असम के रियल हीरो की यह आकर्षक कहानी है. राज्य के शिवसागर जिले के एक ग्रामीण अस्पताल में काम करने वाले वाले Anesthesiologist डॉ. सुरजीत गिरि, राज्यभर के सांप के काटे 1200 से अधिक लोगों का इलाज कर चुके हैं. 'स्नेक डॉक्टर' के नाम से लोकप्रिय गिरि एक दशक से अधिक समय से असम के ग्रामीण इलाकों में सर्पदंश के मरीजों का इलाज कर रहे हैं. यही नहीं, उन्होंने ग्रामीण अस्पताल में सांप के काटने के इलाज के नए मॉडयूल के साथ 'स्नेक बाइट वार्ड' भी विकसित किया है जिसका अब तक 100 फीसदी का सक्सेस रेट है.
गुवाहाटी से करीब 400 किमी दूर, शिवसागर जिले के ग्रामीण अस्पताल के डेमो कम्युनिटी हेल्थ सेंटर (CHC) में 47 वर्षीय सुरजीत गिरि एक बेहद खास और अनोखे वार्ड में जाते हैं जो पूरे असम में केवल इसी ग्रामीण अस्पताल में है-यह है स्नेक बाइट रूम. एक युवा मरीज अभी-अभी यहां आया है जिसे डॉ. गिरि की फर्स्ट रिएक्शन टीम या FRT ने जीवनरक्षक दवा दी है. डॉ. गिरि ने इस मरीज का परीक्षण किया और इसे खतरे से बाहर (out of danger) पाया. 'स्नेक बाइट रूम' में सांप के काटे लोगों के इलाज के लिए सभी जीवनरक्षक दवाएं, उपकरण और प्रशिक्षित स्टाफ मौजूद है. सांप के काटने के इलाज के लिए इस टीम और रूम को डॉक्टर गिरि ने ही 2018 में विकसित और प्रारंभ किया था.
डॉ. गिरि ने एनडीटीवी को बताया, "वर्ष 2008 में सर्पदंश की शिकार एक महिला की हमारे सामने ही मौत हो गई थी. हमने उसे कोई विष/जहर रोधी इंजेक्शन नहीं लगाया और इलाज के उचित प्रोटोकॉल और गाइडलाइंस की जानकारी भी हमें नहीं थी. हमने मरीज को उच्च सेंटर के लिए रैफर किया था और रास्ते में ही उसकी मौत हो गई. इस घटना ने हमें हिलाकर रख दिया और हमने इसके बाद सर्पदंश के रोगियों को बचाने की चुनौती को स्वीकार करने का फैसला किया. "
तब से अब तक डॉक्टर गिरिऔर उनकी टीम, सर्पदंश के 760 मरीजों का इलाज CHC में कर चुकी है. इस दौरान कोई मौत नहीं हुई और 100 फीसदी का सक्सेस रेट है. करियर की शुरुआत से अब तक डॉ. गिरि 1200 से अधिक सर्पदंश के मरीजों को इलाज कर चुके हैं. अकेले वर्ष 2021 में ही उन्होंने CHC में 464 मरीजो का इलाज किया. यह गरीब लोगों की मदद के लिए आईसीयू और महंगी दवाओं की भागीदारी के बगैर, सरकारी अस्पताल में सर्पदंश के मरीजों के इलाज में मदद के लिए स्वप्रेरित मिशन के हिस्से के रूप में था.
डॉ गिरि कहते हैं, "भारत में विष रोधी (Anti venom) इंजेक्शन कोबरा, करैत, रसेल, वाइपर और शॉर्ट स्केल वाइपर जैसे बड़े सांपों के जहर से बनाया जाता है लेकिन रसेल वाइपर और शार्ट स्केल वाइपर असम में मौजूद नहीं हैं. लेकिन पिट वाइपर की अच्छी खासी मौजूदगी है जिससे विष रोधी नहीं बनता. ऐसे में हम नया प्रोटोकॉल लेकर आए और इस स्नेक बाइट रूम की स्थापना की. हमने Venom Response Team या VRT और FRT का गठन किया है. हम कमजोर समुदायों के लोगों तक गए और सर्पदंश को लेकर लोगों को जागरूक किया और इन लोगों से Venom response team तैयार की. "
डॉ. गिरि के अनुसार, पिट वाइपर द्वारा काटे गए मरीज पर 55 Anti-venom doses ने रिस्पांस नहीं किया. यहां तक कि खून में कोई जमाव नहीं था, ऐसे में विकल्प के तौर पर उसे ग्लिसरीन के साथ मैग्नीशियम सल्फेट दिया गया जो काम कर गया. उन्होंने सफलता के साथ पारंपरिक anti venom (विष रोधी) के बिना पिट वाइपर के काटने का इलाज किया है. इस प्रोटोकॉल को टॉक्सिकोलॉजी पर एक जर्नल में भी प्रकाशित किया गया है. मरीजों के लिए यह बड़ी राहत की बात है.
सर्प दंश की शिकार करिश्मा चांगमेई बताती हैं, "मुझे पिट वाइपर सांप ने घर में काटा था. बहुत दर्द था. मुझे तुरंत इस अस्पताल लाया गया, इन्होंने मेरा इतना अच्छा इलाज किया कि 12 दिन में मैं पूरी तरह ठीक हो गई." डॉ गिरि के प्रयास स्नेक बाइट रूम में लोगों की जान बचाने तक ही सीमित नहीं रहते, बल्कि इसकी शुरुआत ग्रामीण इलाकों से होती है जहां सांपों का काटना आम बात है. ऐसा गर्मी के मौसम में ज्यादा होता है. वीकेंड पर भी वे छुट्टी नहीं लेते बल्कि इसका उपयोग सर्पदंश को लेकर जागरूकता शिविर आयोजित करने और VRT (venom response team) मॉडल को प्रमोट करने के लिए करते हैं. वे विष प्रतिक्रिया टीम यानी VRT के लिए वालेंटियर्स की तलाश में जुटे हैं.
VRT का एक सदस्य पार्थ नाथ बताता है, "जिस क्षण हमें किसी को सांप के काटने के बारे में पता चलता है, हम मरीज के घर जाते हैं. मरीज और उसके घाव का फोटो लेते हैं और इसे VRT के व्हाट्सएप ग्रुप के पास भेजते हैं. डॉक्टर और उनकी टीम जवाब देती है कि हमें क्या करने की जरूरत है और हम मरीज को अस्पताल शिफ्ट करते हैं. "
हालांकि चुनौती सांप के काटने के इलाज के साथ अंधविश्वासों से लड़ने की भी है जहां ग्रामीण, मरीजों को झोलाछाप डॉक्टरों के पास ले जाकर इलाज के सुनहरे घंटे गंवा देते हैं. पिछले कुछ वर्षों में डॉक्टर गिरि ने 140 से ज्यादा जागरूकता शिविरों का आयोजन किया है और इसके उत्साहवर्धक परिणाम आ रहे हैं.
डेमो के स्थानीय ग्रामीण ब्रजेन फूकन ने एनडीटीवी से कहा, "हमारा गांव पिछड़े इलाकों में है,ऐसे में सांप के काटने के इलाज को लेकर जागरूकता बेहद कम है. हम झोलाछाप डॉक्टरों पर निर्भर थे लेकिन जागरूकता शिविरों के कारण अब स्थिति बदल गई है और इस क्षेत्र के सांप काटने के 95 फीसदी पेशेंट डॉक्टर के अस्पताल जाते हैं." नजदीक के चाय बागान में काम करने वाली पूर्णिमा तांती जैसी पेशेंट के लिए कोबरा द्वारा काटे जाने के बावजूद जीवित रहना किसी वरदान से कम नहीं है.
वे कहती हैं, "मैं केवल इस डॉक्टर के कारण बच पाई हूं.मेरी आवाज बंद होती जा रही थी. जुबान बाहर निकल आई थी, मैं मरने ही वाली थी लेकिन उन्होंने मुझे बचा लिया. अगर मैं मर जाती तो पूरा परिवार बिखर जाता क्योंकि मैं ही परिवार की कमाने वाली हूं और मेरा बचना महत्वपूर्ण था."
डॉ. गिरि कहते हैं कि सर्पदंश एक तरह से गरीब आदमी की बीमारी है और इसका इलाज ग्रामीण स्वास्थ्य सुविधा (rural health facility) में करना पड़ता है. देश में हर साल औसतन 58 हजार लोगों की मौत सर्पदंश के कारण होती है जो पूरी दुनिया में सर्पदंश से होने वाली मौतों का करीब 50 प्रतिशत है. ऐमें डॉ. गिरि का VRT प्रोटोकॉल, अनुसरण के लिहाज से कई लोगों के लिए मॉडल हो सकता है.
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