दिल्ली स्थित जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) में छात्रों से मारपीट के मुद्दे पर देशभर में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. बीते रविवार करीब 50 नकाबपोश बदमाशों ने कैंपस में घुसकर लेफ्ट समर्थित छात्रों पर लोहे की रॉड, लाठी-डंडों और धारदार हथियारों से वार किया. हमले में छात्रसंघ अध्यक्ष आयशी घोष (Aishe Ghosh) को भी काफी चोट आई. उन्होंने ABVP पर बाहरी लोगों के साथ मिलकर हमला करने का आरोप लगाया. दिल्ली पुलिस मामले की जांच कर रही है. नोबेल पुरस्कार से सम्मानित और देश के मशहूर अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन (Amartya Sen) ने इस घटना की निंदा की है. उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में छात्रों को सरकार के प्रतिद्वंदी के तौर पर देखा जा रहा है.
JNU हिंसा और नागरिकता कानून के खिलाफ देशभर में छात्रों के प्रदर्शन पर अमर्त्य सेन ने कहा, 'ज्यादातर यूनिवर्सिटीज़ के छात्र आज प्रदर्शन कर रहे हैं. मैं 1951 से 1953 तक प्रेसीडेंसी कॉलेज (उस समय प्रेसीडेंसी यूनिवर्सिटी) का छात्र था. उस समय भी छात्रों पर सरकारी विरोधी होने का आरोप लगा था लेकिन आज जैसा नहीं था. आज विश्वविद्यालयों को सरकार के प्रतिद्वंदी के तौर पर देखा जाने लगा है.' JNU हिंसा को लेकर उन्होंने कहा, 'कुछ बाहरी लोगों ने छात्रों से मारपीट की और कानून का राज खत्म करने की कोशिश की. विश्वविद्यालय प्रशासन इसे रोक नहीं सका. पुलिस भी वहां सही समय पर नहीं पहुंची.'
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उन्होंने आगे कहा, 'इस कानून के तहत चाहें नागरिकता दी जा रही हो या नहीं ये बाद में शख्स के धर्म के आधार पर तय होगा. ये संविधान की भावना के खिलाफ है. मुझे लगता है कि इस कानून को खत्म कर देना चाहिए क्योंकि इस तरह के कानून को पहली बार में पारित नहीं किया जाना चाहिए था.' अमर्त्य सेन ने आगे कहा कि उनके पास भी जन्म प्रमाण पत्र नहीं है. उन्होंने कहा, 'मेरे पास तो बर्थ सर्टिफिकेट भी नहीं है. मैं भीरभूम जिले बोलपुर स्थित शांतिनिकेतन में पैदा हुआ था.' बताते चलें कि नागरिकता संशोधन बिल पिछले साल दिसंबर में दोनों सदनों से पारित हो गया था. राष्ट्रपति के दस्तखत के बाद यह कानून बन गया. इस कानून के तहत बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान में रह रहे हिंदू, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन और पारसी नागरिकों को भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान है.
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