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गाजियाबाद में सफल हो पाएगा अखिलेश का दलित कैंडिडेट उतारने का प्रयोग? जानें क्या हैं जातीय समीकरण

गाजियाबाद विधानसभा सीट पर हो रहे उपचुनाव में दलित समाज से आने वाले सिंहराज जाटव को उम्मीदवार बनाया है. इससे गाजियाबाद की लड़ाई दिलच्स्प हो गई है. आइए देखते हैं कि गाजियाबाद सदर सीट पर कैसे बन रहे हैं समिकरण बन रहे हैं.

गाजियाबाद में सफल हो पाएगा अखिलेश का दलित कैंडिडेट उतारने का प्रयोग? जानें क्या हैं जातीय समीकरण
नई दिल्ली:

समाजवादी पार्टी ने गुरुवार को गाजियाबाद से अपने उम्मीदवार की घोषणा की. सपा ने गाजियाबाद सीट पर होने वाले उपचुनाव के लिए सिंहराज जाटव को अपना उम्मीदवार बनाया है. सपा की इस घोषणा ने सबको चौंकाया, सामान्य सीट गाजियाबाद पर एक दलित को उम्मीदवार बनाया है. सपा के इस कदम से बाकी के दलों के लिए परेशानी पैदा कर दी है.अब उनके सामने अपने कोर वोटरों में बिखराव को बचाने की चुनौती है.इसके साथ ही गाजियाबाद का मुकाबला दिलचस्प हो गया है. गाजियाबाद में बीजेपी ने ब्राह्मण, सपा ने दलित और बसपा ने वैश्य उम्मीदवार उतार दिया है.सपा ने अंतिम बार इस सीट पर 2004 में जीत दर्ज की थी.  

गाजियाबाद का जातिय समीकरण

गाजियाबाद दिल्ली से सटा उत्तर प्रदेश का सीमावर्ती शहर है.यहां की आबादी मिश्रित है. यहां ब्राह्मण, वैश्य, दलित, पंजाबी और मुसलमान अच्छी संख्या में हैं.एक अनुमान के मुताबिक गाजियाबाद में करीब 75 हजार दलित, 70-70 हजार ब्राह्मण और वैश्य, 75 हजार मुस्लिम और 50 हजार के आसपास पंजाबी हैं.

गाजियाबाद की मुस्लिम और दलित आबादी को ध्यान में रखते हुए है अखिलेश यादव ने सिंहराज जाटव को मैदान में उतारा है. सपा के इस कदम ने गाजियाबाद की लड़ाई को दिलचस्प बना दिया है. एक तरफ बीजेपी ने जहां ब्राह्मण संजीव शर्मा को मैदान में उतारा है,वहीं बसपा ने वैश्य समुदाय के परमानंद गर्ग को टिकट दिया है. इस तरह से यूपी के तीन बड़े दलों ने तीन जातियों के उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है.

किस वोट बैंक पर है सपा की नजर

इस उपचुनाव में सपा की नजर दलित और मुस्लिम गठजोड़ पर है. सपा प्रमुख अखिलेश यादव पीडीए (पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक) के फार्मूले को आगे बढ़ा रहे हैं. उनके इस फार्मूले को लोकसभा चुनाव में सफलता भी मिली. इससे सपा और अखिलेश यादव के हौसले बुलंद हैं. अखिलेश यादव ने यही प्रयोग लोकसभा चुनाव के दौरान फैजाबाद सीट पर भी किया था. उन्होंने वहां दलित समाज से आने वाले अपने विधायक अवधेश प्रसाद को टिकट दिया था. अवधेश प्रसाद ने बीजेपी उम्मीदवार लल्लू सिंह को हरा दिया था. अब सपा वहीं प्रयोग गाजियाबाद में भी कर रही है. लेकिन ऐसा नहीं है कि सपा ने यह प्रयोग गाजियाबाद में पहली बार किया है. सपा ने 2022 के विधानसभा चुनाव में भी दलित समाज से आने वाले विशाल वर्मा को मैदान में उतारा था. इसके बाद भी बीजेपी के अतुल गर्ग लगातार दूसरी बार गाजियाबाद से जीतने में सफल रहे. 

गाजियाबाद में दलितों की आबादी सबसे अधिक है. गाजियाबाद सदर सीट पर करीब 75 हजार दलित मतदाता हैं. शहरी मतदाता होने की वजह से वहां के दलित मुखर भी हैं.गाजियाबाद देश के उन गिने-चुने शहरों में शामिल है, जहां आंबेडकर जयंती अधिक से अधिक मनाई जाती है.अगर वहां दलितों ने अगर एकजुट होकर सपा के समर्थन में मतदान कर दिया तो वहां उसे फायदा हो सकता है. गाजियाबाद में मुसलमान वोट भी 70 हजार से अधिक है. मुसलमान सपा के कोर वोटर माने जाते हैं. यहां उल्लेखनीय बात यह है कि सपा उम्मीदवार बसपा छोड़कर आए हैं. वहीं बसपा उम्मीदवार सपा छोड़कर आए हैं. दोनों अपने विरोधी दल के रग-रग से वाकिफ हैं.ऐसे में लगता है कि इन दलों के कोर वोटरों में सेंध लगाना मुश्किल काम हो सकता है. 

कैसी रही है गाजियाबाद की लड़ाई

गाजियाबाद में उपचुनाव वहां के विधायक रहे अतुल गर्ग के सांसद चुने जाने की वजह से कराया जा रहा है. गर्ग ने 2022 का विधानसभा चुनाव एक लाख से अधिक वोटों के अंतर से जीता था. उस चुनाव में बीजेपी के अतुल गर्ग    को एक लाख 50 हजार 205 वोट,सपा के विशाल वर्मा को 44 हजार 668 वोट और बसपा केके शुक्ल को 32 हजार 691 और कांग्रेस के सुशांत गोयल को  11 हजार 818 वोट मिले थे. हालांकि ये आंकड़े गवाही दे रहे हैं कि गाजियाबाद के मतदाताओं ने जाति से ऊपर उठकर मतदान किया था.उपचुनाव में गाजियाबाद में ऊंट किस करवट बैठेगा इसकी जानकारी 23 नवंबर को ही चल पाएगा, जब मतगणना के नतीजे आएंगे.  

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