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सदाकत आश्रम में CWC बैठक: पुराने दौर की यादों और नई चुनौतियों में फंसी कांग्रेस

1940 में कांग्रेस वर्किंग कमिटी की ऐतिहासिक बैठक के 85 साल बाद, पटना के सदाकत आश्रम को एक बार फिर से झाड़-पोंछकर सजाया जा रहा है. लेकिन इस बार लड़ाई स्वतंत्रता की नहीं, कांग्रेस के राजनीतिक पुनर्जीवन की है.

सदाकत आश्रम में CWC बैठक: पुराने दौर की यादों और नई चुनौतियों में फंसी कांग्रेस
  • 1940 में पटना के सदाकत आश्रम में कांग्रेस वर्किंग कमिटी (CWC) की पहली बैठक आयोजित हुई थी.
  • अब 85 साल बाद, इसी आश्रम में CWC बैठक होने जा रही है. पार्टी नेता इसे आजादी की दूसरी लड़ाई बता रहे हैं.
  • यह एक सच्चाई है कि तब कांग्रेस भारत की धड़कन थी, आज बिहार में उसकी मौजूदगी कमजोर स्पंदन भर है.
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पटना:

पटना में गंगा किनारे जहां नदी की धारा धीमी होकर शहर को अपनी गोद में समेटती है, वहीं बसा है सदाकत आश्रम. राजनीति का किला और समय का शांत श्रोता. 20 एकड़ में फैला यह परिसर अपने बरामदों और छायादार आंगन के साथ, भारत की बदलती कहानी का मूक साक्षी रहा है. 1940 में यह शांत आश्रम कुछ वक्त के लिए पूरे देश की धड़कन बन गया था. महात्मा गांधी के नंगे पांवों की आहट, जवाहर लाल नेहरू की बेचैन आधुनिकता और राजेंद्र प्रसाद की बिहार की मिट्टी जैसी स्थिरता, इस आश्रम ने हर मिजाज को महसूस किया है. 

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85 साल पहले CWC की बैठक

1940 में जहां आजादी का सपना आकार ले रहा था, उसी दौरान इस सदाकत आश्रम ने कांग्रेस वर्किंग कमिटी (CWC) की पहली बैठक अपने आगोश में आयोजित की थी. सिर्फ रणनीतियों पर नहीं, भारत के भविष्य की दिशा पर विचार किया था. स्वतंत्रता जब ब्रिटिश साम्राज्य की जंजीरों से जूझते एक सपने की तरह थी, भारत की परिकल्पना ने यहीं से पहली सांस ली थी. अब 85 साल के बाद, कांग्रेस वर्किंग कमिटी की बैठक एक बार फिर से यहीं पर आयोजित होने वाली है. इस बीच गंगा में बहुत पानी बह चुका है, हवा का रुख बदल चुका है और राजनीति नया आकार ले चुकी है. 

सदाकत का उर्दू में अर्थ होता है सच्चाई, सत्यता, ईमानदारी. पटना में इस सदाकत आश्रम को मौलाना मजहरुल हक ने 1921 के जुलाई महीने में, अपने साथी खैरून मियां की दी गई जमीन पर स्वतंत्रता आंदोलन के केंद्र के रूप में स्थापित स्थापित किया था. महात्मा गांधी, नेहरू, डॉ. राजेंद्र प्रसाद, मौलाना अबुल कलाम आजाद, जे.बी. कृपलानी, अनुग्रह नारायण सिन्हा और जयप्रकाश नारायण जैसे नेताओं के लिए यह सिर्फ एक ठिकाना नहीं बल्कि विचार-विमर्श और आंदोलन की योजना बनाने का केंद्र था. बिहार विद्यापीठ का मुख्यालय, कमला नेहरू बालिका हाई स्कूल और कमला नेहरू शिशु विहार के अलावा राजेंद्र प्रसाद स्मृति संग्रहालय भी इसी आश्रम परिसर में हैं. 

अब 'आजादी की दूसरी लड़ाई' 

1940 में CWC की ऐतिहासिक बैठक के 85 साल बाद, अब इस सदाकत आश्रम को झाड़-पोंछकर एक बार फिर से सजाया जा रहा है. लेकिन इस बार स्वतंत्रता की नहीं, राजनीतिक पुनर्जीवन की लड़ाई के लिए. कांग्रेस नेता इसे “आजादी की दूसरी लड़ाई” कह रहे हैं, बिहार को “राजनीतिक केंद्र” बता रहे हैं, यह एक सच्चाई है कि तब कांग्रेस भारत की धड़कन थी, आज बिहार में उसकी मौजूदगी एक कमजोर स्पंदन भर है.

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विडंबना साफ है, जहां कभी इन दीवारों ने आजादी की दस्तक सुनी थी, वहां अब नारेबाजी की कमजोर गूंज सुनाई देती है. महात्मा गांधी के दौर में कांग्रेस उन करोड़ों लोगों की आवाज थी, जिनके पास उम्मीद के सिवा कुछ नहीं था. आज पटना में वही कांग्रेस गठबंधन, सीटों की साझेदारी और राजनीतिक अस्तित्व बचाने की भाषा बोल रही है. तब स्वतंत्रता एक सपना था, आज सत्ता एक स्मृति है.

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कांग्रेस को खुद फिर से गढ़ना होगा

CWC के आयोजन को फिर भी केवल खोखली नाटकीयता कहना भारतीय राजनीति की स्मृति प्रधान प्रकृति को नजरअंदाज करना होगा. कांग्रेस यहां लौटकर इतिहास की गरिमा उधार लेना चाहती है. यह दिखाना चाहती है कि संघर्ष अभी खत्म नहीं हुआ है. कांग्रेस को देश को फिर से गढ़ने से पहले खुद को फिर से गढ़ना होगा. सदाकत आश्रम आने वाला हर दर्शक इसे महसूस करता है. नीम के पेड़, जर्जर दीवारें और गंगा की नमी से भरी हवाएं याद दिलाती हैं कि कभी गांधी का भारत इन्हीं गलियारों में टूटकर फिर से खड़ा हुआ था, आज की कांग्रेस को भी पहले खुद को पुनर्गठित करना होगा, तभी वह देश को नया आकार देने का दावा कर सकती है. पटना जो कभी क्रांति की प्रयोगशाला था, आज एक ऐसी पार्टी की मेजबानी कर रहा है जो अपनी प्रासंगिकता की तलाश में है.

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दीवारों पर दर्ज एक मौन सच्चाई

सदाकत आश्रम की दीवारें जो कभी स्वतंत्रता आंदोलन की गूंज से जीवंत थीं, आज एक अलग किस्म की खामोशी में लिपटी हैं. 1940 में कांग्रेस एक जनांदोलन थी. पूरे देश की उम्मीदें उसके कंधों पर थीं. 2025 में वही कांग्रेस स्मृतियों का सहारा लेकर खुद को संभालने की कोशिश कर रही है. तब नेता बलिदान की बात करते थे क्योंकि सत्ता एक सपना थी, आज संघर्ष की बात होती है क्योंकि सत्ता एक बीती याद बन चुकी है.

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बिहार में कांग्रेस के प्रभारी कृष्णा अल्लावरु द्वारा “दूसरी आजादी की लड़ाई” का आह्वान इस विरोधाभास को और गहरा बनाता है. पार्टी खुद को पुनर्जीवित करने के लिए अपने गौरवशाली अतीत की आभा उधार लेना चाहती है. लेकिन बिहार का मतदाता भावुकता से ज्यादा व्यावहारिक है. वह पटना की मिट्टी में गांधी की चप्पलों की आहट से नहीं, कांग्रेस को उसके वर्तमान स्वरूप की विश्वसनीयता से तौलता है. देखना ये है कि क्या सदाकत आश्रम में इतिहास फिर से लिखा जाएगा या सिर्फ एक और याद बनकर रह जाएगा.

संघर्ष से प्रतीक तक, सदाकत आश्रम का सफर

  • 1921 – पटना में मौलाना मजहरुल हक ने अपने सहयोगी खैरुन मियां की दान की गई जमीन पर 20 एकड़ में सदाकत आश्रम की स्थापना की, जो स्वतंत्रता आंदोलन का केंद्र बना.
  • 1940 – पटना के सदाकत आश्रम में कांग्रेस कार्यसमिति की ऐतिहासिक बैठक हुई, जिसमें महात्मा गांधी, नेहरू और राजेंद्र प्रसाद ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ प्रतिरोध को नई दिशा दी. यहीं से जनआंदोलन की नींव पड़ी.
  • 1942 – भारत छोड़ो प्रस्ताव, बॉम्बेः  इन बैठकों की ऊर्जा ने “करो या मरो” के आह्वान को जन्म दिया. कांग्रेस भारतीय राष्ट्रवाद की निर्विवाद आवाज बन गई.
  • 1947 – स्वतंत्रता: 15 अगस्त को पंडित नेहरू ने “नियति से साक्षात्कार” भाषण दिया और भारत ने ब्रिटिश शासन से आजादी पाई.
  • 1974 – पटना में सदाकत आश्रम से ही जयप्रकाश नारायण ने “संपूर्ण क्रांति” का ऐतिहासिक आंदोलन शुरू किया, जिसने देश की राजनीति को झकझोर दिया.
  • 2025 – कांग्रेस फिर से सदाकत आश्रम में CWC बैठक करने जा रही है. इस बार “दूसरी आज़ादी की लड़ाई” के नारे के साथ. लेकिन इस बार लड़ाई आजादी की नहीं बल्कि बदले हुए वक्त में चुनावी अस्तित्व और नैतिक प्रासंगिकता की है.

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