हड़ताली छात्राओं का वीडियो...
जयपुर:
राजस्थान के राजसमंद ज़िले में तीन स्कूलों की 1300 छात्राएं हड़ताल पर हैं। ये बच्चियां पढ़ना चाहती हैं। इनमें पढ़ने की ललक है, लेकिन पढ़ाने के लिए टीचर नहीं है। इनमें से एक स्कूल में तो सिर्फ़ 3 टीचर 700 बच्चियों को पढ़ाते हैं। तो आप समझ सकते हैं कि पढ़ाई में टीचर कितने बच्चों पर ध्यान दे पाते होंगे। खास तौर पर विशेष विषयों जैसे साइंस, हिस्ट्री, जियोग्राफी और पॉलिटिकल साइंस के लिए काबिल टीचरों की भारी कमी है।
बच्चियों की फिक्र सिर्फ पढ़ाई तक सीमित नहीं है। अच्छी टीचिंग की कमी के चलते बच्चियां फेल होने पर परिवारों द्वारा स्कूल से निकाल ली जाती हैं और कच्ची उम्र में शादी कर जाती है। ये स्कूल 12वीं तक हैं, लेकिन कॉमर्स जैसे विषय पढ़ाने के लिए विशेष टीचर ही नहीं है। शिक्षा के खराब स्तर के चलते पिछले साल दसवीं में आधी बच्चियां फेल हो गई थीं।
राजस्थान में राजसमन्द ज़िले की तीन स्कूल की छात्राएं हड़ताल पर हैं। वो कहती हैं हम पढ़ना चाहते हैं, लेकिन पढ़ाने वाला कोई नहीं है। सबसे पहले हड़ताल पर रैली निकाली राजसमन्द ज़िले में देवेर का श्रीमती फूली बाई राजकीय बालिका माध्यमिक की बच्चियों ने। यहां 308 बच्चियां है और टीचर सिर्फ चार, जबकि टीचरों के रिक्त पद 16 हैं।
कुछ ही दूर, बरार का राजकीय बालिका उच्च माध्यमिक विद्यालय है। यहां 300 बच्चियां है और अध्यापक तीन, जबकि शिक्षकों के रिक्त पद 27 हैं।
और फिर भीम क़स्बे में राजकीय बालिका उच्च माध्यमिक विद्यालय, जो इस ब्लॉक का सबसे बड़ा स्कूल है। यहां 700 छात्राएं है और उन्हें पढ़ाने के लिए टीचर्स सिर्फ चार। हालात यह है कि यहां पिछले आठ साल से कोई प्रिंसिपल भी नहीं है।
बारहवीं में भूगोल, गृह विज्ञान, इतिहास, राजनीति विज्ञान, फिजिक्स, केमिस्ट्री, बायोलॉजी सरीखे किसी भी विषय के टीचर है ही नहीं। इस स्कूल में 12 वीं कक्षा में पढ़ रही मेघना चौहान चिंतित हैं और कहती हैं, " मैंने भूगल ले रखा है। हमें प्रैक्टिकल करना पड़ता है, लेकिन टीचर नहीं है तो प्रैक्टिकल करना बहुत मुश्किल होता है।"
देवेर की नेहा सुराणा अच्छे से समझती हैं की स्कूल में रहने के फायदे हैं। नेहा कहती हैं, "टीचर नहीं होगा तो हम पास कैसे होंगे। एक बार फेल होने के बाद मम्मी-पापा नहीं पढ़ाते हैं। बोलते है घर बैठो और शादी करवा देते हैं।"
टीचर्स की अनुपस्थिति छात्रों के रिजल्ट पर तो असर डालती ही है, पिछले साल इन तीन स्कूल में सिर्फ 40 से 50% लड़कियां दसवीं और बारहवीं का एग्जाम पास कर पाईं। बाकियों ने अपनी पढ़ाई छोड़ दी। आंकड़ें ये भी बताते है कि राजस्थान में सबसे ज़्यादा बच्चियां आठवीं के बाद स्कूल छोड़ देती हैं।
मनीषा, कक्षा दसवीं की छात्र हैं। ट्यूशन करके नौंवी तो पास कर ली, लेकिन अब उसकी चिंता है की बिना टीचर दसवीं में क्या होगा? मनीषा ने कहा, "अब कोई पढ़ा नहीं रहा है, तो रिजल्ट तो डाउन जाएगा ही। हम ट्यूशन करके पढ़ते हैं। इतनी दूर से आते है, लेकिन जब पढ़ाई नहीं होती तो क्या फायदा।"
सरकार भी ये मानती है, उसे जितने शिक्षकों की आवश्यकता है, उसका सिर्फ 50 % उनके पास अभी उपलब्ध है।
राजस्थान के शिक्षा मंत्री वासुदेन देवनानी का कहना है कि "टीचर्स की कमी पिछले कई वर्षों से है। मुझे पूरा बिगड़ा हुआ धड़ा मिला है। जो लगभग 50 फीसदी से अधिक खाली जगह मिली हैं, वो धीरे-धीरे मैं 20 प्रतिशत तक छोडूंगा।''
'राइट तो एजुकेशन' के तहत 35 बच्चों पर एक शिक्षक होना चाहिए, लेकिन यहां सवाल केवल शिक्षा का नहीं, बल्कि बच्चियों की पूरी ज़िंदगी का है। अगर बच्चियां नहीं पढ़ सकेंगी, तो सामाजिक रीतियों के अनुसार उनकी नाबालिग उम्र में ही शादी कर दी जाएगी।
बच्चियों की फिक्र सिर्फ पढ़ाई तक सीमित नहीं है। अच्छी टीचिंग की कमी के चलते बच्चियां फेल होने पर परिवारों द्वारा स्कूल से निकाल ली जाती हैं और कच्ची उम्र में शादी कर जाती है। ये स्कूल 12वीं तक हैं, लेकिन कॉमर्स जैसे विषय पढ़ाने के लिए विशेष टीचर ही नहीं है। शिक्षा के खराब स्तर के चलते पिछले साल दसवीं में आधी बच्चियां फेल हो गई थीं।
राजस्थान में राजसमन्द ज़िले की तीन स्कूल की छात्राएं हड़ताल पर हैं। वो कहती हैं हम पढ़ना चाहते हैं, लेकिन पढ़ाने वाला कोई नहीं है। सबसे पहले हड़ताल पर रैली निकाली राजसमन्द ज़िले में देवेर का श्रीमती फूली बाई राजकीय बालिका माध्यमिक की बच्चियों ने। यहां 308 बच्चियां है और टीचर सिर्फ चार, जबकि टीचरों के रिक्त पद 16 हैं।
कुछ ही दूर, बरार का राजकीय बालिका उच्च माध्यमिक विद्यालय है। यहां 300 बच्चियां है और अध्यापक तीन, जबकि शिक्षकों के रिक्त पद 27 हैं।
और फिर भीम क़स्बे में राजकीय बालिका उच्च माध्यमिक विद्यालय, जो इस ब्लॉक का सबसे बड़ा स्कूल है। यहां 700 छात्राएं है और उन्हें पढ़ाने के लिए टीचर्स सिर्फ चार। हालात यह है कि यहां पिछले आठ साल से कोई प्रिंसिपल भी नहीं है।
बारहवीं में भूगोल, गृह विज्ञान, इतिहास, राजनीति विज्ञान, फिजिक्स, केमिस्ट्री, बायोलॉजी सरीखे किसी भी विषय के टीचर है ही नहीं। इस स्कूल में 12 वीं कक्षा में पढ़ रही मेघना चौहान चिंतित हैं और कहती हैं, " मैंने भूगल ले रखा है। हमें प्रैक्टिकल करना पड़ता है, लेकिन टीचर नहीं है तो प्रैक्टिकल करना बहुत मुश्किल होता है।"
देवेर की नेहा सुराणा अच्छे से समझती हैं की स्कूल में रहने के फायदे हैं। नेहा कहती हैं, "टीचर नहीं होगा तो हम पास कैसे होंगे। एक बार फेल होने के बाद मम्मी-पापा नहीं पढ़ाते हैं। बोलते है घर बैठो और शादी करवा देते हैं।"
टीचर्स की अनुपस्थिति छात्रों के रिजल्ट पर तो असर डालती ही है, पिछले साल इन तीन स्कूल में सिर्फ 40 से 50% लड़कियां दसवीं और बारहवीं का एग्जाम पास कर पाईं। बाकियों ने अपनी पढ़ाई छोड़ दी। आंकड़ें ये भी बताते है कि राजस्थान में सबसे ज़्यादा बच्चियां आठवीं के बाद स्कूल छोड़ देती हैं।
मनीषा, कक्षा दसवीं की छात्र हैं। ट्यूशन करके नौंवी तो पास कर ली, लेकिन अब उसकी चिंता है की बिना टीचर दसवीं में क्या होगा? मनीषा ने कहा, "अब कोई पढ़ा नहीं रहा है, तो रिजल्ट तो डाउन जाएगा ही। हम ट्यूशन करके पढ़ते हैं। इतनी दूर से आते है, लेकिन जब पढ़ाई नहीं होती तो क्या फायदा।"
सरकार भी ये मानती है, उसे जितने शिक्षकों की आवश्यकता है, उसका सिर्फ 50 % उनके पास अभी उपलब्ध है।
राजस्थान के शिक्षा मंत्री वासुदेन देवनानी का कहना है कि "टीचर्स की कमी पिछले कई वर्षों से है। मुझे पूरा बिगड़ा हुआ धड़ा मिला है। जो लगभग 50 फीसदी से अधिक खाली जगह मिली हैं, वो धीरे-धीरे मैं 20 प्रतिशत तक छोडूंगा।''
'राइट तो एजुकेशन' के तहत 35 बच्चों पर एक शिक्षक होना चाहिए, लेकिन यहां सवाल केवल शिक्षा का नहीं, बल्कि बच्चियों की पूरी ज़िंदगी का है। अगर बच्चियां नहीं पढ़ सकेंगी, तो सामाजिक रीतियों के अनुसार उनकी नाबालिग उम्र में ही शादी कर दी जाएगी।
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