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मेडिकल बोर्ड बनाने को कहा, डॉक्टरों ने रेप पीड़िता का गर्भपात करा दिया; हाईकोर्ट ने जताई नाराजगी

कलकत्ता हाईकोर्ट ने कहा- गर्भावस्था के चिकित्सीय समापन की इजाजत नहीं दी गई थी, बल्कि केवल इसके अच्छे और बुरे प्रभाव के बारे में रिपोर्ट मांगी गई थी.

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मेडिकल बोर्ड बनाने को कहा, डॉक्टरों ने रेप पीड़िता का गर्भपात करा दिया; हाईकोर्ट ने जताई नाराजगी
कलकत्ता हाईकोर्ट.
कोलकाता:

डॉक्टरों की एक टीम ने एक बलात्कार पीड़िता की गर्भावस्था को चिकित्सकीय रूप से खत्म (गर्भपात) कर दिया. इस पर कलकत्ता हाईकोर्ट ने नाराजगी जताई. हाईकोर्ट ने डॉक्टरों की टीम से स्पष्टीकरण मांगा है कि केवल फायदे और नुकसान का पता लगाने के लिए एक मेडिकल बोर्ड गठित करने का आदेश दिया गया था, लेकिन इसके बावजूद ऐसा क्यों किया गया?

पश्चिम बंगाल सरकार की ओर दाखिल की गई एक रिपोर्ट में कहा गया है कि गर्भपात पहले ही करा दिया गया है. संबंधित डॉक्टरों की ओर से आदेश से आगे जाकर कार्रवाई की गई है. जस्टिस सब्यसाची भट्टाचार्य ने शुक्रवार को कहा कि कोर्ट ने गर्भावस्था के चिकित्सीय समापन की इजाजत नहीं दी थी, बल्कि केवल इसके अच्छे और बुरे प्रभाव के बारे में एक रिपोर्ट मांगी थी.

जस्टिस भट्टाचार्य ने प्रक्रिया को अंजाम देने वाले संबंधित डॉक्टरों को स्पष्टीकरण देने का आदेश दिया है. उन्होंने कहा है कि अदालत के किसी भी निर्देश के बिना "इतनी जल्दबाजी में" गर्भपात क्यों किया गया? हाईकोर्ट ने निर्देश दिया है कि 9 फरवरी को उसके समक्ष दाखिल की जाने वाली रिपोर्ट में यह बताया जाना चाहिए कि क्या ऐसी तात्कालिकता का कोई विशेष कारण था?

जस्टिस भट्टाचार्य ने 29 जनवरी को पश्चिम बंगाल सरकार को निर्देश दिया था कि वह रेप पीड़िता की स्थिति की जांच करने के लिए एक मेडिकल बोर्ड का गठन करे और 2 फरवरी को अदालत में इसकी रिपोर्ट दाखिल करे. पीड़िता रेप की घटना के कारण गर्भवती हो गई थी और वह अपना गर्भपात कराना चाहती थी.

याचिकाकर्ता पीड़िता के वकील ने कोर्ट से कहा था कि वह गंभीर मानसिक आघात झेल रही है और ऐसे में कोर्ट गर्भावस्था के चिकित्सीय समापन की इजाजत दे. उसका गर्भ 20 से 24 सप्ताह के बीच का बताया गया था.

सरकार के वकील ने पीड़िता की प्रार्थना का विरोध न करते हुए कहा था कि, याचिका के मुताबिक रेप की वारदात 28 जुलाई, 2023 को हुई थी. ऐसे में गर्भावस्था बताई गई अवधि से कहीं अधिक उन्नत हो सकती है.

जस्टिस भट्टाचार्य ने इस पर कहा था कि अदालत इस क्षेत्र में विशेषज्ञ नहीं है. याचिकाकर्ता की गर्भावस्था के मेडिकल टर्मिनेशन के अच्छे-बुरे असर का पता लगाने के लिए एक मेडिकल बोर्ड का गठन किया जाना जरूरी है.

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