विज्ञापन
This Article is From Oct 01, 2020

डेढ़ दशक से लालू परिवार का गढ़ है राघोपुर विधानसभा सीट, तेजस्वी दूसरी बार किस्मत आज़माने को बेकरार

राघोपुर सीट यादव बहुल इलाका है. यह वैशाली जिले के हाजीपुर लोकसभा क्षेत्र के तहत पड़ता है, इस विधानसभा सीट के अंदर दो ब्लॉक (राघोपुर और बिदुपुर) आता है. यादवों के अलावा राजपूतों की भी यहां अच्छी आबादी है.

डेढ़ दशक से लालू परिवार का गढ़ है राघोपुर विधानसभा सीट, तेजस्वी दूसरी बार किस्मत आज़माने को बेकरार
पिता लालू यादव के साथ तेजस्वी यादव. (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:

बिहार का राघोपुर विधान सभा सीट हाई प्रोफाइल सीटों में शुमार रहा है. करीब डेढ़ दशक से भी ज्यादा समय से इस सीट पर लालू यादव (Lalu Yadav)  और उनके परिवार का दबदबा रहा है. राघोपुर सीट से पहली बार 1995 में लालू यादव ने किस्मत आजमाया. उनके लिए तत्कालीन सीटिंग विधायक उदय नारायण राय ने सीट छोड़ी थी. उसके बाद वहां से लालू यादव दो बार 1995 और 2000 में विधायक चुने गए. 2005 में उनकी सियासी विरासत पत्नी राबड़ी देवी ने संभाला लेकिन 2010 के चुनाव में राबड़ी देवी को जेडीयू के सतीश यादव से मुंह की खानी पड़ी.

2015 में जब लालू यादव और नीतीश कुमार का मिलन हुआ, तब इस सीट से लालू यादव के छोटे लाल तेजस्वी यादव की सफल लॉन्चिंग कराई गई. उस वक्त जेडीयू के सीटिंग विधायक सतीश कुमार यादव ने विद्रोह का बिगुल फूंकते हुए बीजेपी का दामन थाम लिया था. इस बार इस सीट पर जहां एनडीए में रार है, वहीं तेजस्वी दूसरी बार यहां से अपनी किस्मत आजमाने उतर सकते हैं. यहां का चुनाव इस बार रोचक रहने वाला है क्योंकि जेडीयू और बीजेपी दोनों हर हाल में तेजस्वी यादव को हार का स्वाद चखाना चाहेगी.

नीतीश कुमार ने आख‍िर अशोक चौधरी को कार्यकारी अध्यक्ष क्यों बनाया?

यादव बहुल इलाका है राघोपुर

राघोपुर सीट यादव बहुल इलाका है. यह वैशाली जिले के हाजीपुर लोकसभा क्षेत्र के तहत पड़ता है, इस विधानसभा सीट के अंदर दो ब्लॉक (राघोपुर और बिदुपुर) आता है. यादवों के अलावा राजपूतों की भी यहां अच्छी आबादी है. राजद के दिवंगत नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह का भी इस इलाके में अच्छा खासा प्रभाव रहा है.

1977 से फिर कभी नहीं जीती कांग्रेस

1972 और उससे पहले इस सीट पर कांग्रेस की जीत होती रही थी लेकिन  1977 में यहां से जनता पार्टी के बावूलाल शास्त्री ने कांग्रेस की जीत का सिलसिला खत्म कर दिया. इसके बाद उदय नारायण राय 1980 से 1995 तक लगातार तीन बार विधायक चुने गए. वो पहले जनता पार्टी फिर जनता दल के टिकट पर चुने जाते रहे. बाद में वो राष्ट्रीय जनता दल में शामिल हुए और लालू-राबड़ी सरकार में मंत्री भी रहे लेकिन पिछले महीने उन्होंने अपनी उपेक्षा से नाराज होकर राजद छोड़ दी. उनके समर्थक इलाके में तेजस्वी का विरोध कर रहे हैं. इस लिहाज से यहां चुनावी लड़ाई रोचक हो गई है.

बिहार चुनाव: नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार के सामने तेजस्वी यादव की हैं ये पांच चुनौतियां

2015 में तेजस्वी को मिले थे 48 फीसदी वोट

2015 में तेजस्वी यादव को यहां 48.15 फीसदी वोट मिले थे. उन्हें कुल 91, 236 मत मिले थे जबकि उनके प्रतिद्वंदी बीजेपी के सीतश यादव ने 37 फीसदी वोटों के साथ 68,503 वोट हासिल किए थे. यहीं से पोलिटिकल एंट्री लेकर तेजस्वी सीधे राज्य के उप मुख्यमंत्री बने थे. इस बार यहां दूसरे चरण में 3 नवंबर को मतदान होंगे और 10 नवंबर को वोटों की गिनती होगी.
 

वीडियो: बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले बनते, बिगड़ते समीकरण

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com