अरविंद केजरीवाल (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
दिल्ली की अरविन्द केजरीवाल सरकार के लोकपाल की निष्पक्षता पर अभी से सवाल उठने लगे हैं। और सवाल भी ऐसे कि अगर बिल मौजूदा स्वरूप में लागू हो जाए तो इसको दिल्ली का लोकपाल नहीं बल्कि 'सरकार का लोकपाल' कहना ज्यादा ठीक होगा। गौरतलब है कि केजरीवाल सरकार इसी विधानसभा सत्र में अपना महत्वाकांक्षी लोकपाल बिल लेकर आ रही है।
सूत्रों के मुताबिक, दिल्ली सरकार के 'दिल्ली जनलोकपाल बिल 2015' के प्रस्तावों के मुताबिक दिल्ली के लोकपाल को चुनने के लिये चार मेंबर का पैनल होगा-सीएम, नेता विपक्ष, विधान सभा स्पीकर और दिल्ली हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस। ये पैनल पहले एक सर्च पैनल गठित करेगा जो लोकपाल के नाम सुझाएगा। फिर सुझाए गए नामों पर अंतिम फैसला ये सलेक्शन पैनल करेगा।
जो बात खटक रही है वो ये कि लोकपाल को जो पैनल चुनेगा, उसमे चार में से तीन नेता होंगे जबकि 2011 में ऐतिहासिक लोकपाल आंदोलन के समय कांग्रेस के लोकपाल बिल का विरोध अरविन्द केजरीवाल और अण्णा हजारे ने इसलिए भी किया था क्योंकि ये दलील थी कि अगर नेता ही लोकपाल चुनेंगे तो लोकपाल ईमानदार, स्वतंत्र और निष्पक्ष कैसे होगा?
संस्थान की स्वायत्तता का गला घोंटने जैसा : गुप्ता
दिल्ली विधानसभा में विपक्ष के नेता विजेंदर गुप्ता का कहना है कि 'नेता लोग क्या लोकपाल चुनेंगे? तो वो लोकपाल क्या होगा? तो आज ये खुद अपना दखल बनाने के लिए अपना हस्तक्षेप बढ़ाने के लिए राजनीतिकरण करने के लिए इस पूरी संस्था की दुर्गति करने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।' गुप्ता के मुताबिक, अभी दिल्ली में मौजूदा लोकायुक्त कानून में केवल दिल्ली हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस और नेता प्रतिपक्ष ही उपराज्यपाल के साथ चर्चा करके लोकायुक्त का चुनाव करते हैं, ऐसे में सीएम और स्पीकर का चुनाव प्रक्रिया में शामिल होना इस संस्थान की स्वायतत्ता का गला घोंटने जैसा है।'
थोड़ा इंतजार तो कीजिए : पाण्डेय
दूसरी ओर, आम आदमी पार्टी के दिल्ली प्रदेश संयोजक दिलीप पाण्डेय का कहना है कि 'हमें इस बिल की डिटेल्स के लिए अभी थोडा इंतजार करना चाहिए क्योंकि बिल अभी केवल कैबिनेट में पास हुआ है इसका विधानसभा में आना और चर्चा होना बाकी है। मुझे उम्मीद है कि सरकार पूरी चर्चा के बाद जो बिल पास करेगी वो दिल्ली को देश का पहला करप्शन मुक्त राज्य बनाएगा।' इसके बावजूद सवाल यही है कि जिस लोकपाल को चुनने में 50 फीसदी सरकार का दखल हो और 75 फीसदी दखल नेताओं का हो तो वो आप नेताओं की ही जुबां में जनलोकपाल कैसे हो सकता है ?
सूत्रों के मुताबिक, दिल्ली सरकार के 'दिल्ली जनलोकपाल बिल 2015' के प्रस्तावों के मुताबिक दिल्ली के लोकपाल को चुनने के लिये चार मेंबर का पैनल होगा-सीएम, नेता विपक्ष, विधान सभा स्पीकर और दिल्ली हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस। ये पैनल पहले एक सर्च पैनल गठित करेगा जो लोकपाल के नाम सुझाएगा। फिर सुझाए गए नामों पर अंतिम फैसला ये सलेक्शन पैनल करेगा।
जो बात खटक रही है वो ये कि लोकपाल को जो पैनल चुनेगा, उसमे चार में से तीन नेता होंगे जबकि 2011 में ऐतिहासिक लोकपाल आंदोलन के समय कांग्रेस के लोकपाल बिल का विरोध अरविन्द केजरीवाल और अण्णा हजारे ने इसलिए भी किया था क्योंकि ये दलील थी कि अगर नेता ही लोकपाल चुनेंगे तो लोकपाल ईमानदार, स्वतंत्र और निष्पक्ष कैसे होगा?
संस्थान की स्वायत्तता का गला घोंटने जैसा : गुप्ता
दिल्ली विधानसभा में विपक्ष के नेता विजेंदर गुप्ता का कहना है कि 'नेता लोग क्या लोकपाल चुनेंगे? तो वो लोकपाल क्या होगा? तो आज ये खुद अपना दखल बनाने के लिए अपना हस्तक्षेप बढ़ाने के लिए राजनीतिकरण करने के लिए इस पूरी संस्था की दुर्गति करने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।' गुप्ता के मुताबिक, अभी दिल्ली में मौजूदा लोकायुक्त कानून में केवल दिल्ली हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस और नेता प्रतिपक्ष ही उपराज्यपाल के साथ चर्चा करके लोकायुक्त का चुनाव करते हैं, ऐसे में सीएम और स्पीकर का चुनाव प्रक्रिया में शामिल होना इस संस्थान की स्वायतत्ता का गला घोंटने जैसा है।'
थोड़ा इंतजार तो कीजिए : पाण्डेय
दूसरी ओर, आम आदमी पार्टी के दिल्ली प्रदेश संयोजक दिलीप पाण्डेय का कहना है कि 'हमें इस बिल की डिटेल्स के लिए अभी थोडा इंतजार करना चाहिए क्योंकि बिल अभी केवल कैबिनेट में पास हुआ है इसका विधानसभा में आना और चर्चा होना बाकी है। मुझे उम्मीद है कि सरकार पूरी चर्चा के बाद जो बिल पास करेगी वो दिल्ली को देश का पहला करप्शन मुक्त राज्य बनाएगा।' इसके बावजूद सवाल यही है कि जिस लोकपाल को चुनने में 50 फीसदी सरकार का दखल हो और 75 फीसदी दखल नेताओं का हो तो वो आप नेताओं की ही जुबां में जनलोकपाल कैसे हो सकता है ?
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