गुरुवार को जीएसटी काउंसिल की बैठक में शामिल होने के बाद दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने प्रेस को संबोधित किया. उन्होंने दिल्ली के साथ सौतेले व्यवहार का आरोप लगाते हुए कहा कि जीएसटी लागू करने में केद्र सरकार पूरी तरह से विफल रही है. केंद्र ने राज्यों से टैक्स संबंधी अधिकार छीन लिए हैं. जीएसटी लागू करने वक्त भरोसा दिया गया था कि राज्यों के नुकसान की भरपाई की जाएगी. लेकिन अब केंद्र सरकार अपनी वैधानिक जिम्मेवारी से भाग रही है. सिसोदिया ने इसे आजादी के बाद राज्यों के साथ केंद्र का सबसे बड़ा धोखा बताते हुए कंपेनसेशन की व्यवस्था करने की मांग की. उन्होंने कहा कि दिल्ली को कर्ज लेने का अधिकार नहीं है. केंद्र खुद आरबीआइ से तर्ज लेकर राज्यों का कंपेनसेशन दे.
सिसोदिया ने कहा कि वर्ष 2016-17 में जीएसटी लागू करते समय सबसे बड़ा टैक्स रिफाॅर्म बताते हुए जनता को महंगाई कम होने का सपना दिखाया गया था. राज्यों को भी रेवेन्यू बढ़ने का सपना दिखाया गया. राज्यों से 87 फीसदी टैक्स संग्रह का अधिकार केंद्र ने ले लिया और कहा कि आपको इससे अपना हिस्सा मिल जाएगा. जीएसटी कानून में पांच साल तक राज्यों के नुकसान की भरपाई का दायित्व केंद्र सरकार पर है. केंद्र ने भरोसा दिया था कि अगर राज्यों का रेवेन्यू कम होगा तो 14 फीसदी वृद्धि की दर से कंपेनसेशन दिया जाएगा.
सिसोदिया ने कहा कि जीएसटी लागू होने के तीन साल पूरे हो चुके हैं. लेकिन अब तक न तो महंगाई कम हुई है और न ही राज्यों का रेवेन्यू बढ़ा है. अभी कोरोना संकट के कारण सभी राज्यों का रेवेन्यू काफी कम हो गया है तो केंद्र सरकार ने कंपेनसेशन देने के बदले हाथ खड़े कर दिए हैं.
मनीष सिसोदिया ने कहा कि आज जीएसटी कौंसिल की मिटिंग में बीजेपी शासित राज्यों सहित अनेक राज्यों ने केंद्र से नुकसान की भरपाई की मांग की. काउंसिल की सातवीं, आठवीं और दसवीं बैठक के मिनिट्स का हवाला देते हुए सिसोदिया ने कहा कि उस वक्त केंद्र ने स्पष्ट भरोसा दिया था कि राज्यों का रेवेन्यू कम होने पर इसकी भरपाई केंद्र सरकार करेगी. उन मिनिट्स में तत्कालीन वित्तमंत्री और वित्त सचिव की टिप्पणी भी दर्ज है.
सिसोदिया ने कहा कि जीएसटी में सेस लेने की व्यवस्था है. वर्ष 2017-18 में काफी सेस आया था जबकि कंपेनसेशन कम देने की जरूरत पड़ी थी. इसके कारण केंद्र के पास 47000 करोड़ की अतिरिक्त राशि बच गई थी जिसे केंद्रीय फंड में डाल दिया गया. लेकिन आज जब राज्यों को कम्पनशेसन देने की जरूरत है तो केंद्र सरकार अपने वैधानिक दायित्व से पीछे भाग रही है.
दिल्ली के उपमुख्यमंत्री ने कहा कि हम जीएसटी के पक्ष में हैं, लेकिन आज अगर जीएसटी के बदले सेलटैक्स की पुरानी व्यवस्था लागू होती, तो राज्य अपने लिए संसाधन खुद जुटा लेेते. जब टैक्स वसूली के सारे अधिकार जीएसटी काउंसिल ने छीन लिए हैं तो राज्य सरकारें अपने कर्मचारियों को सैलरी कैसे देगी?
सिसोदिया ने कहा कि केंद्र द्वारा कहा गया है कि राज्य सरकार खुद आरबीआइ से कर्ज लेकर अपना काम चलाएं. यह अजीब बात है क्योंकि केंद्र को सेस की राशि से राज्यों को कम्पनशेसन देना है. ऐसे में केंद्र स्वयं आरबीआइ से कर्ज लेकर राज्यों को दे. इसका केंद्र सरकार पर कोई भार नहीं पड़ेगा, इसके बावजूद केंद्र ऐसा करने को तैयार नहीं है.उनके अनुसार यह दिल्ली के लिए ज्यादा परेशानी की बात है क्योंकि कर्ज लेने का अधिकार सिर्फ पूर्ण राज्यों को है. दिल्ली को कर्ज लेने का अधिकार नहीं. दिल्ली का रेवेन्यू कलेक्शन लक्ष्य से 57 फीसदी कम है. इसे पूरा करने के लिए केंद्र कम्पनशेसन दे या खुद कर्ज लेकर दे. सिसोदिया ने कहा कि 7000 करोड़ कम टैक्स आया है तथा 21000 करोड़ का शाॅर्टफाॅल है. केंद्र अगर इसकी भरपाई की वैधानिक जिम्मेवारी से पीछे भाग रही है. ऐसे में डाॅक्टर्स, टीचर्स, कर्मचारियों, एमसीडी और डीटीसी वालों को सैलरी कहां से मिलेगी? यह दिल्ली के साथ केंद्र का सौतेला व्यवहार है.
सिसोदिया ने इसे आजादी के बाद केंद्र सरकार द्वारा राज्यों के साथ सबसे बड़ा धोखा बताया. उन्होंने कहा कि जीएसटी एक अच्छा आइडिया था. लेकिन इसे लागू करने में केंद्र सरकार पूरी तरह नाकाम रही. चार साल में इसकी कमियों को ठीक नहीं किया गया. पहले की तरह अब भी टैक्सचोरी रोकने की व्यवस्था नहीं की गई. केंद्र ने इसे ठीक से लागू किया होता तो यह नौबत नहीं आती.
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