मराठवाड़ा:
मराठवाड़ा में परेशान किसान आत्महत्या करता ही जा रहा है, सरकारी आंकड़े कहते हैं अब तक 660 किसान आत्महत्या कर चुके हैं, लेकिन इन आंकड़ों के आने के बाद भी दो किसानों ने खुदकुशी कर ली। यहां एक हफ्ते में करीब 32 किसान खुदकुशी कर चुके हैं।
जालना के करीब वडजी गांव में कांताबाई के आंसू रोके नहीं रुक रहे। 27 साल का बेटा सुरेश सुबह घर से निकला था। यह कहकर गया कि वह फांसी लगा लेगा। बूढ़ी मां पीछे दौड़ी, लेकिन बेटे के गले से लिपटे फंदे से रेस हार गई। सुरेश की 23 साल की बीवी सदमे से अस्पताल में है। 4 साल का बेट युद्धजीत और 2 साल की बिटिया प्रगति है। दोनों को पता नहीं कि उनके घर में इतने लोग क्यों आए हैं। एक मेहंदी लगाकर इठला रही है, दूसरा गुमसुम है।
सुरेश ने घर, मोटरसाइकिल, फसल के लिए पांच बैंकों से कर्ज ले रखा था। ब्याज सहित वह रकम दस लाख हो गई। तीन एकड़ में मौसंबी लगा रखी थी, उसमें फल नहीं आए। कपास भी बर्बाद हो गई। इसके बाद सुरेश ने मौत को गले लगाना बेहतर समझा। सुरेश की बहन शोभा ने कहा, वह बैंक वालों से परेशान था, उसके कई नोटिस भी आए थे। अब क्या होगा, हमारा पूरा परिवार बिखर गया। वडजी गांव में पानी की भारी किल्लत है, थोड़ी बहुत बरसात शुरू हुई है, जो अब फसल के लिए किसी काम की नहीं।
कर्ज से परेशान संगीता ने की खुदकुशी
मराठवाड़ा के कई इलाकों में लोग खराब फसल के अलावा साहूकारों के चंगुल में फंसने से परेशान हैं। अखातवाड़ा में एक किसान की पत्नी ने आत्महत्या कर ली, क्योंकि पति ने जो कपास की फसल लगाई वह कम बरसात से बर्बाद हो गई। ऐसे में बेटे की शादी के लिए लिया गया कर्ज चुकाना मुश्किल हो रहा था।
35 साल की संगीता महस्के के पति बद्रीनाथ ने ढाई एकड़ खेत में कपास लगाई थी, जिससे इस बार लागत निकलना भी मुश्किल है। डेढ़ साल पहले बेटी की शादी के लिए जो कर्ज लिया था, उसका बोझ अलग। एक दिन चुपचाप दोपहर में घर के सारे दरवाजे बंद किए और आंगन में ही फांसी लगा ली।
संगीता के पति ने हमें बताया, मैं तहसील कार्यालय किसी काम से गया था। दोपहर में आया तो देखा दरवाजा बंद था। मैंने जोर से आवाज लगाई किसी ने दरवाजा नहीं खोला, मैंने झांककर देखा तो वह आंगन में फांसी पर लटकी थी।
संगीता के पति ने रिश्तेदारों से बेटी की शादी के लिए 4 लाख रुपये का कर्ज लिया था। खेती के लिए भी 80000 का कर्ज था। पत्नी की मौत के बाद सरकार ने उन्हें एक लाख रुपये का मुआवजा तो दे दिया है, लेकिन ये मदद देर से मिली है और शायद दुरुस्त भी नहीं है।
संतोष काकडे ने 15000 रुपये के कर्ज से परेशान होकर कर ली खुदकुशी
मराठवाड़ा के औरंगाबाद में सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, इस साल अब तक 83 किसान खुदकुशी कर चुके हैं, इस आंकड़े में इजाफा होता ही जा रहा है। तांडा गांव के संतोष कोकडे ने महज 15000 रुपये के कर्ज से परेशान होकर आत्महत्या कर ली।
तांडा के रहने वाले 35 साल के संतोष भाऊसाहेब कोकडे का सोमवार को श्रावण का व्रत था, पत्नी फलहार लेकर खेत पर पहुंची तो देखा वह नीम के पेड़ में फंदा लगाकर जान दे चुके हैं। एक एकड़ जमीन पर 150 मौसंबी के पेड़ थे। फसल के लिए 15000 का कर्ज लिया था। परिवार में पत्नी के अलावा बूढ़े पिता और दो बच्चे हैं। उनकी पत्नी तारा ने हमें बताया कि मैं जैसे ही डिब्बा लेकर खेत पर पहुंची तो देखा वह पेड़ पर लटके हुए हैं। मैंने बहुत आवाज़ लगाई 10 मिनट बाद उनके भाई और बाकी लोग आए। उन्हें नीचे उतारा, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। पिता भाऊसाहेब कोकडे की बूढ़ी आंखें लगातार नम बनी हुई थीं। प्रशासन से नाराजगी भी थी। उन्होंने कहा कि 16 घंटे तक संतोष के शव का पोस्टमॉर्टम भी नहीं हुआ, अभी तक शासन से कोई भी उनकी सुध लेने नहीं आया है। ना ही कोई मुआवजा मिला है।
कुल मिलाकर इलाके में हर किसान की एक ही तकलीफ है। घर का खर्च चलाना मुश्किल हो रहा है। सरकारें किसानों के लिए कई ऐलान करने में जुटी हैं, लेकिन साफ है, जमीन पर बड़े बदलाव नहीं हो रहे हैं।
जालना के करीब वडजी गांव में कांताबाई के आंसू रोके नहीं रुक रहे। 27 साल का बेटा सुरेश सुबह घर से निकला था। यह कहकर गया कि वह फांसी लगा लेगा। बूढ़ी मां पीछे दौड़ी, लेकिन बेटे के गले से लिपटे फंदे से रेस हार गई। सुरेश की 23 साल की बीवी सदमे से अस्पताल में है। 4 साल का बेट युद्धजीत और 2 साल की बिटिया प्रगति है। दोनों को पता नहीं कि उनके घर में इतने लोग क्यों आए हैं। एक मेहंदी लगाकर इठला रही है, दूसरा गुमसुम है।
सुरेश ने घर, मोटरसाइकिल, फसल के लिए पांच बैंकों से कर्ज ले रखा था। ब्याज सहित वह रकम दस लाख हो गई। तीन एकड़ में मौसंबी लगा रखी थी, उसमें फल नहीं आए। कपास भी बर्बाद हो गई। इसके बाद सुरेश ने मौत को गले लगाना बेहतर समझा। सुरेश की बहन शोभा ने कहा, वह बैंक वालों से परेशान था, उसके कई नोटिस भी आए थे। अब क्या होगा, हमारा पूरा परिवार बिखर गया। वडजी गांव में पानी की भारी किल्लत है, थोड़ी बहुत बरसात शुरू हुई है, जो अब फसल के लिए किसी काम की नहीं।
कर्ज से परेशान संगीता ने की खुदकुशी
मराठवाड़ा के कई इलाकों में लोग खराब फसल के अलावा साहूकारों के चंगुल में फंसने से परेशान हैं। अखातवाड़ा में एक किसान की पत्नी ने आत्महत्या कर ली, क्योंकि पति ने जो कपास की फसल लगाई वह कम बरसात से बर्बाद हो गई। ऐसे में बेटे की शादी के लिए लिया गया कर्ज चुकाना मुश्किल हो रहा था।
35 साल की संगीता महस्के के पति बद्रीनाथ ने ढाई एकड़ खेत में कपास लगाई थी, जिससे इस बार लागत निकलना भी मुश्किल है। डेढ़ साल पहले बेटी की शादी के लिए जो कर्ज लिया था, उसका बोझ अलग। एक दिन चुपचाप दोपहर में घर के सारे दरवाजे बंद किए और आंगन में ही फांसी लगा ली।
संगीता के पति ने हमें बताया, मैं तहसील कार्यालय किसी काम से गया था। दोपहर में आया तो देखा दरवाजा बंद था। मैंने जोर से आवाज लगाई किसी ने दरवाजा नहीं खोला, मैंने झांककर देखा तो वह आंगन में फांसी पर लटकी थी।
संगीता के पति ने रिश्तेदारों से बेटी की शादी के लिए 4 लाख रुपये का कर्ज लिया था। खेती के लिए भी 80000 का कर्ज था। पत्नी की मौत के बाद सरकार ने उन्हें एक लाख रुपये का मुआवजा तो दे दिया है, लेकिन ये मदद देर से मिली है और शायद दुरुस्त भी नहीं है।
संतोष काकडे ने 15000 रुपये के कर्ज से परेशान होकर कर ली खुदकुशी
मराठवाड़ा के औरंगाबाद में सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, इस साल अब तक 83 किसान खुदकुशी कर चुके हैं, इस आंकड़े में इजाफा होता ही जा रहा है। तांडा गांव के संतोष कोकडे ने महज 15000 रुपये के कर्ज से परेशान होकर आत्महत्या कर ली।
तांडा के रहने वाले 35 साल के संतोष भाऊसाहेब कोकडे का सोमवार को श्रावण का व्रत था, पत्नी फलहार लेकर खेत पर पहुंची तो देखा वह नीम के पेड़ में फंदा लगाकर जान दे चुके हैं। एक एकड़ जमीन पर 150 मौसंबी के पेड़ थे। फसल के लिए 15000 का कर्ज लिया था। परिवार में पत्नी के अलावा बूढ़े पिता और दो बच्चे हैं। उनकी पत्नी तारा ने हमें बताया कि मैं जैसे ही डिब्बा लेकर खेत पर पहुंची तो देखा वह पेड़ पर लटके हुए हैं। मैंने बहुत आवाज़ लगाई 10 मिनट बाद उनके भाई और बाकी लोग आए। उन्हें नीचे उतारा, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। पिता भाऊसाहेब कोकडे की बूढ़ी आंखें लगातार नम बनी हुई थीं। प्रशासन से नाराजगी भी थी। उन्होंने कहा कि 16 घंटे तक संतोष के शव का पोस्टमॉर्टम भी नहीं हुआ, अभी तक शासन से कोई भी उनकी सुध लेने नहीं आया है। ना ही कोई मुआवजा मिला है।
कुल मिलाकर इलाके में हर किसान की एक ही तकलीफ है। घर का खर्च चलाना मुश्किल हो रहा है। सरकारें किसानों के लिए कई ऐलान करने में जुटी हैं, लेकिन साफ है, जमीन पर बड़े बदलाव नहीं हो रहे हैं।
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