दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
माननीय मुख्य चुनाव आयुक्त महोदय, चुनाव आयुक्त गण, विभिन्न टेक्निकल एक्सपर्ट्स, अन्य अधिकारी गण, ईवीएम बनाने वाली दोनों सरकारी कंपनियों के प्रतिनिधि, विभिन्न पॉलिटिकल पार्टीज की तरफ से आए लीडर्स और प्रतिनिधि. ये बहुत सुनहरा मौका है कि हम ये लोकतंत्र की फाउंडेशन मजबूत करने के लिए हम एक बहुत गंभीर चर्चा करने के लिए बैठे हैं. सर, 1952 से ही भारत में ये सवाल उठता था कि इतने बड़े देश में, इतने बड़े भौगोलिक विस्तार वाले देश में, इतने बड़े-बड़े टोपोग्राफी वाले देश में चुनाव प्रक्रिया इंमप्लिमेंट कराना कैसे संभव है. लेकिन मैं बहुत फख्र के साथ कह सकता हूं कि 1952 से लेकर अब तक हर चुनाव को चुनाव आयोग ने न केवल संभव किया है बल्कि सफलता पूर्वक संभव करके दिखाया है.
दुनिया में कई डेमोक्रेसी इसलिए बरबाद होती चली गईं क्योंकि वहां की चुनाव प्रक्रिया में खामियां थीं. इसलिए मैं जो यहां बात रखने जा रहा हूं या हम सब लोगों ने अपनी अपनी बात रखी है, उसका मतलब फेथ में कमी नहीं है. जैसा कि आपने अपनी बात में कहा कि हमें इवॉल्व होना है. इवोल्यूशन का प्रोसेस है. इसलिए यहां कही हुई बातों को फेथ में कमी या टीका-टिप्पणी ना माना जाए बल्कि इवोल्यूशन के प्रोसेस में दिया गया कॉन्ट्रीब्यूशन माना जाए. ये इसलिए जरूरी है क्योंकि अभी कई सवाल उठ रहे हैं. कोई कैंडिडेट कह रहा है कि उसके परिवार में 19 वोट हैं और मुझे अपने बूथ पर केवल 2 वोट मिले हैं. सवाल ये भी उठ रहे हैं कि जहां किसी कैंडिडेट ने ये सवाल उठाए या रिकाउंटिंग की बात की तो मना कर दिया गया. बहुत सारी चीजों को लेकर सवाल उठ रहे हैं. ये सवाल किसी व्यक्ति विशेष को लेकर नहीं हैं. किसी आपके आयोग पर या हमारे आयोग पर नहीं है. सवाल प्रोसेसेस पर है. उस प्रोसेस में इस्तेमाल होने वाली मशीन पर है. मैं दो-तीन चीजें आपके सामने रखता हूं.
आपने कहा, "looking forward to evolve सर, you are looking for further improvement सर, further improvement is only possible when we in principle accept that yes there are certain problems within our systems. If we keep repeating again and again it's not possible....ये तो असंभव है.. ये तो हो ही नहीं सकता... "तो फिर इसके बाद कोई इंप्रूवमेंट हो ही नहीं सकता. further improvement की संभवनाएं रह नहीं जातीं. इसलिए मेरा हंबल सबमिशन है कि अब तक प्रेजेंटेशन में जो दिखा है. हमें ऐसा लगता है कि जब तक आप इम्पॉसिबल कहते रहेंगे, हमारे सामने हर बार कहते रहेंगे. हमारी बातचीत के स्कोप कम होते जाएंगे. हमारे प्रश्न उठाने के स्कोप कम होते जाएंगे. और फर्दर इंप्रूवमेंट के स्कोप तो एकदम जीरो होते चले जाते हैं. प्रेजेंटेशन में डायरेक्टिव प्रिंसिपल्स की तरह थी. विश लिस्ट की तरह थी. एक आदर्श चुनाव व्यवस्था क्या हो सकती है, उसके बारे में थी. बहुत अच्छी बात है. लेकिन आपके पूरे प्रजेंटेशन को मैं देखूं तो दो पिलर पर आधारित है. पहला ये कि हमारी ईवीएम नॉन टेंपरिंग है. दूसरा हमारा एडमिनिस्ट्रेटिव सेफगार्ड बहुत सुरक्षित है. बहुत बढ़िया है. दोनों पर भरोसा करके आप कह रहे हैं कि ईवीएम की टेंपरिंग नहीं हो सकती. कई बार दी जा चुकी है वो कि चिप को कोई रीड नहीं कर सकता.
अगर चिप को प्रोग्रामिंग करने के बाद चिप को कोई रीड नहीं कर सकता तो इसका मतलब हम सिर्फ सॉफ्टवेयर को लोड करने वाली कंपनी के भरोसे पर ये कह रहे हैं कि उस कंपनी ने- हमने उसको सॉफ्टवेयर का प्रोटो टाइप बताया, उसने वो सॉफ्टवेयर बनाकर उस चिप में लोड कर दिया है. हममें से किसी को नहीं पता उसमें क्या सॉफ्टवेयर है, we don't know उसमें क्या सॉफ्टवेयर है. क्योंकि उसके सॉफ्टवेयर को रीड नहीं किया जा सकता, हम एडमिट कर रहे हैं. इसका मतलब चुनाव आयोग के पास में भरोसे की जानकारी है, हम गारंटी नहीं ले सकते कि उसने जो सॉफ्टवेयर डाला है, we have seen it or we confirm, we have recheck it. there is no progress to recheck it. कि उसने जो सॉफ्टवेयर अपलोड किया. दूसरा, आपने कहा मदरबोर्ड, उसमें आपने कहा कि फर्स्ट लेवल चेकअप होता है, और फर्स्ट लेवल चेकअप के दौरान हम देखते हैं. आपने एक टर्म यूज़ किया कि अगर मदरबोर्ड चेंज किया गया होगा तो, वो तो फर्स्ट लेवल चेकअप के दौरान पता चल जायेगा. सर, मैं पूछना चाहता हूं, जानकारी के लिए क्या फर्स्ट लेवल चेकअप के दौरान आपकी कंपनी के इंजिनियर मशीन को खोल कर मदरबोर्ड चेक करते हैं. क्यूंकि जब आपका demonstration यहां हो रहा था. तो उनसे मैं categorical ये बात पूछी थी कि आप इंजिनियर जब जाते हैं फर्स्ट लवले चेकअप करने तो क्या आप मशीन को अन्दर से खोल कर मदरबोर्ड की चेकिंग तक जाते हैं या नहीं? the answer given to me that time was 'NO'. 'we don't open the machine to that level'. अगर हम फर्स्ट लेवल चेकअप पर मशीन को उस लेवल तक ही नहीं खोलते हैं तो, how can we say अगर मदरबोर्ड चेंज हुआ होगा तो हमको पता चल जायेगा कि मदरबोर्ड चेंज कर दिया है किसी ने. ये इसलिए जरूरी है सर, क्योंकि मदरबोर्ड चेंज करने की पॉसिबिलिटी मैं जब आपकी सेकंड प्रेयर पर आऊंगा तो बात करूंगा आपसे.
इसमें कुछ साथियों ने सवाल उठाया था, मैं बस उन सवालों को थोड़ा सा अंडरलाइन करके आगे जा रहा हूं for the interest of time कि माइक्रो कंट्रोलर कौन बनाता है? आप टेक्नोलॉजी कौन सी यूज़ कर रहे हैं? ये सारी टेक्नोलॉजी... क्योंकि आपकी टेक्नोलॉजी में safegaurd थे, हमने मशीनों में ये safegaurd लगाये हैं, हमने adminstrations में ये safegaurd लगाये हैं.... this presentation does not assure that this technology is non untouchable. आपको टेक्नोलॉजी में मुझे लगता है टेक्निकल एक्सपर्ट के साथ में मिलकर एक अलग से सेशन करने चाहिए. it should be an open discussion. जहां IIT से लेकर IIID से लेकर अच्छे अच्छे टेक्नोक्रेट हमारे देश में हैं. उनसब के साथ में बैठ कर एक ओपन डिस्कशन हो. as a leader, as a voter, i should have faith in this technology. वो क्या टेक्नोलॉजी है? आपकी मशीन सरकार की दो कंपनियां बनती हैं. ये भी उसमें रहें. आपने भिंड के बारे में example, कुछ answer दिए. मैं फ्रैंक्ली अभी उसमें कुछ कोन्वेनिंग नहीं लग रहा है. उसमें कुछ लूपहोल हैं. मैं उसको भी discuss करना चाहूंगा. आपने discuss किया कि जर्मनी के कोर्ट ने ये कहा था, जर्मनी के कोर्ट का आपने ज़िक्र किया, सर, जर्मनी के कोर्ट का जो रेफ़रेन्स है उसमे वो इम्पोर्टेन्ट हैं. उसका प्रिंसिपल इम्पोर्टेन्ट है. उसने कहा 'वोटर और रिजल्ट के बीच टेक्नोलॉजी पर निर्भर करना uncostitutional है' that is the statement. वोटर और रिजल्ट के भरोसे के बीच टेक्नोलॉजी पर निर्भर करना uncostitutional है, सर, ये मशीन को लेकर मेरे कुछ ऑब्जरवेशन थे.
मैं administrative safeguard के बारे में with due respect to the officers working at the ground. क्यूंकि वो भी हमारे बीच में से ही हैं. हम सब लोगों के बीच में से ही निकल कर आने वाले लड़के-लडकियां हैं. हम जानते हैं कि सरकारी मशीनरी क्या होती है? आपके पास जो safeguard हैं, अगर में उसको देसी भाषा में कहूं तो वो सरकारी अफसर और सरकारी मशीनरी के safeguard हैं. और वो सरकारी मशीनरी कब, कितनी पॉलिटिकली इन्फ्लुएंस होती है और कब कितनी फाइनेंसियल इन्फ्लुएंस हो जाती है, इसके लाखों evidence हम लोगों ने देखें हैं. not only cases of election, but in daily cases, day to day लाइफ में हम देखते हैं कि हमारे पोलिटिकल मशीनरी कितनी इन्फ्लुएंस रहती है. सर, यही administration तो EVM से पहले था, जिस वक्त हमने एक देश के नाते, समाज के नाते, administration के नाते हमने तय किया था कि अब मैन्युअल वोटिंग से EVM की वोटिंग पर जायेंगे. तब हमें इसी मशीनरी में खामियां दिखती थीं.
रिगिंग हो जाती है, अफसर इन्फ्लुएंस में आ जाते हैं, अफसरों को डरा दिया जाता है, उनको ब्लैकमेल कर लिया जाता है. वो इन्फ्लुएंस होकर रिगिंग करा देते हैं, बूथ लूट तक करा देते हैं. मैं पत्रकार था सर, आठ दस साल पत्रकारिता की है मैंने. मैंने रिपोर्टिंग भी की है कि कैसे बूथ लूट होती थी. मैंने बहुत रिमोट एरिया पर भी जा कर कवर किया है तो वो मशीनरी बूथ लूट में शामिल हो जाती थी. कई बार इसीलिए तो हम evm जैसी टेक्नोलॉजी की तरफ आए कि सेफ रहें. उसी अफसर के भरोसे हम सिर्फ ये कहकर कि वहां बहुत अच्छा, किसी जगह बहुत अच्छा अफसर बैठा होगा, किसी जगह इन्फ्लुएंस अफसर भी बैठा होगा तो ये गारेंटी नहीं हो सकती. सर हम जितनी बात कर लें यहां पर सेफ गॉर्ड की, मैं आपको बताता हूं सर. अभी दिल्ली में चुनाव हुए, आप कह सकते हैं कि वो आपके डोमेन में नहीं थे लेकिन कुछ रियलिटीज़ हैं जो हर जगह मैच करेंगी. सर इलेक्शन कमीशन के तमाम आदेशों के बावजूद एक इंस्पेक्टर जाकर, एक एसएचओ जा कर कैंडिडेट को कहता है, भाई प्रचार करना है तो ज़रा एक AC लगवा दो, वरना तुम्हारे लड़कों को वहां खड़ा नहीं होने दूंगा जो पर्चे बांट रहे थे, सर आपके पास शिकायत करेंगे आपके पास कोई सबूत भी नहीं आ पायेगा लकिन वहां हम सारे लोग जानते हैं, हममे से अधिकतर लोग जानते हैं कि अगर ईमानदारी से चुनाव प्रचार के लिए दो लड़के सड़क पर खड़े किये जाएं और उनको चार घंटे के लिए पुलिस अपनी जीप में ले जा कर थाने में बंद कर दे, तो हमारा चुनाव प्रचर तो चौपट हो जाता है. और उसकी ठेग देता है इंस्पेक्टर एक लगवा दो नहीं तो देखता हूं कैसे कैंपेन करते हो, देखता हूं दूसरा सिपाही आ कर कहता है वर्दी के पैसे दे दो, दो अच्छी वर्दी के पैसे दे दो, कनाट प्लेस से लानी है. यह उद्धरण हैं, ऐसे उद्धरण हर वार्ड में हममें से हर कोई दे सकता है. आपको बहुत सारे उदाहरण दे सकता है.
सर आपने कहा FLC का निमंत्रण जाता है हर पार्टीयों को उसमें भागीदारी करें, इसलिए मैंने सर इसको शब्द दिया डायरेक्टिव प्रिंसिपल्स की तरह से हमने बोला है. एफ्फेक्टिवेली जब हम ग्राउंड पर जा कर देखते है तो How many officers are actually inviting are always welcoming to the people who are actually willing to participate in this FLC process. कितने SDM, कितने तहसीलदार वहां कैंडिडेट्स को लेके या पोलिटिकल पार्टी रिप्रेजेन्टेटिव को लेके वेलकमिंग होते हैं. कितने डिस्करेजिंग होते हैं, ये बात हम सब लोग जानते है, यहां बैठे हुए हर पार्टी के लोग जानते हैं. सर मैं तीन चीज़ें रखना चाहता हूं यहां पर प्रपोजल के रूप में. हम लोग लगातार सुन रहे थे कि हैकेथॉन होगा और मुझे लगता है कि ये अच्छी चीज़ है. हैकेथॉन, आज की तारीख में शब्द आ गया है, हैकेथॉन कोई अपराध नहीं है. एथिकल हैकेथॉन एक शब्द आ गया है. तो हम एथिकल हैकेथॉन कराएं, हम बचें न उससे. आपने अपने सम्बोधन में कहा कि हम हैकेथॉन नहीं कराएंगे, हम चैलेंज देंगे.
सर आपका जो चैलेंज का स्कोप है पहली बात वो हैकेथॉन नहीं है क्योंकि या तो आप हमें जिन पिछले पांच चुनावों की बात हम कर रहे हैं, (a) आप हमें मशीनें ओपनली दे दीजिये, हम उसको हैक कर के दिखा देंगे आपको. (b) अगर आप क्योंकि देखिये आप कहेंगे अभी इस मशीनों को हैक नहीं किया जा सकता क्योंकि हैकिंग की एक परिभाषा है. हमारे मित्र बैठे हैं, मेरे साथी सौरव भरद्वाज. ये एम्बेडेड टेक्नोलॉजी में 9 साल का तजुर्बा रखते हैं. इंजीनियरिंग के बाद इन्होंने आज दो दिन पहले दिल्ली विधानसभा में भी एक मशीन का प्रोटोटाइप हैक कर के दिखाया.
सर उस मशीन के बारे में, मैं भी गारंटी ले सकता हूं कि उसको भी कोई हैक करके नहीं दिखा सकता क्योंकि हम उसका कोड जानते हैं, हम उसको हैक कर सकते हैं, हम टेम्पर्ड कर सकते हैं तो कितनी टेंपरिंग है उसमें क्योंकि आपने जो शब्द इस्तेमाल किया उसको इस्तेमाल कर रहा हूं. आपने कहा पिछले चुनावो में टेंपरिंग हुई थी इसका प्रूफ दो.
सर, मैं आपके सामने अपनी मशीन रख रहा हूं. उसका भी कोई प्रूफ नहीं दे सकता. कोई तो उसको थोड़ा सा लिबरल करे, लिबरल अप्रोच उसमें रखें और ये पॉजिटिव अप्रोच के साथ चलें क्योंकि मिश्रा साहब ने भी ज़िक्र किया, पंजाब में भी हम कह रहे थे. बहुत सारे ऐसे एरिया हैं जहां बहुत सारे लोगों ने एफिडेविट फाइल किए हैं कि मैंने वोट दिया था, मेरी पार्टी जिसको मैंने वोट दिया था उसको 10 वोट आए हैं. और 20 लोग एफिडेविट फाइल करके ये कह रहे हैं कि हमने तो इसी पार्टी को वोट दिया था साहब, कहां गया हमारा वोट, सिर्फ 10 कैसे आए. तो जहां जहां ऐसे कंट्रोवर्सिअल इश्यूज आए हैं, मेरा सबमिशन सर ये रहेगा कि इस तरह के बूथ की मशीनों को आप अपने पोजेशन में लें, उनको यहां मल्टी पार्टी टीम बनाएं, एक मजिस्ट्रेट को बैठाएं और उनके सामने उन लोगों बुलाएं जिन लोगों ने एफिडेविट दिया था.
मेरा पहला सुझाव तो ये है कि जिन जगहों पर प्रत्याशियों को परिणामों में गड़बड़ी की सबसे ज्यादा शंका है, वहां की EVM चुनाव आयुक्त अपने कब्जे में लें और ऐसे जो प्रत्याशी जो एफिडेविट देकर कह रहे हैं कि हमारे वोट नतीजों के वोट से ज्यादा हैं, उन्हें सभी भाग लेने वाले दलों के प्रत्याशियों के सामने अपने वोटर्स को लाने को कहें, शपथ पत्र के हिसाब से समय का मिलान करके उन वोटर्स के वोट की जांच मजिस्ट्रेट की उपस्थिति में करा लें. अगर वे सही कह रहे हैं तो जांच का विषय है, और यदि वे गलत हैं तो कोई बात नहीं, मैं भगवान से प्रार्थना करता हूं कि उनके दावे गलत हों क्योंकि सिर्फ तभी हमारा लोकतंत्र सुरक्षित है! तभी हम लोकतांत्रिक व्यवस्था के अनुसार चल पाएंगे!
मैं चुनाव आयोग के इस आदेश की सराहना करता हूँ कि आपने आगे के सभी चुनाव VVPAT के साथ कराने का निर्णय लिया है, जो कि देश के विकास के लिये एक सराहनीय कदम है. लेकिन इसमें एक विशेष बात है जो मैं सुझाव के रूप में रख रहा हूं. माननीय उच्चतम न्यायालय ने जब कहा कि चुनावों में VVPAT का इस्तेमाल हो तो उन्होंने सिर्फ VVPAT मशीन लगाने को नहीं कहा, VVPAT हमें अवसर देता है कि अगर वोटिंग से मतगणना के बीच में कोई गड़बड़ हो तो, उसका मिलान VVPAT के प्रिंट से मिलान हो सके लेकिन उस प्रिंट रसीद की गिनती की व्यवस्था नहीं है, उस प्रिंटिग की गिनती सिर्फ उच्च न्यायालय के आदेश के बाद हो सकती है. चुनाव आयोग ऐसी व्यवस्था करे कि हर विधानसभा या लोकसभा या चुनाव में कम से कम 25 फीसदी बूथ के वोट की EVM की गिनती का मिलान, VVPAT की पर्ची के साथ हो. वो 25 फीसदी बूथ का चयन रैंडम तरीके से किया जा सकता है, या प्रत्याशियों की इच्छानुसार हो सकता है. 25 फीसदी बूथ पर आप पर्ची की गिनती को अनिवार्य कर दें, तभी VVPAT का प्रभावी प्रयोग हो पायेगा. नहीं तो कौन कब आपत्ति दायर करता है, फिर कोर्ट जाता है, फिर फैसला आता है, आयुक्त महोदय ये बहुत लंबी प्रक्रिया है इसे हमें सरल बनाना ही होगा.
मेरा तीसरा और आखिरी सुझाव ये है कि आप हमें ये चुनौती भी दें कि हम ये सिद्ध करें कि पिछले चुनावों में EVM टैम्परिंग हुई है लेकिन साथ साथ हैकेथॉन भी करवायें, हैकेथॉन बहुत पवित्र चीज है, आप इसकी अनुमति दें और एथिकल हैकेथॉन पर जरूर ध्यान दें, हैकेथॉन की परिभाषा ये हो कि "मशीन, सूचना और डाटा को अनाधिकृत तरीके से जांचने की अनुमति" अगर आप EVM मशीनों की जांच कराते हैं तो देश और लोकतंत्र की बुनियाद के लिये बेहद उपयोगी और लाभदायक होगा. ये आप सिर्फ राजनैतिक दलों से ही न करायें क्योंकि ये जरूरी नहीं है कि हर दल में 9 साल के अनुभव वाला एम्बेडेड टेक्नोलॉजी का इंजीनियर उपलब्ध हो, पूरे देश की IIT, IIIT, NIT और प्रतिष्ठित संस्थाओं के बच्चों को बुलायें, तमाम टेक्नोक्रेट्स काम कर रहे हैं हमारे देश में, उन्हें बुलाएं और चुनौती दें. इस हैकेथॉन को नकारात्मक नजरिये से न देखें, इसे इस तरह न लें कि कोई देश की व्यवस्था को चुनौती दे रहा है, इसे उसी नजरिये से देखें जैसे एवरेस्ट पर जाने वाला, इंग्लिश चैनल पार करने वाला उसे एक चुनौती के रूप में लेता है, ये देश की परंपरा में बदलाव की शुरुआत हो सकती है. इससे ये संदेश भी जायेगा की हमारे यहां चुनावी प्रक्रिया इतवी पारदर्शी है कि लोगों को खुली चुनौती है कि वे नियम के अंतर्गत उसे चुनौती दे सकते हैं और सुधार करवा सकते हैं.
हमें ऐसे टेक्नोक्रेट और लोगों की प्रशंसा करनी चाहिये और उन्हें शाबासी देनी चाहिये जो हैकेथॉन में आकर EVM को टैम्पर करके दिखाएं कि उसने हमें हमारी कमजोरी बतायी और इसे हम दूर करेंगें, इससे लोकतंत्र मजबूत होगा, हमें हैकिंग की चुनौती से भागने की जरूरत नहीं है, उससे बचें नहीं.
मैं ये सभी सुझाव पार्टी की तरफ से प्रक्रिया के अनुसार आपको जमा करा दूंगा.
एक अंतिम सुझाव और है कि हर बूथ पर कैमरे की व्यवस्था करवायें. अभी CCTV की व्यवस्था है लेकिन सिर्फ चुनिंदा जगहों पर है, उसे बढ़वायें क्योंकि कैमरों के बढ़ने से गड़बड़ियों की संभावनायें कम होती जाएंगी. पार्टियों को उद्योगपतियों और हर जगह से मिलने वाले चंदे को पारदर्शी बनाएं, आज 2000 रुपये चंदा देने वाले की जांच होने लगती है, आयकर विभाग (IT) का फोन आ जाता है, लेकिन 200 करोड़ रुपये का चंदा कहां से आया, किसने दिया? क्यों दिया, किसी को पता भी नहीं चलता.
इसे हमें 100% पारदर्शी बनाना होगा, 2 रुपये वाले का भी नाम हो और 200 करोड़ वाले का भी नाम हो, जिससे हम भी इनकम टैक्स डिपार्टमेंट से पूछ सकेंगे कि 2 रुपये वाले पर इतनी जांच और 200 करोड़ पर कोई जांच नहीं.
ये हमारे कुछ छोटे छोटे सुझाव हैं, मैं खुश हूं कि आपने हमारे पत्र पर चर्चा की और ये बैठक बुलाई लेकिन एक छोटी सी बात और जो महत्वपूर्ण है कि हमें दुःख हुआ कि आपने हमारे पत्र के जवाब में आपने लिखा कि "EVM टैम्परिंग नहीं हो सकती और आप EVM पर सवाल न उठायें बल्कि पंजाब की हार का चिंतन करें." महोदय, चुनाव आयोग एक बहुत ही पवित्र संस्था है और जब उसकी तरफ से इस तरह की भाषा में पत्र मिलता है तो धक्का लगता है, अफसोस होता है, अतः इस तरह की परंपरा को रोकें.
बहुत बहुत धन्यवाद!
दुनिया में कई डेमोक्रेसी इसलिए बरबाद होती चली गईं क्योंकि वहां की चुनाव प्रक्रिया में खामियां थीं. इसलिए मैं जो यहां बात रखने जा रहा हूं या हम सब लोगों ने अपनी अपनी बात रखी है, उसका मतलब फेथ में कमी नहीं है. जैसा कि आपने अपनी बात में कहा कि हमें इवॉल्व होना है. इवोल्यूशन का प्रोसेस है. इसलिए यहां कही हुई बातों को फेथ में कमी या टीका-टिप्पणी ना माना जाए बल्कि इवोल्यूशन के प्रोसेस में दिया गया कॉन्ट्रीब्यूशन माना जाए. ये इसलिए जरूरी है क्योंकि अभी कई सवाल उठ रहे हैं. कोई कैंडिडेट कह रहा है कि उसके परिवार में 19 वोट हैं और मुझे अपने बूथ पर केवल 2 वोट मिले हैं. सवाल ये भी उठ रहे हैं कि जहां किसी कैंडिडेट ने ये सवाल उठाए या रिकाउंटिंग की बात की तो मना कर दिया गया. बहुत सारी चीजों को लेकर सवाल उठ रहे हैं. ये सवाल किसी व्यक्ति विशेष को लेकर नहीं हैं. किसी आपके आयोग पर या हमारे आयोग पर नहीं है. सवाल प्रोसेसेस पर है. उस प्रोसेस में इस्तेमाल होने वाली मशीन पर है. मैं दो-तीन चीजें आपके सामने रखता हूं.
आपने कहा, "looking forward to evolve सर, you are looking for further improvement सर, further improvement is only possible when we in principle accept that yes there are certain problems within our systems. If we keep repeating again and again it's not possible....ये तो असंभव है.. ये तो हो ही नहीं सकता... "तो फिर इसके बाद कोई इंप्रूवमेंट हो ही नहीं सकता. further improvement की संभवनाएं रह नहीं जातीं. इसलिए मेरा हंबल सबमिशन है कि अब तक प्रेजेंटेशन में जो दिखा है. हमें ऐसा लगता है कि जब तक आप इम्पॉसिबल कहते रहेंगे, हमारे सामने हर बार कहते रहेंगे. हमारी बातचीत के स्कोप कम होते जाएंगे. हमारे प्रश्न उठाने के स्कोप कम होते जाएंगे. और फर्दर इंप्रूवमेंट के स्कोप तो एकदम जीरो होते चले जाते हैं. प्रेजेंटेशन में डायरेक्टिव प्रिंसिपल्स की तरह थी. विश लिस्ट की तरह थी. एक आदर्श चुनाव व्यवस्था क्या हो सकती है, उसके बारे में थी. बहुत अच्छी बात है. लेकिन आपके पूरे प्रजेंटेशन को मैं देखूं तो दो पिलर पर आधारित है. पहला ये कि हमारी ईवीएम नॉन टेंपरिंग है. दूसरा हमारा एडमिनिस्ट्रेटिव सेफगार्ड बहुत सुरक्षित है. बहुत बढ़िया है. दोनों पर भरोसा करके आप कह रहे हैं कि ईवीएम की टेंपरिंग नहीं हो सकती. कई बार दी जा चुकी है वो कि चिप को कोई रीड नहीं कर सकता.
अगर चिप को प्रोग्रामिंग करने के बाद चिप को कोई रीड नहीं कर सकता तो इसका मतलब हम सिर्फ सॉफ्टवेयर को लोड करने वाली कंपनी के भरोसे पर ये कह रहे हैं कि उस कंपनी ने- हमने उसको सॉफ्टवेयर का प्रोटो टाइप बताया, उसने वो सॉफ्टवेयर बनाकर उस चिप में लोड कर दिया है. हममें से किसी को नहीं पता उसमें क्या सॉफ्टवेयर है, we don't know उसमें क्या सॉफ्टवेयर है. क्योंकि उसके सॉफ्टवेयर को रीड नहीं किया जा सकता, हम एडमिट कर रहे हैं. इसका मतलब चुनाव आयोग के पास में भरोसे की जानकारी है, हम गारंटी नहीं ले सकते कि उसने जो सॉफ्टवेयर डाला है, we have seen it or we confirm, we have recheck it. there is no progress to recheck it. कि उसने जो सॉफ्टवेयर अपलोड किया. दूसरा, आपने कहा मदरबोर्ड, उसमें आपने कहा कि फर्स्ट लेवल चेकअप होता है, और फर्स्ट लेवल चेकअप के दौरान हम देखते हैं. आपने एक टर्म यूज़ किया कि अगर मदरबोर्ड चेंज किया गया होगा तो, वो तो फर्स्ट लेवल चेकअप के दौरान पता चल जायेगा. सर, मैं पूछना चाहता हूं, जानकारी के लिए क्या फर्स्ट लेवल चेकअप के दौरान आपकी कंपनी के इंजिनियर मशीन को खोल कर मदरबोर्ड चेक करते हैं. क्यूंकि जब आपका demonstration यहां हो रहा था. तो उनसे मैं categorical ये बात पूछी थी कि आप इंजिनियर जब जाते हैं फर्स्ट लवले चेकअप करने तो क्या आप मशीन को अन्दर से खोल कर मदरबोर्ड की चेकिंग तक जाते हैं या नहीं? the answer given to me that time was 'NO'. 'we don't open the machine to that level'. अगर हम फर्स्ट लेवल चेकअप पर मशीन को उस लेवल तक ही नहीं खोलते हैं तो, how can we say अगर मदरबोर्ड चेंज हुआ होगा तो हमको पता चल जायेगा कि मदरबोर्ड चेंज कर दिया है किसी ने. ये इसलिए जरूरी है सर, क्योंकि मदरबोर्ड चेंज करने की पॉसिबिलिटी मैं जब आपकी सेकंड प्रेयर पर आऊंगा तो बात करूंगा आपसे.
इसमें कुछ साथियों ने सवाल उठाया था, मैं बस उन सवालों को थोड़ा सा अंडरलाइन करके आगे जा रहा हूं for the interest of time कि माइक्रो कंट्रोलर कौन बनाता है? आप टेक्नोलॉजी कौन सी यूज़ कर रहे हैं? ये सारी टेक्नोलॉजी... क्योंकि आपकी टेक्नोलॉजी में safegaurd थे, हमने मशीनों में ये safegaurd लगाये हैं, हमने adminstrations में ये safegaurd लगाये हैं.... this presentation does not assure that this technology is non untouchable. आपको टेक्नोलॉजी में मुझे लगता है टेक्निकल एक्सपर्ट के साथ में मिलकर एक अलग से सेशन करने चाहिए. it should be an open discussion. जहां IIT से लेकर IIID से लेकर अच्छे अच्छे टेक्नोक्रेट हमारे देश में हैं. उनसब के साथ में बैठ कर एक ओपन डिस्कशन हो. as a leader, as a voter, i should have faith in this technology. वो क्या टेक्नोलॉजी है? आपकी मशीन सरकार की दो कंपनियां बनती हैं. ये भी उसमें रहें. आपने भिंड के बारे में example, कुछ answer दिए. मैं फ्रैंक्ली अभी उसमें कुछ कोन्वेनिंग नहीं लग रहा है. उसमें कुछ लूपहोल हैं. मैं उसको भी discuss करना चाहूंगा. आपने discuss किया कि जर्मनी के कोर्ट ने ये कहा था, जर्मनी के कोर्ट का आपने ज़िक्र किया, सर, जर्मनी के कोर्ट का जो रेफ़रेन्स है उसमे वो इम्पोर्टेन्ट हैं. उसका प्रिंसिपल इम्पोर्टेन्ट है. उसने कहा 'वोटर और रिजल्ट के बीच टेक्नोलॉजी पर निर्भर करना uncostitutional है' that is the statement. वोटर और रिजल्ट के भरोसे के बीच टेक्नोलॉजी पर निर्भर करना uncostitutional है, सर, ये मशीन को लेकर मेरे कुछ ऑब्जरवेशन थे.
मैं administrative safeguard के बारे में with due respect to the officers working at the ground. क्यूंकि वो भी हमारे बीच में से ही हैं. हम सब लोगों के बीच में से ही निकल कर आने वाले लड़के-लडकियां हैं. हम जानते हैं कि सरकारी मशीनरी क्या होती है? आपके पास जो safeguard हैं, अगर में उसको देसी भाषा में कहूं तो वो सरकारी अफसर और सरकारी मशीनरी के safeguard हैं. और वो सरकारी मशीनरी कब, कितनी पॉलिटिकली इन्फ्लुएंस होती है और कब कितनी फाइनेंसियल इन्फ्लुएंस हो जाती है, इसके लाखों evidence हम लोगों ने देखें हैं. not only cases of election, but in daily cases, day to day लाइफ में हम देखते हैं कि हमारे पोलिटिकल मशीनरी कितनी इन्फ्लुएंस रहती है. सर, यही administration तो EVM से पहले था, जिस वक्त हमने एक देश के नाते, समाज के नाते, administration के नाते हमने तय किया था कि अब मैन्युअल वोटिंग से EVM की वोटिंग पर जायेंगे. तब हमें इसी मशीनरी में खामियां दिखती थीं.
रिगिंग हो जाती है, अफसर इन्फ्लुएंस में आ जाते हैं, अफसरों को डरा दिया जाता है, उनको ब्लैकमेल कर लिया जाता है. वो इन्फ्लुएंस होकर रिगिंग करा देते हैं, बूथ लूट तक करा देते हैं. मैं पत्रकार था सर, आठ दस साल पत्रकारिता की है मैंने. मैंने रिपोर्टिंग भी की है कि कैसे बूथ लूट होती थी. मैंने बहुत रिमोट एरिया पर भी जा कर कवर किया है तो वो मशीनरी बूथ लूट में शामिल हो जाती थी. कई बार इसीलिए तो हम evm जैसी टेक्नोलॉजी की तरफ आए कि सेफ रहें. उसी अफसर के भरोसे हम सिर्फ ये कहकर कि वहां बहुत अच्छा, किसी जगह बहुत अच्छा अफसर बैठा होगा, किसी जगह इन्फ्लुएंस अफसर भी बैठा होगा तो ये गारेंटी नहीं हो सकती. सर हम जितनी बात कर लें यहां पर सेफ गॉर्ड की, मैं आपको बताता हूं सर. अभी दिल्ली में चुनाव हुए, आप कह सकते हैं कि वो आपके डोमेन में नहीं थे लेकिन कुछ रियलिटीज़ हैं जो हर जगह मैच करेंगी. सर इलेक्शन कमीशन के तमाम आदेशों के बावजूद एक इंस्पेक्टर जाकर, एक एसएचओ जा कर कैंडिडेट को कहता है, भाई प्रचार करना है तो ज़रा एक AC लगवा दो, वरना तुम्हारे लड़कों को वहां खड़ा नहीं होने दूंगा जो पर्चे बांट रहे थे, सर आपके पास शिकायत करेंगे आपके पास कोई सबूत भी नहीं आ पायेगा लकिन वहां हम सारे लोग जानते हैं, हममे से अधिकतर लोग जानते हैं कि अगर ईमानदारी से चुनाव प्रचार के लिए दो लड़के सड़क पर खड़े किये जाएं और उनको चार घंटे के लिए पुलिस अपनी जीप में ले जा कर थाने में बंद कर दे, तो हमारा चुनाव प्रचर तो चौपट हो जाता है. और उसकी ठेग देता है इंस्पेक्टर एक लगवा दो नहीं तो देखता हूं कैसे कैंपेन करते हो, देखता हूं दूसरा सिपाही आ कर कहता है वर्दी के पैसे दे दो, दो अच्छी वर्दी के पैसे दे दो, कनाट प्लेस से लानी है. यह उद्धरण हैं, ऐसे उद्धरण हर वार्ड में हममें से हर कोई दे सकता है. आपको बहुत सारे उदाहरण दे सकता है.
सर आपने कहा FLC का निमंत्रण जाता है हर पार्टीयों को उसमें भागीदारी करें, इसलिए मैंने सर इसको शब्द दिया डायरेक्टिव प्रिंसिपल्स की तरह से हमने बोला है. एफ्फेक्टिवेली जब हम ग्राउंड पर जा कर देखते है तो How many officers are actually inviting are always welcoming to the people who are actually willing to participate in this FLC process. कितने SDM, कितने तहसीलदार वहां कैंडिडेट्स को लेके या पोलिटिकल पार्टी रिप्रेजेन्टेटिव को लेके वेलकमिंग होते हैं. कितने डिस्करेजिंग होते हैं, ये बात हम सब लोग जानते है, यहां बैठे हुए हर पार्टी के लोग जानते हैं. सर मैं तीन चीज़ें रखना चाहता हूं यहां पर प्रपोजल के रूप में. हम लोग लगातार सुन रहे थे कि हैकेथॉन होगा और मुझे लगता है कि ये अच्छी चीज़ है. हैकेथॉन, आज की तारीख में शब्द आ गया है, हैकेथॉन कोई अपराध नहीं है. एथिकल हैकेथॉन एक शब्द आ गया है. तो हम एथिकल हैकेथॉन कराएं, हम बचें न उससे. आपने अपने सम्बोधन में कहा कि हम हैकेथॉन नहीं कराएंगे, हम चैलेंज देंगे.
सर आपका जो चैलेंज का स्कोप है पहली बात वो हैकेथॉन नहीं है क्योंकि या तो आप हमें जिन पिछले पांच चुनावों की बात हम कर रहे हैं, (a) आप हमें मशीनें ओपनली दे दीजिये, हम उसको हैक कर के दिखा देंगे आपको. (b) अगर आप क्योंकि देखिये आप कहेंगे अभी इस मशीनों को हैक नहीं किया जा सकता क्योंकि हैकिंग की एक परिभाषा है. हमारे मित्र बैठे हैं, मेरे साथी सौरव भरद्वाज. ये एम्बेडेड टेक्नोलॉजी में 9 साल का तजुर्बा रखते हैं. इंजीनियरिंग के बाद इन्होंने आज दो दिन पहले दिल्ली विधानसभा में भी एक मशीन का प्रोटोटाइप हैक कर के दिखाया.
सर उस मशीन के बारे में, मैं भी गारंटी ले सकता हूं कि उसको भी कोई हैक करके नहीं दिखा सकता क्योंकि हम उसका कोड जानते हैं, हम उसको हैक कर सकते हैं, हम टेम्पर्ड कर सकते हैं तो कितनी टेंपरिंग है उसमें क्योंकि आपने जो शब्द इस्तेमाल किया उसको इस्तेमाल कर रहा हूं. आपने कहा पिछले चुनावो में टेंपरिंग हुई थी इसका प्रूफ दो.
सर, मैं आपके सामने अपनी मशीन रख रहा हूं. उसका भी कोई प्रूफ नहीं दे सकता. कोई तो उसको थोड़ा सा लिबरल करे, लिबरल अप्रोच उसमें रखें और ये पॉजिटिव अप्रोच के साथ चलें क्योंकि मिश्रा साहब ने भी ज़िक्र किया, पंजाब में भी हम कह रहे थे. बहुत सारे ऐसे एरिया हैं जहां बहुत सारे लोगों ने एफिडेविट फाइल किए हैं कि मैंने वोट दिया था, मेरी पार्टी जिसको मैंने वोट दिया था उसको 10 वोट आए हैं. और 20 लोग एफिडेविट फाइल करके ये कह रहे हैं कि हमने तो इसी पार्टी को वोट दिया था साहब, कहां गया हमारा वोट, सिर्फ 10 कैसे आए. तो जहां जहां ऐसे कंट्रोवर्सिअल इश्यूज आए हैं, मेरा सबमिशन सर ये रहेगा कि इस तरह के बूथ की मशीनों को आप अपने पोजेशन में लें, उनको यहां मल्टी पार्टी टीम बनाएं, एक मजिस्ट्रेट को बैठाएं और उनके सामने उन लोगों बुलाएं जिन लोगों ने एफिडेविट दिया था.
मेरा पहला सुझाव तो ये है कि जिन जगहों पर प्रत्याशियों को परिणामों में गड़बड़ी की सबसे ज्यादा शंका है, वहां की EVM चुनाव आयुक्त अपने कब्जे में लें और ऐसे जो प्रत्याशी जो एफिडेविट देकर कह रहे हैं कि हमारे वोट नतीजों के वोट से ज्यादा हैं, उन्हें सभी भाग लेने वाले दलों के प्रत्याशियों के सामने अपने वोटर्स को लाने को कहें, शपथ पत्र के हिसाब से समय का मिलान करके उन वोटर्स के वोट की जांच मजिस्ट्रेट की उपस्थिति में करा लें. अगर वे सही कह रहे हैं तो जांच का विषय है, और यदि वे गलत हैं तो कोई बात नहीं, मैं भगवान से प्रार्थना करता हूं कि उनके दावे गलत हों क्योंकि सिर्फ तभी हमारा लोकतंत्र सुरक्षित है! तभी हम लोकतांत्रिक व्यवस्था के अनुसार चल पाएंगे!
मैं चुनाव आयोग के इस आदेश की सराहना करता हूँ कि आपने आगे के सभी चुनाव VVPAT के साथ कराने का निर्णय लिया है, जो कि देश के विकास के लिये एक सराहनीय कदम है. लेकिन इसमें एक विशेष बात है जो मैं सुझाव के रूप में रख रहा हूं. माननीय उच्चतम न्यायालय ने जब कहा कि चुनावों में VVPAT का इस्तेमाल हो तो उन्होंने सिर्फ VVPAT मशीन लगाने को नहीं कहा, VVPAT हमें अवसर देता है कि अगर वोटिंग से मतगणना के बीच में कोई गड़बड़ हो तो, उसका मिलान VVPAT के प्रिंट से मिलान हो सके लेकिन उस प्रिंट रसीद की गिनती की व्यवस्था नहीं है, उस प्रिंटिग की गिनती सिर्फ उच्च न्यायालय के आदेश के बाद हो सकती है. चुनाव आयोग ऐसी व्यवस्था करे कि हर विधानसभा या लोकसभा या चुनाव में कम से कम 25 फीसदी बूथ के वोट की EVM की गिनती का मिलान, VVPAT की पर्ची के साथ हो. वो 25 फीसदी बूथ का चयन रैंडम तरीके से किया जा सकता है, या प्रत्याशियों की इच्छानुसार हो सकता है. 25 फीसदी बूथ पर आप पर्ची की गिनती को अनिवार्य कर दें, तभी VVPAT का प्रभावी प्रयोग हो पायेगा. नहीं तो कौन कब आपत्ति दायर करता है, फिर कोर्ट जाता है, फिर फैसला आता है, आयुक्त महोदय ये बहुत लंबी प्रक्रिया है इसे हमें सरल बनाना ही होगा.
मेरा तीसरा और आखिरी सुझाव ये है कि आप हमें ये चुनौती भी दें कि हम ये सिद्ध करें कि पिछले चुनावों में EVM टैम्परिंग हुई है लेकिन साथ साथ हैकेथॉन भी करवायें, हैकेथॉन बहुत पवित्र चीज है, आप इसकी अनुमति दें और एथिकल हैकेथॉन पर जरूर ध्यान दें, हैकेथॉन की परिभाषा ये हो कि "मशीन, सूचना और डाटा को अनाधिकृत तरीके से जांचने की अनुमति" अगर आप EVM मशीनों की जांच कराते हैं तो देश और लोकतंत्र की बुनियाद के लिये बेहद उपयोगी और लाभदायक होगा. ये आप सिर्फ राजनैतिक दलों से ही न करायें क्योंकि ये जरूरी नहीं है कि हर दल में 9 साल के अनुभव वाला एम्बेडेड टेक्नोलॉजी का इंजीनियर उपलब्ध हो, पूरे देश की IIT, IIIT, NIT और प्रतिष्ठित संस्थाओं के बच्चों को बुलायें, तमाम टेक्नोक्रेट्स काम कर रहे हैं हमारे देश में, उन्हें बुलाएं और चुनौती दें. इस हैकेथॉन को नकारात्मक नजरिये से न देखें, इसे इस तरह न लें कि कोई देश की व्यवस्था को चुनौती दे रहा है, इसे उसी नजरिये से देखें जैसे एवरेस्ट पर जाने वाला, इंग्लिश चैनल पार करने वाला उसे एक चुनौती के रूप में लेता है, ये देश की परंपरा में बदलाव की शुरुआत हो सकती है. इससे ये संदेश भी जायेगा की हमारे यहां चुनावी प्रक्रिया इतवी पारदर्शी है कि लोगों को खुली चुनौती है कि वे नियम के अंतर्गत उसे चुनौती दे सकते हैं और सुधार करवा सकते हैं.
हमें ऐसे टेक्नोक्रेट और लोगों की प्रशंसा करनी चाहिये और उन्हें शाबासी देनी चाहिये जो हैकेथॉन में आकर EVM को टैम्पर करके दिखाएं कि उसने हमें हमारी कमजोरी बतायी और इसे हम दूर करेंगें, इससे लोकतंत्र मजबूत होगा, हमें हैकिंग की चुनौती से भागने की जरूरत नहीं है, उससे बचें नहीं.
मैं ये सभी सुझाव पार्टी की तरफ से प्रक्रिया के अनुसार आपको जमा करा दूंगा.
एक अंतिम सुझाव और है कि हर बूथ पर कैमरे की व्यवस्था करवायें. अभी CCTV की व्यवस्था है लेकिन सिर्फ चुनिंदा जगहों पर है, उसे बढ़वायें क्योंकि कैमरों के बढ़ने से गड़बड़ियों की संभावनायें कम होती जाएंगी. पार्टियों को उद्योगपतियों और हर जगह से मिलने वाले चंदे को पारदर्शी बनाएं, आज 2000 रुपये चंदा देने वाले की जांच होने लगती है, आयकर विभाग (IT) का फोन आ जाता है, लेकिन 200 करोड़ रुपये का चंदा कहां से आया, किसने दिया? क्यों दिया, किसी को पता भी नहीं चलता.
इसे हमें 100% पारदर्शी बनाना होगा, 2 रुपये वाले का भी नाम हो और 200 करोड़ वाले का भी नाम हो, जिससे हम भी इनकम टैक्स डिपार्टमेंट से पूछ सकेंगे कि 2 रुपये वाले पर इतनी जांच और 200 करोड़ पर कोई जांच नहीं.
ये हमारे कुछ छोटे छोटे सुझाव हैं, मैं खुश हूं कि आपने हमारे पत्र पर चर्चा की और ये बैठक बुलाई लेकिन एक छोटी सी बात और जो महत्वपूर्ण है कि हमें दुःख हुआ कि आपने हमारे पत्र के जवाब में आपने लिखा कि "EVM टैम्परिंग नहीं हो सकती और आप EVM पर सवाल न उठायें बल्कि पंजाब की हार का चिंतन करें." महोदय, चुनाव आयोग एक बहुत ही पवित्र संस्था है और जब उसकी तरफ से इस तरह की भाषा में पत्र मिलता है तो धक्का लगता है, अफसोस होता है, अतः इस तरह की परंपरा को रोकें.
बहुत बहुत धन्यवाद!
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