सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
आधार की वैधता पर मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा, अगर किसी तकनीक का दुरुपयोग हो रहा है तो इसका मतलब ये नहीं कि किसी कानून को रद्द कर दिया जाए. सुनवाई कर रहे पांच जजों के संविधान पीठ में शामिल जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, 'अगर किसी तकनीक का दुरुपयोग हो रहा है तो इसका मतलब ये नहीं किसी कानून को ही रद्द कर दिया जाए. ऐसे कोर्ट के फैसलों की लंबी कतार है जिनमें कहा गया है कि सिर्फ मिसयूज होने की संभावना से कानून को रद्द नहीं किया जा सकता.'
याचिकाकर्ता की ओर से कपिल सिब्बल ने कहा कि रोजाना मिसयूज हो रहे हैं और ये दिखाई दे रहा है. ऐसे में इसे अपवाद माना जाना चाहिए और रद्द किया जा सकता है.
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लेकिन जस्टिस चंद्रचूड ने जवाब दिया, 'मिसयूज की पावर होने के आधार पर किसी कानून को असंवैधानिक करार नहीं दिया जा सकता. किसी कानून को रद्द करना बड़ी दिक्कत है. किसी कानून को रद्द करने के लिए ये कहना होगा कि ये कलरेबल (colourable) कानून है. तकनीकी तौर पर सुरक्षित वातावरण के अभाव में कोर्ट ये कैसे तय कर सकता है कि किस स्तर तक के रिस्क को स्वीकार किया जा सकता है और किस स्तर के रिस्क को नहीं?
क्या आप ये कहना चाहते हैं कि कानून को खुद की रिस्क का स्तर देना चाहिए.'
आधार कार्ड की संवैधानिक वैधता के मामले में याचिकाकर्ताओं पश्चिम बंगाल और राघव तन्खा की तरफ से कपिल सिब्बल ने कहा, 'किसी भी टेक्नोलॉजी को हैक किया जा सकता है. दुनिया में ऐसी कोई टेक्नोलॉजी नहीं जिसका दुरुपयोग न हो सकता हो. यही टेक्नोलॉजी किसी को बर्बाद करने में इस्तेमाल की जा सकती है. इस इंटरनेट की दुनिया में ये पता लगाना मुश्किल है कि तथ्य सही है या नहीं. किसी व्यक्ति की अगर निचली जानकारी हैक हो गई तो उसे दुबारा पहले की स्थिति में नहीं लाया जा सकता.' अपने आर्थिक फ़ायदे के लिए निजी कंपनियों के द्वारा सूचना का इस्तेमाल करने को लेकर उन्होंने कहा कि जितना लोगों के बारे में जानकारी होगी उतनी अच्छी तरह प्रोडक्ट को बेचा जा सकता है.
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सिब्बल ने कहा, 'एक बार बोतल से जिन्न बाहर आ गया तो वापस बोतल में नहीं रख सकते. आज के तकनीकी दौर में ये कहना एकदम सही होगा कि एक बार व्यक्तिगत सूचना लोगों के बीच आ जाती है तो उसके घातक परिणाम हो सकते हैं. PM ने दावोस में कहा कि जो देश डेटा पर नियंत्रण रखेगा वो दुनिया को नियंत्रित करेगा, मैं इससे सहमत हूं. आधार कार्ड को लेकर सारी प्रक्रिया गलत है क्योंकि आधार की जानकारी जुटाने में चेकमार्क नहीं है. किसी सामान्य नागरिक के चुनने का अधिकार अनुछेद 21 के तहत संवैधानिक अधिकार है. प्रक्रिया और सामग्री वाज़िब होनी चाहिए.'
उन्होंने कहा, 'मेरी पात्रता विधवा या अनुसूचित जाति या जनजाति के तौर पर मेरा स्टेट्स है और इसका मेरी पहचान से कोई लेना देना नहीं है. ऐसे में मेरे स्टेटस को कैसे इनकार किया जा सकता है कि मेरे पास आधार कार्ड नहीं है.
सिब्बल ने कहा, 'मेरा अंगूठा (छाप) मेरी सम्पत्ति है. सरकारी योजनाओं और सेवाओं का उपभोग मेरा अधिकार है, पहचान नहीं. सरकार मेरी पहचान को ही सेवा की शर्त बना रही है जबकि इन दोनों का आपस में कोई लेना देना नहीं होना चाहिए. आधार एक्ट के ज़रिए जनता को इतना कंट्रोल करना चाह रही है सरकार तो जनता के पास तो कोई विकल्प, कोई पसन्द ही नहीं रहेगी. आधार कार्ड के दूरगामी परिणाम होंगे क्योंकि पीढ़ियों तक आधार नंबर को इस्तेमाल किया जाएगा. किसी को नही पता कल क्या होगा न ही बेंच को और न ही विशेषज्ञों को.
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उन्होंने कहा कि सूचना एक शक्ति है और अगर राज्य को ये शक्ति दे दी गई तो राज्य इस शक्ति का इस्तेमाल करेंगे जैसे पहले कभी नहीं किया गया था. आधार कुछ और नहीं है बल्कि राज्य से लिए सूचना के अधिकार का औजार है. आधार खुद नहीं बता सकता कि कोई आतंकवादी या हवाला डीलर है जब तक उसके बारे में जानकारी ना हो.
कपिल सिब्बल ने कुछ अन्य मुख्य बातें भी सुप्रीम कोर्ट के समक्ष रखीं...
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याचिकाकर्ता की ओर से कपिल सिब्बल ने कहा कि रोजाना मिसयूज हो रहे हैं और ये दिखाई दे रहा है. ऐसे में इसे अपवाद माना जाना चाहिए और रद्द किया जा सकता है.
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लेकिन जस्टिस चंद्रचूड ने जवाब दिया, 'मिसयूज की पावर होने के आधार पर किसी कानून को असंवैधानिक करार नहीं दिया जा सकता. किसी कानून को रद्द करना बड़ी दिक्कत है. किसी कानून को रद्द करने के लिए ये कहना होगा कि ये कलरेबल (colourable) कानून है. तकनीकी तौर पर सुरक्षित वातावरण के अभाव में कोर्ट ये कैसे तय कर सकता है कि किस स्तर तक के रिस्क को स्वीकार किया जा सकता है और किस स्तर के रिस्क को नहीं?
क्या आप ये कहना चाहते हैं कि कानून को खुद की रिस्क का स्तर देना चाहिए.'
आधार कार्ड की संवैधानिक वैधता के मामले में याचिकाकर्ताओं पश्चिम बंगाल और राघव तन्खा की तरफ से कपिल सिब्बल ने कहा, 'किसी भी टेक्नोलॉजी को हैक किया जा सकता है. दुनिया में ऐसी कोई टेक्नोलॉजी नहीं जिसका दुरुपयोग न हो सकता हो. यही टेक्नोलॉजी किसी को बर्बाद करने में इस्तेमाल की जा सकती है. इस इंटरनेट की दुनिया में ये पता लगाना मुश्किल है कि तथ्य सही है या नहीं. किसी व्यक्ति की अगर निचली जानकारी हैक हो गई तो उसे दुबारा पहले की स्थिति में नहीं लाया जा सकता.' अपने आर्थिक फ़ायदे के लिए निजी कंपनियों के द्वारा सूचना का इस्तेमाल करने को लेकर उन्होंने कहा कि जितना लोगों के बारे में जानकारी होगी उतनी अच्छी तरह प्रोडक्ट को बेचा जा सकता है.
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सिब्बल ने कहा, 'एक बार बोतल से जिन्न बाहर आ गया तो वापस बोतल में नहीं रख सकते. आज के तकनीकी दौर में ये कहना एकदम सही होगा कि एक बार व्यक्तिगत सूचना लोगों के बीच आ जाती है तो उसके घातक परिणाम हो सकते हैं. PM ने दावोस में कहा कि जो देश डेटा पर नियंत्रण रखेगा वो दुनिया को नियंत्रित करेगा, मैं इससे सहमत हूं. आधार कार्ड को लेकर सारी प्रक्रिया गलत है क्योंकि आधार की जानकारी जुटाने में चेकमार्क नहीं है. किसी सामान्य नागरिक के चुनने का अधिकार अनुछेद 21 के तहत संवैधानिक अधिकार है. प्रक्रिया और सामग्री वाज़िब होनी चाहिए.'
उन्होंने कहा, 'मेरी पात्रता विधवा या अनुसूचित जाति या जनजाति के तौर पर मेरा स्टेट्स है और इसका मेरी पहचान से कोई लेना देना नहीं है. ऐसे में मेरे स्टेटस को कैसे इनकार किया जा सकता है कि मेरे पास आधार कार्ड नहीं है.
सिब्बल ने कहा, 'मेरा अंगूठा (छाप) मेरी सम्पत्ति है. सरकारी योजनाओं और सेवाओं का उपभोग मेरा अधिकार है, पहचान नहीं. सरकार मेरी पहचान को ही सेवा की शर्त बना रही है जबकि इन दोनों का आपस में कोई लेना देना नहीं होना चाहिए. आधार एक्ट के ज़रिए जनता को इतना कंट्रोल करना चाह रही है सरकार तो जनता के पास तो कोई विकल्प, कोई पसन्द ही नहीं रहेगी. आधार कार्ड के दूरगामी परिणाम होंगे क्योंकि पीढ़ियों तक आधार नंबर को इस्तेमाल किया जाएगा. किसी को नही पता कल क्या होगा न ही बेंच को और न ही विशेषज्ञों को.
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उन्होंने कहा कि सूचना एक शक्ति है और अगर राज्य को ये शक्ति दे दी गई तो राज्य इस शक्ति का इस्तेमाल करेंगे जैसे पहले कभी नहीं किया गया था. आधार कुछ और नहीं है बल्कि राज्य से लिए सूचना के अधिकार का औजार है. आधार खुद नहीं बता सकता कि कोई आतंकवादी या हवाला डीलर है जब तक उसके बारे में जानकारी ना हो.
कपिल सिब्बल ने कुछ अन्य मुख्य बातें भी सुप्रीम कोर्ट के समक्ष रखीं...
- कानून से कोई व्यक्तिगत डेटा बिना तकनीकी सुरक्षा के नहीं रखा जा सकता.
- जो भी व्यक्ति ये कहता है कि जानकारी सुरक्षित है वो गलत है क्योंकि आज के डिजिटल संसार में जहां डाटा हैक होते हैं, ये सभी बातें बेमानी हैं.
- आज के इस दौर में एक ऐसी अर्थव्यवस्था बनाना जो व्यक्ति के जानकारी को लीक करे, उसके बेहद दूरगामी परिणाम हो सकते हैं.
- आज के युग में व्यक्ति की व्यक्तिगत जानकारी कोई महत्व नहीं रखती.
- आज के इस तकनीकी युग में सूचनागत अर्थव्यवस्था होनी चाहिए बिना व्यक्तिगत अधिकारों को उल्लंघन किये हुए.
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