महाराष्ट्र के सूखा प्रभावित क्षेत्र में ट्रेनों के जरिये पानी पहुंचाया जा रहा है।
लातूर (महाराष्ट्र):
देश के सबसे धनी राज्यों में शुमार महाराष्ट्र के बेरोजगार श्रमिक हरिभाऊ कांबले तपती गर्मी में पानी लाने के लिए घंटों इंतजार करने के लिए मजबूर हैं। यह स्थिति तब है जब साल-दर-साल सूखे का प्रकोप झेल रहे मराठवाड़ा क्षेत्र के लिए सरकार ट्रेनों से पानी भेज रही है। चार दशकों के सबसे खराब सूखे के कारण कांबले की ही तरह राज्य के लाखों लोग गुजारे लायक पानी के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
कांबले कहते हैं, 'सरकार कहती है कि वह हर रोज ट्रेन के जरिये पानी भेज रही है, लेकिन हमें सप्ताह में केवल एक बार ही पानी मिल पा रहा है।' सूखे से बुरी तरह प्रभावित मराठवाड़ा क्षेत्र के लातूर जिले में लोगों को तीन-तीन घंटे तक लाइन में खड़े रहकर इंतजार करने के बाद बमुश्किल दो घड़े पानी नसीब हो पा रहा है। स्थानीय लोगों को उम्मीद थी कि रोज भेजे जा रहे 50 वेगन पानी से कमी की भरपाई करने में मदद मिलेगी लेकिन ट्रेन से लाया जा रहा करीब ढाई मिलियन लीटर पानी और टेंकरों के जरिये गांवों में भेजा जा रहा पानी लातूर के करीब पांच लाख और मराठवाड़ा के करीब 1.9 करोड़ लोगों को जरूरतों को पूरा करने में नाकाफी साबित हो रहा है।
जलाशयों में बहुत कम पानी बचा है
कई शुगर मिल से भरपूर मराठवाड़ा, देश के उन क्षेत्रों में से एक है जहां 2015 में जून से सितंबर के बीच औसत से काफी कम बारिश रिकॉर्ड हुई है। कुल मिलाकर देश की आबादी के एक चौथाई, करीब 33 करोड़ लोग, सूखे से प्रभावित हैं। तापमान 40 डिग्री से ऊपर जाने के साथ यह जल संकट अगले दो माह में और गहराने का अंदेशा है क्योंकि मराठवाड़ा के जलाशयों में अब केवल तीन फीसदी पानी की शेष बचा है।
सरकार हाथ पर हाथ रखे देखती रही
साउथ एशिया नेटवर्क में बांध, नदियों और और लोगों के मामलों में को-आर्डिनेटर परिणीता दांडेकर कहती हैं, 'मानसून के धोखा देने के साथ ही यह साफ हो गया था कि महाराष्ट्र को जल संकट का सामना करना पड़ेगा लेकिन सरकार ने पानी का उपभोग करने वाले बीयर और शुगर जैसे उद्योग की सप्लाई की अंकुश लगाने के लिए कोई कार्रवाई नहीं की।' उन्होंने कहा कि सरकार ट्रेन के जरिये आखिर कितना पानी पहुंचाएगी, इसकी एक सीमा है, यदि सरकार ने पिछले साल पेयजल के स्रोतों को लेकर ध्यान दिया होता तो हालात बेहतर हो सकते थे।
गन्ने की खेती लगातार बढ़ने से हालात और बिगड़े
गन्ने की खेती के लगातार हो रहे विस्तार ने हालाता को बद से बदतर बनाया है। गन्ना महाराष्ट्र के करीब चार फीसदी कृषि क्षेत्र में ही उगाया जाता है लेकिन इसमें यह सिंचाई के पानी को करीब दो-तिहाई हिस्सा 'निगल' जाता है। राज्य के कृषि मंत्री एकनाथ खड़से कहते हैं कि सरकार गन्ने को सीमित करने और मराठवाड़ा में जल संरक्षण के लिए नई शुगर मिलों पर पांच साल का प्रतिबंध लगाने जैसे उपायों पर विचार कर रही है।
कांबले कहते हैं, 'सरकार कहती है कि वह हर रोज ट्रेन के जरिये पानी भेज रही है, लेकिन हमें सप्ताह में केवल एक बार ही पानी मिल पा रहा है।' सूखे से बुरी तरह प्रभावित मराठवाड़ा क्षेत्र के लातूर जिले में लोगों को तीन-तीन घंटे तक लाइन में खड़े रहकर इंतजार करने के बाद बमुश्किल दो घड़े पानी नसीब हो पा रहा है। स्थानीय लोगों को उम्मीद थी कि रोज भेजे जा रहे 50 वेगन पानी से कमी की भरपाई करने में मदद मिलेगी लेकिन ट्रेन से लाया जा रहा करीब ढाई मिलियन लीटर पानी और टेंकरों के जरिये गांवों में भेजा जा रहा पानी लातूर के करीब पांच लाख और मराठवाड़ा के करीब 1.9 करोड़ लोगों को जरूरतों को पूरा करने में नाकाफी साबित हो रहा है।
जलाशयों में बहुत कम पानी बचा है
कई शुगर मिल से भरपूर मराठवाड़ा, देश के उन क्षेत्रों में से एक है जहां 2015 में जून से सितंबर के बीच औसत से काफी कम बारिश रिकॉर्ड हुई है। कुल मिलाकर देश की आबादी के एक चौथाई, करीब 33 करोड़ लोग, सूखे से प्रभावित हैं। तापमान 40 डिग्री से ऊपर जाने के साथ यह जल संकट अगले दो माह में और गहराने का अंदेशा है क्योंकि मराठवाड़ा के जलाशयों में अब केवल तीन फीसदी पानी की शेष बचा है।
सरकार हाथ पर हाथ रखे देखती रही
साउथ एशिया नेटवर्क में बांध, नदियों और और लोगों के मामलों में को-आर्डिनेटर परिणीता दांडेकर कहती हैं, 'मानसून के धोखा देने के साथ ही यह साफ हो गया था कि महाराष्ट्र को जल संकट का सामना करना पड़ेगा लेकिन सरकार ने पानी का उपभोग करने वाले बीयर और शुगर जैसे उद्योग की सप्लाई की अंकुश लगाने के लिए कोई कार्रवाई नहीं की।' उन्होंने कहा कि सरकार ट्रेन के जरिये आखिर कितना पानी पहुंचाएगी, इसकी एक सीमा है, यदि सरकार ने पिछले साल पेयजल के स्रोतों को लेकर ध्यान दिया होता तो हालात बेहतर हो सकते थे।
गन्ने की खेती लगातार बढ़ने से हालात और बिगड़े
गन्ने की खेती के लगातार हो रहे विस्तार ने हालाता को बद से बदतर बनाया है। गन्ना महाराष्ट्र के करीब चार फीसदी कृषि क्षेत्र में ही उगाया जाता है लेकिन इसमें यह सिंचाई के पानी को करीब दो-तिहाई हिस्सा 'निगल' जाता है। राज्य के कृषि मंत्री एकनाथ खड़से कहते हैं कि सरकार गन्ने को सीमित करने और मराठवाड़ा में जल संरक्षण के लिए नई शुगर मिलों पर पांच साल का प्रतिबंध लगाने जैसे उपायों पर विचार कर रही है।
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं