रवीश कुमार (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
विदेश राज्यमंत्री एमजे अकबर ने अपने ऊपर लगे यौन उत्पीड़न के आरोपों पर आखिरकार इस्तीफा दे दिया. प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति ने उनका इस्तीफा स्वीकार भी कर लिया है. MeToo कैंपेन के तहत यौन उत्पीड़न के आरोपों के चलते उन्होंने प्रधानमंत्री कार्यालय को अपना इस्तीफा भेजा. बता दें कि अकबर पर 20 महिलाओं ने यौन शोषण का आरोप लगया था.
NDTV इंडिया के रवीश कुमार ने अपने कार्यक्रम प्राइम टाइम में इस मुद्दे पर बात की. वो लगातार अपने फेसबुक वॉल पर भी इस मुद्दे को लोगों के सामने रखते रहे हैं. अब जब अकबर का इस्तीफा हो गया है, उन्होंने राज्यसभा के सभापति और उपसभापति को पत्र लिखा है. पढ़ें उन्होंने पत्र में क्या लिखा है...
माननीय श्री सभापति/श्री उपसभापति
राज्य सभा
आदरणीय उपराष्ट्रपति जी, आप राज्यसभा, जिसे उच्च सदन कहते हैं, के सभापति हैं. आपके सदन के सदस्य मुबशिर जावेद अकबर पर 20 महिला पत्रकारों ने यौन उत्पीड़न और प्रताड़ना के आरोप लगाए हैं. उनके साथ दि एशियन एज की बीस महिला पत्रकारों ने अदालत में गवाही देने की बात कही है. अकबर के ख़िलाफ़ लगाए गए आरोप बेहद गंभीर हैं. ऐसा कब हुआ है कि 20 महिला पत्रकारों ने एक पूर्व संपादक पर क़रीब क़रीब एक ही क़िस्म के आरोप लगाए हैं. वो संपादक अब आपके सदन का सदस्य है. उन्हें मध्य प्रदेश की जनता के अप्रत्यक्ष वोट से सदन में भेजा गया है.
हम समझते हैं कि देश में क़ानून की अपनी प्रक्रिया है. मगर मी टू अभियान बिल्कुल नई बात है. अगर यह अभियान न होता तो अलग-अलग शहरों और आर्थिक परिवेश से आईं 20 महिलाएं कभी अकबर के ख़िलाफ़ नहीं बोल पातीं. भारत सरकार की मंत्री मेनका गांधी ने भी पूर्व जजों की कमेटी बनाकर जनसुनवाई की बात कही थी. आप हम उससे असहमत हो सकते हैं लेकिन आप मानेंगे कि मी टू के तहत लगाए गए पुराने आरोपों पर नई प्रक्रिया और प्रतिक्रिया की ज़रूरत है.
आप अपने सदन के सदस्य के ऊपर लगाए गए आरोपों पर क्या क़दम उठाने वाले हैं? क्या आप कमेटी बनाएंगे? क्या आप सदन के सदस्यों के लिए कार्यशाला का आयोजन करेंगे जिसमें बताया जाए कि एक औरत के साथ सांसदों को कैसे बर्ताव करना चाहिए. किसी महिला की ‘ना’ का मतलब क्या होता है? यौन उत्पीड़न क्या होता है? क्या राज्यसभा में सुप्रीम कोर्ट की विशाखा गाइडलाइन के अनुसार कोई कमेटी है? नहीं है तो क्यों नहीं है?
मैं यह सार्वजनिक पत्र इसलिए लिख रहा हूं ताकि आप जवाब सार्वजनिक रूप से दें. जिससे जनता में भरोसा हो कि भारत की संसदीय प्रणाली के उच्च सदन में कोई ऐसा सदस्य न आ जाए जिस पर सोलह महिला पत्रकार अपने साथ हुए यौन उत्पीड़न के आरोप लगाएं. हम आरोप को आरोप समझते हैं मगर सदन के हेडमास्टर होने के नाते इस प्रकरण में आपकी क्या भूमिका है? क्या आप पार्टियों को लिखेंगे कि किसी को राज्यसभा की सदस्यता देते समय ठीक से पड़ताल करें. क्या आप सभी सदस्यों को पत्र लिखेंगे कि महिला सदस्यों और महिलाओं के साथ क्या आचरण होना चाहिए?
आप दोनों से जनता को बहुत उम्मीदें हैं. आपके जवाब का इंतज़ार है. हो सकता है कि संसदीय परंपरा के तहत मेरे सवालों के जवाब न हों. मगर मैं आग्रह करता हूं कि आप जवाब दें. जवाब देने की कोशिश करें. यक़ीन जानें एक नई परंपरा बनेगी. वो शानदार परंपरा होगी.
आपका
रवीश कुमार
पत्रकार
17.10.2018
NDTV इंडिया के रवीश कुमार ने अपने कार्यक्रम प्राइम टाइम में इस मुद्दे पर बात की. वो लगातार अपने फेसबुक वॉल पर भी इस मुद्दे को लोगों के सामने रखते रहे हैं. अब जब अकबर का इस्तीफा हो गया है, उन्होंने राज्यसभा के सभापति और उपसभापति को पत्र लिखा है. पढ़ें उन्होंने पत्र में क्या लिखा है...
माननीय श्री सभापति/श्री उपसभापति
राज्य सभा
आदरणीय उपराष्ट्रपति जी, आप राज्यसभा, जिसे उच्च सदन कहते हैं, के सभापति हैं. आपके सदन के सदस्य मुबशिर जावेद अकबर पर 20 महिला पत्रकारों ने यौन उत्पीड़न और प्रताड़ना के आरोप लगाए हैं. उनके साथ दि एशियन एज की बीस महिला पत्रकारों ने अदालत में गवाही देने की बात कही है. अकबर के ख़िलाफ़ लगाए गए आरोप बेहद गंभीर हैं. ऐसा कब हुआ है कि 20 महिला पत्रकारों ने एक पूर्व संपादक पर क़रीब क़रीब एक ही क़िस्म के आरोप लगाए हैं. वो संपादक अब आपके सदन का सदस्य है. उन्हें मध्य प्रदेश की जनता के अप्रत्यक्ष वोट से सदन में भेजा गया है.
हम समझते हैं कि देश में क़ानून की अपनी प्रक्रिया है. मगर मी टू अभियान बिल्कुल नई बात है. अगर यह अभियान न होता तो अलग-अलग शहरों और आर्थिक परिवेश से आईं 20 महिलाएं कभी अकबर के ख़िलाफ़ नहीं बोल पातीं. भारत सरकार की मंत्री मेनका गांधी ने भी पूर्व जजों की कमेटी बनाकर जनसुनवाई की बात कही थी. आप हम उससे असहमत हो सकते हैं लेकिन आप मानेंगे कि मी टू के तहत लगाए गए पुराने आरोपों पर नई प्रक्रिया और प्रतिक्रिया की ज़रूरत है.
आप अपने सदन के सदस्य के ऊपर लगाए गए आरोपों पर क्या क़दम उठाने वाले हैं? क्या आप कमेटी बनाएंगे? क्या आप सदन के सदस्यों के लिए कार्यशाला का आयोजन करेंगे जिसमें बताया जाए कि एक औरत के साथ सांसदों को कैसे बर्ताव करना चाहिए. किसी महिला की ‘ना’ का मतलब क्या होता है? यौन उत्पीड़न क्या होता है? क्या राज्यसभा में सुप्रीम कोर्ट की विशाखा गाइडलाइन के अनुसार कोई कमेटी है? नहीं है तो क्यों नहीं है?
मैं यह सार्वजनिक पत्र इसलिए लिख रहा हूं ताकि आप जवाब सार्वजनिक रूप से दें. जिससे जनता में भरोसा हो कि भारत की संसदीय प्रणाली के उच्च सदन में कोई ऐसा सदस्य न आ जाए जिस पर सोलह महिला पत्रकार अपने साथ हुए यौन उत्पीड़न के आरोप लगाएं. हम आरोप को आरोप समझते हैं मगर सदन के हेडमास्टर होने के नाते इस प्रकरण में आपकी क्या भूमिका है? क्या आप पार्टियों को लिखेंगे कि किसी को राज्यसभा की सदस्यता देते समय ठीक से पड़ताल करें. क्या आप सभी सदस्यों को पत्र लिखेंगे कि महिला सदस्यों और महिलाओं के साथ क्या आचरण होना चाहिए?
आप दोनों से जनता को बहुत उम्मीदें हैं. आपके जवाब का इंतज़ार है. हो सकता है कि संसदीय परंपरा के तहत मेरे सवालों के जवाब न हों. मगर मैं आग्रह करता हूं कि आप जवाब दें. जवाब देने की कोशिश करें. यक़ीन जानें एक नई परंपरा बनेगी. वो शानदार परंपरा होगी.
आपका
रवीश कुमार
पत्रकार
17.10.2018
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