New Delhi:
पश्चिम बंगाल में 34 साल से सत्तारूढ़ वाम मोर्चा शासन के इस बार परिवर्तन की लहर में शुक्रवार को बह जाने का अनुमान लगाया जा रहा है। हालांकि कम्युनिस्ट नेताओं को अभी भी कहीं ये आस है कि काफी क्षति के बाद भी उनका किला शायद पूरी तरह ढहने से बच जाए। 2006 के विधानसभा चुनाव में सत्तारूढ़ वाम मोर्चा की जबर्दस्त जीत के बाद 2009 में लोकसभा चुनाव के परिणाम और आंकड़े राज्य में परिवर्तन की बयार की विश्लेषकों की भविष्यवाणी को पुष्ट करते दिख रहे हैं। 2004 के लोकसभा चुनाव के नतीजों की तुलना में वामामोर्चा को 2009 में न केवल 20 सीटें गंवानी पड़ी थी, बल्कि उसके वोट प्रतिशत में करीब सात प्रतिशत की गिरावट भी दर्ज की गई। 2004 के लोकसभा चुनाव में वाममोर्चा ने राज्य की 42 में 35 सीटों पर जीत दर्ज की थी। राज्य में 2006 के विधानसभा चुनाव में वाममोर्चा के हाथों मामता बनर्जी नीत तृणमूल को करारी पराजय का सामना करना पड़ा था। 294 सीटों पर हुए मतदान में वाममोर्चा को 235 सीटें मिली थी, जबकि तृणमूल कांग्रेस को महज 29 सीटों से संतोष करना पड़ा था। हालांकि इसके तीन साल बाद 2009 में हुए लोकसभा चुनाव में राज्य की 42 सीटों में से माकपा को महज छह मिली, जबकि तृणमूल कांग्रेस को 19 और उसकी सहयोगी कांग्रेस को छह सीट मिली। लोकसभा चुनाव के नतीजों के अनुरूप इन सीटों को विधानसभा सीट के रूप में बदलने पर वाममोर्चा के घटकर 101 और कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस गठबंधन के 190 से अधिक सीट जीतने का अनुमान है। 2006 के विधानसभा चुनाव में अकेले माकपा को सबसे अधिक 175 सीट मिली थी और 2001 के चुनाव की तुलना में उसे 32 सीटों का फायदा हुआ था।
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