पिपरौली बाजार की संकरी गलियों में वैसे तो हर वक्त भीड़-भाड़ रहती है, लेकिन रवि किशन शुक्ला (Ravi Kishan Shukla) की पहली झलक मिलते ही वहां हलचल कुछ ज्यादा बढ़ गई. बेहद मशहूर भोजपुरी फिल्म स्टार भगवा रंग का कुर्ता और जींस पहने जैसे ही अपनी एसयूवी से उतरा वहां मौजूद लोगों की भीड़ खुद के बीच उसकी मौजूदगी का सबूत जुटाने के लिए अपने-अपने फोन हवा में लहराने लगी. भीड़ 49 बरस के उस आदमी को अपने कैमरे में कैद कर लेना चाहती थी जो उत्तर प्रदेश के पूर्वांचाल की गोरखपुर (Gorakhpur) सीट से चुनाव लड़ रहा है.
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रवि किशन ने एनडीटीवी से कहा, "मैं नरेंद्र मोदी और योगी आदित्यनाथ के नाम पर वोट मांग रहा हूं." इस बात को कहकर उन्होंने साफ कर दिया कि भले ही वह बड़ी-बड़ी हिट फिल्में देते हों, लेकिन प्रधानमंत्री और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ही असली आकर्षण हैं. वो शर्माते हुए कहते हैं, "मैं तो दाल में सिर्फ तड़का हूं."
विपक्षी दल और बीजेपी के स्थानीय प्रतिद्वंदी रवि किशन पर बाहरी होने का आरोप लगाते हैं
गोरखपुर की जनता 19 मई को मतदान करेगी. इस बार बीजेपी से चुनाव लड़ने और पिछले बार बतौर कांग्रेसी चुनावी मैदान में उतरने पर क्या रवि किशन किसी प्रकार का संज्ञानात्मक मतभेद महसूस कर रहे हैं, तो इस बात के कुछ संकेत जरूर दिखाई दिए. साल 2014 में उन्होंने गोरखपुर से 150 किलोमीटर दूर अपने गृहनगर जौनपुर से चुनाव लड़ा था, लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा.
इस बार वह पूर्व केंद्रीय मंत्री और आखिलेश यादव व मायावती के गठबंधन उम्मीदवार रामबुहाल निषाद के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं. 14 महीने पहले सपा-बसपा ने अपनी नई साझेदारी को परखने के लिए गोरखपुर को चुना और उन्हें इसके चौंकाने वाले परिणाम दिखे. उन्होंने बीजेपी उम्मीदवार को उस संसदीय क्षेत्र से हरा दिया था जिसका प्रतिनिधित्व खुद योगी आदित्यनाथ पिछले पांच सालों से कर रहे थे. वही भगवाधारी योगी जो राजनैतिक रूप से भारत के सबसे महत्वपूर्ण राज्य उत्तर प्रदेश के साल 2017 में मुख्यमंत्री बने थे.
योगी आदित्यानाथ बीएसपी-एसपी के गठबंधन को सांप-नेवले का गठजोड़ कहा है
गोरखपुर उप-चुनाव में मिली हार आदित्यनाथ के लिए बड़ी विफलता थी. वह इलाके के सबसे प्रभावशाली और ताकतवर गोरखनाथ मंदिर के महंत भी हैं. इस जीत ने दोनों पूर्व मुख्यमंत्रियों मायावती और अखिलेश यादव में जोश भर दिया जो अपनी चिर स्थाई शत्रुता को भुलाकर राज्य में बीजेपी का रास्ता रोकने के लिए साथ आए हैं. तर्क दिया गया कि अगर गोरखपुर जीता जा सकता है तो बीजेपी के अधिकार वाली दूसरी जगहों को भी हासिल किया जा सकता है.
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मायावती-अखिलेश के गठजोड़ को बाढ़ के दौरान सांप और नेवले जैसा विनाशकारी गठबंधन करार देने वाले योगी आदित्यनाथ को यह स्वीकार करना पड़ा कि उन्होंने अपने दुश्मनों की संयुक्त ताकत और जनता के मूड को कम करके आंका.
जनता के हाथों मिली इस सजा के बाद वह गोरखपुर की दशा सुधारने के लिए निकल पड़े, जिसमें सड़कों का चौड़ीकरण, नए खाद प्लांट और चीनी मिल की स्थापना शामिल है. प्रधानमंत्री ने पूर्वांचल के लिए 10 हजार करोड़ रुपये की आधारभूत योजनाओं की शुरुआत के लिए अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी के बजाए गोरखपुर को चुना और 75 हजार करोड़ रुपये की प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (पीएम-किसान) का ऐलान किया, जिसके तहत छोटे किसानों के खाते में हर साल सीधे 6 हजार रुपये ट्रांसफर किए जाएंगे.
गोरखपुर में बीजेपी का प्रचार बतौर सीएम योगी आदित्यनाथ और बतौर पीएम मोदी की उपलब्ध्यिों पर केंद्रित है
राजनीतिक विश्लेषक मनोज सिंह विकास की इस बयार से काफी खुश हैं. उनके मुताबिक, "गोरखपुर के चुनावों में विकास ने कभी मुख्य मुद्दे की भूमिका नहीं निभाई. अगर ऐसा होता तो सरकारी अस्पतालों की दुर्दशा या कमजोर पुलों और यातायात के साधनों के अभाव की गूंज यहां के लोगों में सुनाई देती. पिछले चुनावों में जनता ने या तो गोरखनाथ मंदिर को वोट दिया है या जातिवादी समीकरणों के आधार पर जनादेश सुनाया है."
बेहद जटिल जातिवादी संरचना वाले गोरखपुर में 20 लाख वोटर हैं, जिसमें निषाद जाति के सबसे ज्यादा (2.63 लाख वोटर) लोग शामिल हैं. इसके बाद दूसरे नंबर पर दलित (2.6 लाख वोटर) और फिर यादव (2.40 लाख वोटर) हैं. साल 2018 के उप-चुनाव में बड़ी संख्या में इन जातियों के लोगों और मुस्लिम वोटरों ने आखिलेश यादव के उम्मीदवार प्रवीण निषाद को समर्थन दिया था. प्रवीण निषाद स्थानीय संगठन 'निषाद' के नेता भी हैं.
अखिलेश यादव की पार्टी के एक स्थानीय नेता तथाकथित रूप से कहते हैं, "प्रवीण निषाद की जीत के बाद निषाद पार्टी महत्वाकांक्षी हो गई और उसने दो लोकसभा टिकटों की मांग कर डाली जिसे अखिलेश यादव ने खारिज कर दिया." अप्रैल की शुरुआत में निषाद पार्टी ने कहा था कि वो बीजेपी के साथ गठबंधन कर लेगी. बीजेपी में शामिल होने की यह तथाकथित योजना अखिलेश यादव के बागी चाचा शिवपाल यादव ने बनाई थी.
बीजेपी और गठबंधन के उम्मीदवारों को उम्मीद है कि गोरखपुर में जातिगत समीकरण उनके पक्ष में काम करेंगे
लेकिन बीजेपी जानती थी कि अगर उसने किसी निषाद को अपना उम्मीदवार बनाया तो वह गोरखपुर के करीब 7.5 लाख सवर्ण वोटरों को खो देगी जिनमें सबसे ज्यादा ब्राह्मण शामिल हैं. इसलिए उसने रवि किशन शुक्ला को अपना उम्मीदवार बनाया. ( प्रवीण निषाद पड़ोसी संसदीय सीट से चुनाव लड़ रहे हैं. )
योगी आदित्यनाथ की हिन्दू युवा वाहिनी के पूर्व वरिष्ठ नेता सुनील सिंह कहते हैं, "रवि किशन को सर्वसम्मति से चुना गया होगा. बीजेपी नेतृत्व ने यह सोचा होगा कि अपने दो कद्दावर नेताओं मुरली मनोहर जोशी और कलराज मिश्र को टिकट न देने के बाद अगर वह किसी ब्राह्मण को उम्मीदवार बनाते हैं तो ब्राह्मण समुदाय संतुष्ट हो जाएगा. एक अभिनेता, एक कमजोर राजनेता और एक बाहरी गोरखपुर में मुख्यमंत्री के लिए किसी भी तरह का खतरा नहीं है." सुनील सिंह 15 साल बाद अपने गुरु आदित्यनाथ से अलग हो गए थे और अब वह उनके खिलाफ प्रचार कर रहे हैं.
समाजवादी पार्टी के राम बुहाल निषाद (दाएं) का दावा है कि जाति नहीं बल्कि किसानों का दुख और नौकरियों की कमी मुख्य मुद्दे होंगे
हालांकि 49 साल के रवि किशन कहते हैं कि वह यहां लंबे समय तक टिकने के लिए आए हैं, "मैं बिना थके लोगों के लिए काम करने वाले एनटी रामा राव और विनोद खन्ना जैसे गंभीर नेताओं की तरह परिपक्व होना चाहता हूं." साल 2014 में पीएम मोदी के किए वादे को दोहराते हुए उनका कहना है कि उनकी योजना एक भोजपुरी फिल्म स्टूडियो बनाने की है जिससे 1 लाख नौकरियों का सृजन होगा.
गठबंधन उम्मीदवार रामभुआल निषाद ने एनडीटीवी से कहा कि उन्हें इस बात की कोई चिंता नहीं है कि एक स्टार प्रतिद्वंदी के सामने उनकी चमक फीकी पड़ जाएगी. उन्होंने कहा, "मेरे पास सभी जातियों और धर्मों से संबंध रखने वाले समाज के वंचित तबकों का समर्थन है." कुछ निषाद पार्टी के समर्थक कहते हैं कि वह रामभुआल को वोट देंगे क्योंकि प्रवीण निषाद को पार्टी में शामिल करने के बाद भी बीजेपी ने उन्हें उनकी पसंद की सीट गोरखपुर से चुनाव नहीं लड़ने दिया. प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र वाराणसी और गोरखपुर में 2019 के चुनाव को संभाल रहे सुनील ओजा का दावा है कि गैर-बीजेपी पार्टियां जाति और धर्म को सबसे ज्यादा अहमियत दे रही हैं. उनके मुताबिक, "वे इन सभी जातियों के लोगों को नजरअंदाज कर रही हैं जो विकास के लिए वोट देंगी. कल्याणकारी योजनाओं का सबसे ज्यादा फायदा दलित और मुस्लिमों को मिला है."
योगी आदित्यनाथ का घर गोरखपुर हमेशा से वीआईपी इलाका रहा है. इस बार यह पहले से भी ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया है क्योंकि यहीं मायावती-अखिलेश यादव के बेहद अकल्पनीय राजनीतिक गठजोड़ का जन्म हुआ है. इस चुनाव में इसका राजनीतिक वजन बेहद मशहूर हो गया है.
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