केदारनाथ में आई बाढ़ के बाद अदालत के आदेश के तहत जिन बांधों के निर्माण का काम तुरंत रोक दिया गया था, उनमें से कुछ को हरी झंडी देने के लिए केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट में अपील कर सकती है। केंद्र सरकार को जल्द ही कोर्ट में एक हलफनामा देना है, जिसमें बांधों को लेकर सरकार का फैसला तय होगा। गौरतलब है कि सरकार की बनाई एक एक्सपर्ट कमेटी पहले ही इन बांधों पर सवाल खड़ा कर चुकी है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में गुरुवार को 'नेशनल गंगा रिवर बेसिन अथॉरिटी' की मीटिंग हुई। सूत्र बता रहे हैं कि सरकार अदालत में इस तरह का हलफनामा दे सकती है, जिससे रोके गए बांधों में कुछ का काम शुरू करने की अनुमति मिल सके। उत्तराखंड की मौजूदा सरकार भी बांधों का निर्माण रोके जाने के पक्ष में नहीं है। इस मीटिंग में प्रधानमंत्री से बात करने के बाद उत्तराखंड के मुख्यमंत्री हरीश रावत ने कहा कि हमने उन बांधों का निर्माण शुरू कराने के लिए कहा है जो बहुत ज़रूरी हैं।
गौरतलब है कि केदारनाथ में 2013 में आई बाढ़ और उससे राज्य में हुई भारी तबाही के बाद अदालत ने इस बात का अध्ययन करने को कहा था कि इन बांधों का इस बरबादी में क्या रोल था। केंद्र ने पहले अदालत में ये स्वीकार किया कि तबाही में इन बांधों की प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष भूमिका थी, लेकिन बाद में उसने अपना रुख बदल लिया। अभी उत्तराखंड की अलकनंदा और भागीरथी घाटी में कई बांध निर्माणाधीन हैं, जिन पर ये सवाल उठता रहा है कि इनकी वजह से पर्यावरण और उत्तराखंड की नदियों व जनजीवन पर पड़ने वाले असर का कोई वैज्ञानिक अध्ययन नहीं किया गया।
2014 में सरकार की एक्सपर्ट कमेटी के ज़्यादातर सदस्यों ने बांधों के खिलाफ रिपोर्ट दी थी, लेकिन राज्य के मुख्यमंत्री हरीश रावत ने एनडीटीवी इंडिया से कहा कि कुछ लोगों के कहने पर या विरोध करने से विकास की परियोजनाएं नहीं रोकी जा सकती। उनका कहना है कि टिहरी जैसे बांधों ने विनाश को रोकने में मदद की है।
उधर जल संसाधन मंत्री उमा भारती ने इस बारे में कोई बयान देने से इनकार कर दिया। उन्होंने बस इतना कहा कि मामला न्यायालय के विचाराधीन है और वह इस पर कुछ नहीं कह सकतीं।
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं