प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, प्रधान न्यायाधीश जेएस खेहर व विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे सोमवार को बैठक कर रहे हैं
नई दिल्ली:
महिला आईपीएस अधिकारी अर्चना रामसुंदरम उन अधिकारियों में शामिल हैं, जो केंद्रीय जांच ब्यूरो, यानी सेंट्रल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन या सीबीआई के प्रमुख के पद के लिए दौड़ में हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भारत के प्रधान न्यायाधीश जस्टिस जेएस खेहर तथा लोकसभा में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जिन खड़गे सोमवार को बैठक कर यह निर्णय लेंगे कि संस्था के शीर्ष पद किसे नियुक्त किया जाए. सूत्रों का कहना है कि गुजरात के अधिकारी आरके अस्थाना को सीबीआई का कार्यवाहक प्रमुख बनाए जाने का फैसला विवादों में घिर जाने की वजह से अब सहमति बनाने की खातिर अर्चना रामसुंदरम के नाम पर मुहर लगाई जा सकती है.
यदि प्रधानमंत्री के नेतृत्व वाला तीन-सदस्यीय पैनल अर्चना रामसुंदरम को ही चुन लेता है, तो तमिलनाडु कैडर की यह भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) अधिकारी पहली महिला होंगी, जो देश की सर्वोच्च जांच एजेंसी की प्रमुख बनेंगी. अर्चना रामसुंदरम संप्रति सशस्त्र सीमा बल, यानी एसएसबी की प्रमुख हैं.
सीबीआई के पिछले प्रमुख अनिल सिन्हा की सेवानिवृत्ति के बाद पिछले दिसंबर में आरके अस्थाना को कार्यवाहक प्रमुख नियुक्त किए जाने को चुनौती देने वाली प्रसिद्ध वकील तथा सामाजिक कार्यकर्ता प्रशांत भूषण द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई पेटिशन के बाद सोमवार की यह बैठक बुलाई गई है.
प्रशांत भूषण ने आरोप लगाया है कि आरके अस्थाना की नियुक्ति से दिशानिर्देशों का उल्लंघन होता है, क्योंकि वह काफी जूनियर हैं, और प्रशांत भूषण के मुताबिक कार्यवाहक निदेशक वास्तव में स्वतंत्र हो ही नहीं सकता. पेटिशन में इस ओर भी इशारा किया गया है कि अनिल सिन्हा के सेवानिवृत्त होने पर जो अधिकारी आरके दत्ता प्रमुख बनाए जाने के लिए सबसे सीनियर थे, उन्हें सिर्फ दो दिन पहले ही सीबीआई से स्थानांतरित कर दिया गया.
आरके अस्थाना को कार्यवाहक निदेशक नियुक्त करते वक्त केंद्र सरकार ने कहा था कि वह नया प्रमुख चुनने के लिए पैनल की बैठक आहूत नहीं कर पाई. फिर मल्लिकार्जुन खड़गे ने प्रधानमंत्री को एक जूनियर अधिकारी की नियुक्ति पर आपत्ति जताते हुए पत्र भी लिखा. बताया जाता है कि सरकार आरके अस्थाना को ही निदेशक के पद पर नियुक्ति देना चाहती थी, लेकिन वर्ष 1984 बैच का आईपीएस अधिकारी होने के नाते वह वर्ष 2019 से पहले सीबीआई प्रमुख के पद पर नियुक्ति के योग्य नहीं होंगे.
नए प्रमुख की नियुक्ति दो साल के कार्यकाल के लिए होगी, और आलोचकों का आरोप है कि सरकार तब तक आरके अस्थाना को ही कार्यवाहक अध्यक्ष बनाए रखना चाहती थी, जब तक वह इतने सीनियर न हो जाएं कि उन्हें निदेशक के रूप में नियुक्ति दी जा सके.
इस पद पर नियुक्ति के लिए दौड़ में शामिल अधिकारियों में सीबीआई से बाहर भेज दिए गए आरके दत्ता की वापसी हो गई है, और साथ ही इनमें शामिल हैं दिल्ली पुलिस के मौजूदा आयुक्त आलोक वर्मा. प्रशांत भूषण ने अपनी पेटिशन में कहा है कि कर्नाटक कैडर के आरके दत्ता इस पद के लिए सर्वाधिक योग्य हैं, क्योंकि उन्हें एन्टी-करप्शन इकाइयों में काम करने का सबसे ज़्यादा अनुभव है.
सरकार ने कहा था कि आरके दत्ता को सीबीआई से बाहर इसलिए ले जाना पड़ा, क्योंकि वह बहुत ज़्यादा सीनियर हैं, और वह विशेष वेतनमान के हकदार हैं, इसीलिए उन्हें गृह मंत्रालय में वित्तीय आतंकवाद इकाई का प्रभार सौंपा जा रहा है.
दूसरी ओर, आरके अस्थाना गुजरात के अधिकारी हैं, जिन्हें वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पद संभालने के बाद दिल्ली लाया गया था.
यदि प्रधानमंत्री के नेतृत्व वाला तीन-सदस्यीय पैनल अर्चना रामसुंदरम को ही चुन लेता है, तो तमिलनाडु कैडर की यह भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) अधिकारी पहली महिला होंगी, जो देश की सर्वोच्च जांच एजेंसी की प्रमुख बनेंगी. अर्चना रामसुंदरम संप्रति सशस्त्र सीमा बल, यानी एसएसबी की प्रमुख हैं.
सीबीआई के पिछले प्रमुख अनिल सिन्हा की सेवानिवृत्ति के बाद पिछले दिसंबर में आरके अस्थाना को कार्यवाहक प्रमुख नियुक्त किए जाने को चुनौती देने वाली प्रसिद्ध वकील तथा सामाजिक कार्यकर्ता प्रशांत भूषण द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई पेटिशन के बाद सोमवार की यह बैठक बुलाई गई है.
प्रशांत भूषण ने आरोप लगाया है कि आरके अस्थाना की नियुक्ति से दिशानिर्देशों का उल्लंघन होता है, क्योंकि वह काफी जूनियर हैं, और प्रशांत भूषण के मुताबिक कार्यवाहक निदेशक वास्तव में स्वतंत्र हो ही नहीं सकता. पेटिशन में इस ओर भी इशारा किया गया है कि अनिल सिन्हा के सेवानिवृत्त होने पर जो अधिकारी आरके दत्ता प्रमुख बनाए जाने के लिए सबसे सीनियर थे, उन्हें सिर्फ दो दिन पहले ही सीबीआई से स्थानांतरित कर दिया गया.
आरके अस्थाना को कार्यवाहक निदेशक नियुक्त करते वक्त केंद्र सरकार ने कहा था कि वह नया प्रमुख चुनने के लिए पैनल की बैठक आहूत नहीं कर पाई. फिर मल्लिकार्जुन खड़गे ने प्रधानमंत्री को एक जूनियर अधिकारी की नियुक्ति पर आपत्ति जताते हुए पत्र भी लिखा. बताया जाता है कि सरकार आरके अस्थाना को ही निदेशक के पद पर नियुक्ति देना चाहती थी, लेकिन वर्ष 1984 बैच का आईपीएस अधिकारी होने के नाते वह वर्ष 2019 से पहले सीबीआई प्रमुख के पद पर नियुक्ति के योग्य नहीं होंगे.
नए प्रमुख की नियुक्ति दो साल के कार्यकाल के लिए होगी, और आलोचकों का आरोप है कि सरकार तब तक आरके अस्थाना को ही कार्यवाहक अध्यक्ष बनाए रखना चाहती थी, जब तक वह इतने सीनियर न हो जाएं कि उन्हें निदेशक के रूप में नियुक्ति दी जा सके.
इस पद पर नियुक्ति के लिए दौड़ में शामिल अधिकारियों में सीबीआई से बाहर भेज दिए गए आरके दत्ता की वापसी हो गई है, और साथ ही इनमें शामिल हैं दिल्ली पुलिस के मौजूदा आयुक्त आलोक वर्मा. प्रशांत भूषण ने अपनी पेटिशन में कहा है कि कर्नाटक कैडर के आरके दत्ता इस पद के लिए सर्वाधिक योग्य हैं, क्योंकि उन्हें एन्टी-करप्शन इकाइयों में काम करने का सबसे ज़्यादा अनुभव है.
सरकार ने कहा था कि आरके दत्ता को सीबीआई से बाहर इसलिए ले जाना पड़ा, क्योंकि वह बहुत ज़्यादा सीनियर हैं, और वह विशेष वेतनमान के हकदार हैं, इसीलिए उन्हें गृह मंत्रालय में वित्तीय आतंकवाद इकाई का प्रभार सौंपा जा रहा है.
दूसरी ओर, आरके अस्थाना गुजरात के अधिकारी हैं, जिन्हें वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पद संभालने के बाद दिल्ली लाया गया था.
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