बिहार में उपचुनाव के परिणाम निश्चित रूप से सब के लिए चौंकाने वाले रहे हैं ख़ासकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए जिन्हें दरौंदा छोड़कर सभी सीटों पर जीतने की उम्मीद थी. इसलिए आज का परिणाम नीतीश कुमार के लिया करारा झटका है. हालांकि उनके समर्थक कहते हैं कि उपचुनाव के परिणाम का अति विश्लेषण नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि पिछले दस साल के दौरान बिहार का चुनावी इतिहास तो यही कहता हैं कि उपचुनाव में एनडीए की पराजय होती है और उसके एक साल के अंदर होने वाले चुनाव का परिणाम उल्टा हो जाता है फिर चाहे वो लोकसभा हो या फिर विधानसभा. लेकिन जो परिणाम आए है उसके कुछ संदेश साफ़ है सबसे पहला ये कि प्रत्याशी किसी भी दल का हो वोटर परिवारवाद नहीं चाहता. लेकिन इस चुनाव में सांसदों ने अपने ही परिवार के सदस्यों को टिकट दिलाया लेकिन जनता ने इन प्रत्याशियों को नकार दिया. सबसे पहला विधान सभा क्षेत्र दरौंदा हैं जहाँ से जनता दल यूनाइट के अजय सिंह निर्दलीय व्यासदेव सिंह से हार गये. जीत हार का अंतर सत्रह हज़ार से अधिक वोट का था.
दूसरा बेलहर जहां बांका से सांसद गिरिधारी यादव के भाई ललधारी यादव को हार का मुंह देखना पड़ा. यहां से आरजेडी के रामदेव यादव जीते. इसके बाद किशनगंज सीट जहां कांग्रेस के सांसद डॉक्टर जावेद ने अपनी मां सैयदा बानु को टिकट तो दिलवा दिया लेकिन वो तीसरे स्थान पर रहीं. ओवैसी के पार्टी एआईएमआईएम के उम्मीदवार कमरुल यहां से खाता खोलने में कामयाब रहे. लेकिन नीतीश कुमार के लिए सबसे चौंकाने वाला परिणाम सिवनी बख्तियारपुर कर रहा जहां उन्हें उम्मीद भी नहीं रही होगी की दो सांसद दिनेश यादव और चौधरी महबूब अली कैसर के संयुक्त चुनावी अभियान के बाद भी उनकी पार्टी के उम्मीदवार डॉक्टर अरुण कुमार को आरजेडी उम्मीदवार ज़फ़र आलम हराने में क़ामयाब रहेय. इस का कारण VIP पार्टी के उम्मीदवार दिनेश भी हैं जो 25, हज़ार वोट पाने में क़ामयाब रहे. ये वोट निश्चित रूप से जनता दल युनाइट को जाता और इस परिणाम के बाद फ़िलहाल मुकेश निषाद की 'राजनीतिक दुकान' चलती रहेगी.
वहीं दरौंदा की सीट पर भी तेजस्वी यादव अपने आधारभूत यादव मुस्लिम ख़ासकर यादव वोटरों को अपने पार्टी के उम्मीदवार उमेश सिंह को ट्रांसफर करा पाने में क़ामयाब नहीं रहे क्योंकि यहां पर एक निर्दलीय शैलेन्द्र यादव को क़रीब 17000 हज़ार वे अधिक वोट आये जिसमें अधिकांश यादव वोटर ही हैं.
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