी की इस याचिका को उत्तराखंड और हरियाणा सरकारों के साथ-साथ पर्यावरण मंत्रालय से भी हरी झंडी मिल चुकी थी, लेकिन इस साल जनवरी में एसीसी ने इस फैसले को रोक दिया, और दोनों राज्यों से एक बार फिर मंजूरी हासिल करने के लिए कहा। एसीसी के इस फैसले के खिलाफ चतुर्वेदी ने कैट में शिकायत कर दी।
अब कैट ने अपने फैसले में कहा है कि चतुर्वेदी के खिलाफ पैनल का फैसला बिना किसी जायज़ वजह के किया गया और यह प्रिंसिपल ऑफ नेचुरल जस्टिस के खिलाफ है। कैट ने पैनल के फैसले को रद्द करते हुए दो महीने के भीतर टाइम-बाउंड तरीके से इस पर दोबारा फैसला करने को कहा है।
कैट ने अपने फैसले में गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगौर की कृति 'गीतांजलि' का एक उद्धरण भी दिया, और कहा, चतुर्वेदी जब चाहें, अदालत के दरवाज़े उनके लिए हमेशा खुले हैं।
असल में संजीव चतुर्वेदी ने दिल्ली में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) का सीवीओ बनने से पहले हरियाणा में भी भ्रष्टाचार के कई मामलों को उजागर किया, जिसकी वजह से वहां उन्हें बहुत परेशान होना पड़ा।
एम्स आकर भी उन्होंने भ्रष्टाचार के कई मामले उजागर किए और पिछले साल जब उन्हें सीवीओ पद से हटाया गया तो काफी विवाद हुआ था। एम्स में उनके द्वारा उजागर किए गए भ्रष्टाचार के मामलों में दिल्ली हाइकोर्ट ने कई लोगों को नोटिस दिया था, जिनमें सीवीसी, सीबीआई और खुद स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा निजी हैसियत में शामिल हैं।
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