जस्टिस मार्कंडेय काटजू की फाइल फोटो.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस मार्कन्डेय काटजू आमतौर पर चर्चा और विवादों में बने रहते हैं, और हाल ही में उर्दू शायरी को हिन्दी से बेहतर बताने वाले अपने ट्वीट में कवि और राजनेता कुमार विश्वास को टैग करने पर उन्होंने नाराज़गी भी जताई थी. यही नहीं, इस ट्वीट के लिए सोशल मीडिया पर जस्टिस काटजू को बहुत-से लोगों ने कोसा और उनका मज़ाक उड़ाया. हालांकि इन सबके बावजूद मार्कंडेय काटजू सोशल मीडिया पर मुखर रहते हैं. फेसबुक से लेकर ट्विटर तक वह विभिन्न मुद्दों पर मुखर होकर विचार बयां करते हैं.
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एक शख्स ने जस्टिस मार्कन्डेय काटजू को हिन्दी का बेहतर ज्ञान हासिल करने के लिए रामचरितमानस पढ़ने की सलाह दी, तो उन्होंने भी दिलचस्प जवाब दिया. मानस टंडन नामक इस शख्स ने कहा, "चाचा काटजू, एक बार रामचरितमानस पढ़ लिए होते, तो यूं अपनी बुद्धिमत्ता का परिचय देकर उपहास का पात्र न बनते... बीसों फ़ैज़, ग़ालिब मिल जाएं, तो भी अवधी में लिखे हुए इस महाकाव्य के सामने खड़े नहीं हो सकते... मगर आपके चक्षु पर उर्दू का ऐनक चढ़ा हुआ है..."
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इस कमेंट पर जस्टिस मार्कन्डेय काटजू भी शांत नहीं रह पाए, और जवाब में लिखा, "भतीजे, मैं रामचरितमानस पढ़ रहा हूं, जब से तुम पैदा भी नहीं हुए थे... तुम पर यह उपयुक्त है - मूरख हृदय न चेत..."
इसके बाद भी मानस टंडन नामक इस शख्स को तसल्ली नहीं हुई, और उसने फिर लिखा डाला, "चाचा, सही में पढ़े होते, तो हिन्दी को कम न आंके होते... और आपको पता होता कि जो आपने ऊपर लिखा है, उसे छंद कहते हैं... गनीमत है, आपने ऊपर लिखी पंक्ति को शेर नहीं कह दिया... आपके मुंह से तो सिर्फ शेर निकलते हैं..."
इसके बाद जस्टिस मार्कन्डेय काटजू ने भी फिर जवाब दिया, "तुम्हें ब्रह्मा जैसे गुरु भी मिल जाएं, तो भी अक्ल नहीं आएगी... मूरख हृदय न चेत, जो मिलें गुरु बिरंच सम... हरि ओम..."
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