एम्स के निदेशक एमसी मिश्रा (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
राज्यसभा के कुछ सांसदों ने मांग की है कि ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस यानी एम्स के निदेशक एमसी मिश्रा को राज्यसभा की विशेषाधिकार कमेटी के सामने तलब किया जाए. कम से कम तीन सांसदों ने राज्यसभा चेयरमैन हामिद अंसारी को चिट्ठी लिखकर कहा है कि एम्स निदेशक की ओर से इस साल 9 मई को दिल्ली हाईकोर्ट में दायर किए गए हलफनामे में सांसदों का अपमान किया गया है. उनके खिलाफ एक्शन लिया जाना चाहिए. देखें खबर से जुड़ा वीडियो
राज्यसभा में सांसद अली अनवर ने कार्रवाई की मांग की
शुक्रवार को राज्यसभा में शून्य काल में सांसद अली अनवर ने एम्स के निदेशक के खिलाफ विशेषाधिकार हनन की कार्रवाई की मांग की. यह सारा बवाल दिल्ली हाईकोर्ट में एम्स निदेशक की ओर से इस साल दिए गए एफिडेविट से खड़ा हुआ है जिसमें कहा गया है कि एम्स में भ्रष्टाचार के 100 से अधिक मामलों में संसदीय समिति की रिपोर्ट निराधार है और उसकी कोई कानूनी वैधता नहीं है. हलफनामे में यह भी कहा गया है कि एम्स संसदीय कमेटी की इस रिपोर्ट को मानने के लिए मजबूर नहीं है. इस हलफनामे से नाराज कई सांसदों का कहना है कि यह संसद और सांसदों की गरिमा का अपमान है.
निदेशक एमसी मिश्रा ने संसदीय समिति का अपमान किया
एनडीटीवी इंडिया से बात करते हुए जेडीयू सांसद अली अनवर ने कहा कि, ‘एम्स के निदेशक एमसी मिश्रा ने संसदीय समिति का अपमान किया है. समिति की रिपोर्ट तथ्यों और जांच पर आधारित है और उसके खिलाफ हाइकोर्ट में इस तरह का हलफनामा देना विशेषाधिकार का हनन है. हमने सभापति (हामिद अंसारी) से मांग की है कि उन्हें (एमसी मिश्रा को) विशेषाधिकार कमेटी के आगे बुलाया जाए.’
कमेटी ने घोटालों पर पिछले साल अगस्त में दी थी रिपोर्ट
जिस संसदीय कमेटी ने एम्स के घोटालों पर पिछले साल अगस्त में रिपोर्ट दी थी उसके तत्कालीन अध्यक्ष बीएसपी के सतीश चंद्र मिश्रा थे. इस कमेटी ने जब मामले की जांच की तो उस वक्त इसके सदस्यों में बीजेपी के विजय गोयल, हिना गावित, संजय जायसवाल, पंकजा मुंडे और महेश शर्मा शामिल थे. अन्य सदस्यों में कांग्रेस के जयराम रमेश और समाजवादी पार्टी के अक्षय यादव शामिल हैं.
2012 से 2014 के बीच उजागर हुए घोटाले
एम्स के भीतर 2012 से लेकर 2014 के बीच 100 से अधिक मामले उजागर हुए. इसमें एम्स ट्रॉमा सेंटर में सामान की खरीद से लेकर एम्स में निर्माण और भरती के घोटाले शामिल थे. सीबीआई और सीवीसी ने इन मामलों में स्वास्थ्य मंत्रालय से कार्रवाई करने को कहा. लेकिन सरकार ने इन घोटालों को उजागर करने वाले एम्स के सीवीओ संजीव चतुर्वेदी की ही छुट्टी कर दी. संसदीय कमेटी ने सरकार की निष्क्रियता की कड़ी आलोचना करते हुए इन मामलों की जांच न होने पर नाराजगी जताई थी. बाद में मामला जब हाईकोर्ट के पास गया तो एम्स के निदेशक ने इन घोटालों पर कड़ी टिप्पणी करने वाली संसदीय समित की रिपोर्ट को ही खारिज कर दिया.
एम्स निदेशक के इस एफिडेविट से नाराज होकर जिन सांसदों ने विशेषाधिकार हनन की मांग करते हुए सभापति हामिद अंसारी को चिट्ठी लिखी है उनमें जेडीयू के अली अनवर के अलावा, समाजवादी पार्टी के मुनव्वर सलीम और सीपीएम के ऋतोब्रता बनर्जी शामिल हैं.
सीबीआई ने निदेशक को दोषी पाया
महत्वपूर्ण है कि अक्टूबर 2015 में निदेशक एमसी मिश्रा को सीबीआई ने एम्स ट्रॉमा सेन्टर से जुड़े भ्रष्टाचार के मामलों में प्रथम दृष्टया दोषी पाया और स्वास्थ्य मंत्रालय से कार्रवाई करने की सिफारिश की. फिर सीवीसी ने इस साल फरवरी में हेल्थ मिनिस्ट्री से इस मामले में कार्रवाई को लेकर स्टेटस रिपोर्ट मांगी लेकिन अब तक कुछ नहीं हुआ है.
राज्यसभा में सांसद अली अनवर ने कार्रवाई की मांग की
शुक्रवार को राज्यसभा में शून्य काल में सांसद अली अनवर ने एम्स के निदेशक के खिलाफ विशेषाधिकार हनन की कार्रवाई की मांग की. यह सारा बवाल दिल्ली हाईकोर्ट में एम्स निदेशक की ओर से इस साल दिए गए एफिडेविट से खड़ा हुआ है जिसमें कहा गया है कि एम्स में भ्रष्टाचार के 100 से अधिक मामलों में संसदीय समिति की रिपोर्ट निराधार है और उसकी कोई कानूनी वैधता नहीं है. हलफनामे में यह भी कहा गया है कि एम्स संसदीय कमेटी की इस रिपोर्ट को मानने के लिए मजबूर नहीं है. इस हलफनामे से नाराज कई सांसदों का कहना है कि यह संसद और सांसदों की गरिमा का अपमान है.
निदेशक एमसी मिश्रा ने संसदीय समिति का अपमान किया
एनडीटीवी इंडिया से बात करते हुए जेडीयू सांसद अली अनवर ने कहा कि, ‘एम्स के निदेशक एमसी मिश्रा ने संसदीय समिति का अपमान किया है. समिति की रिपोर्ट तथ्यों और जांच पर आधारित है और उसके खिलाफ हाइकोर्ट में इस तरह का हलफनामा देना विशेषाधिकार का हनन है. हमने सभापति (हामिद अंसारी) से मांग की है कि उन्हें (एमसी मिश्रा को) विशेषाधिकार कमेटी के आगे बुलाया जाए.’
कमेटी ने घोटालों पर पिछले साल अगस्त में दी थी रिपोर्ट
जिस संसदीय कमेटी ने एम्स के घोटालों पर पिछले साल अगस्त में रिपोर्ट दी थी उसके तत्कालीन अध्यक्ष बीएसपी के सतीश चंद्र मिश्रा थे. इस कमेटी ने जब मामले की जांच की तो उस वक्त इसके सदस्यों में बीजेपी के विजय गोयल, हिना गावित, संजय जायसवाल, पंकजा मुंडे और महेश शर्मा शामिल थे. अन्य सदस्यों में कांग्रेस के जयराम रमेश और समाजवादी पार्टी के अक्षय यादव शामिल हैं.
2012 से 2014 के बीच उजागर हुए घोटाले
एम्स के भीतर 2012 से लेकर 2014 के बीच 100 से अधिक मामले उजागर हुए. इसमें एम्स ट्रॉमा सेंटर में सामान की खरीद से लेकर एम्स में निर्माण और भरती के घोटाले शामिल थे. सीबीआई और सीवीसी ने इन मामलों में स्वास्थ्य मंत्रालय से कार्रवाई करने को कहा. लेकिन सरकार ने इन घोटालों को उजागर करने वाले एम्स के सीवीओ संजीव चतुर्वेदी की ही छुट्टी कर दी. संसदीय कमेटी ने सरकार की निष्क्रियता की कड़ी आलोचना करते हुए इन मामलों की जांच न होने पर नाराजगी जताई थी. बाद में मामला जब हाईकोर्ट के पास गया तो एम्स के निदेशक ने इन घोटालों पर कड़ी टिप्पणी करने वाली संसदीय समित की रिपोर्ट को ही खारिज कर दिया.
एम्स निदेशक के इस एफिडेविट से नाराज होकर जिन सांसदों ने विशेषाधिकार हनन की मांग करते हुए सभापति हामिद अंसारी को चिट्ठी लिखी है उनमें जेडीयू के अली अनवर के अलावा, समाजवादी पार्टी के मुनव्वर सलीम और सीपीएम के ऋतोब्रता बनर्जी शामिल हैं.
सीबीआई ने निदेशक को दोषी पाया
महत्वपूर्ण है कि अक्टूबर 2015 में निदेशक एमसी मिश्रा को सीबीआई ने एम्स ट्रॉमा सेन्टर से जुड़े भ्रष्टाचार के मामलों में प्रथम दृष्टया दोषी पाया और स्वास्थ्य मंत्रालय से कार्रवाई करने की सिफारिश की. फिर सीवीसी ने इस साल फरवरी में हेल्थ मिनिस्ट्री से इस मामले में कार्रवाई को लेकर स्टेटस रिपोर्ट मांगी लेकिन अब तक कुछ नहीं हुआ है.
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