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This Article is From Oct 05, 2017

मोहब्बत के शहर आगरा में अखिलेश यादव को 'ताज' तो मिला, मगर पिता मुलायम का प्यार नहीं

अब 2019 के लोकसभा चुनाव और 2022 में होने वाले यूपी विधानसभा चुनाव अखिलेश यादव के नेृतत्व में ही होंगे.

मोहब्बत के शहर आगरा में अखिलेश यादव को 'ताज' तो मिला, मगर पिता मुलायम का प्यार नहीं
समाजवादी पार्टी का राष्ट्रीय अधिवेशन आगरा में...
आगरा: मोहब्बत की नगरी आगरा में अखिलेश यादव को पद तो मिला लेकिन पिता मुलायम सिंह यादव का प्यार नहीं मिला. आज दोबारा निर्विरोध समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष चुने गए. ताजनगरी आगरा में चल रहे सपा के दसवें राष्ट्रीय अधिवेशन के दौरान उन्हें पार्टी का अध्यक्ष चुना गया. वह लगातार दूसरी बार दल के अध्यक्ष चुने गए हैं.निर्वाचन अधिकारी एवं सपा के वरिष्ठ नेता रामगोपाल यादव ने अखिलेश के निर्विरोध निर्वाचन की औपचारिक घोषणा की. इस घोषणा के दौरान सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव और उनके छोटे भाई व अखिलेश के प्रतिद्वंद्वी चाचा शिवपाल यादव मौजूद नहीं थे.

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इससे पहले गत 1 जनवरी, 2017 को लखनऊ में हुए राष्ट्रीय अधिवेशन में अखिलेश को मुलायम सिंह यादव के स्थान पर सपा का अध्यक्ष बनाया गया था. अखिलेश का कार्यकाल पांच वर्ष का होगा. उनके दोबारा अध्यक्ष बनने के साथ ही यह तय हो गया है कि वर्ष 2019 का लोकसभा चुनाव और 2022 का उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव उन्हीं के नेतृत्व में लड़ा जाएगा. गौरतलब है कि सपा के 10वें राष्ट्रीय अधिवेशन से पहले आज पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक हुई जिसमें अध्यक्ष के कार्यकाल की अवधि मौजूदा तीन वर्ष से बढ़ाकर पांच साल कर दिया गया.

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अखिलेश का आज सपा के अध्यक्ष पद पर दोबारा निर्वाचन महज औपचारिकता था, क्योंकि उन्हें चुनौती देने वाला कोई और उम्मीदवार नहीं था. सपा के राष्ट्रीय अधिवेशन में देशभर से पार्टी के करीब 15,000 प्रतिनिधि हिस्सा ले रहे हैं. इस अधिवेशन में विभिन्न राष्ट्रीय तथा स्थानीय मुद्दों पर विचार-विमर्श किया जाएगा और आर्थिक तथा राजनीतिक प्रस्ताव पारित किये जाएंगे.

सपा का यह अधिवेशन ऐसे समय हो रहा है जब पार्टी में अखिलेश और शिवपाल धड़ों में रस्‍साकशी का दौर जारी है. फिलहाल हालात अखिलेश के पक्ष में नजर आ रहे हैं. माना जा रहा था कि खुद को सपा के तमाम मामलों से अलग कर चुके मुलायम गत 25 सितम्‍बर को लखनऊ में हुए संवाददाता सम्मेलन में अलग पार्टी या मोर्चे के गठन की घोषणा करेंगे, लेकिन उन्‍होंने ऐसा करने से इनकार कर शिवपाल खेमे को करारा झटका दिया. मुलायम के सहारे ‘समाजवादी सेक्‍युलर मोर्चे’ के गठन की उम्‍मीद लगाये शिवपाल पर अब अपनी राह चुनने का दबाव है. शिवपाल के करीबियों का कहना है कि सपा के राष्‍ट्रीय अधिवेशन के बाद वह कोई फैसला ले सकते हैं. (इनपुट्स भाषा से )

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