नई दिल्ली:
अगर सब-कुछ ठीक रहा तो मुंबई-अहमदाबाद बुलेट ट्रेन 15 अगस्त, 2022 से दौड़ने लगेगी. मेट्रो नेटवर्क के बाद ये देश में सबसे अहम रेल प्रोजेक्ट है. इसपर 1 लाख 8 हज़ार करोड़ रुपये खर्च होंगे. इसमें कुल खर्च का 81% जापान आसान कर्ज के तौर पर मुहैया करा रहा है जिसपर सिर्फ 0.1 फीसदी के दर से ब्याज़ देना होगा. पहले 15 साल तक भारत सरकार को कोई किश्त नहीं देनी होगी और 50 साल में भारत को ये कर्ज जापानी मुद्रा येन में चुकाना होगा. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जापान के प्रधानमंत्री के साथ इसकी आधारशिला रखने की मांग करते हुए कहा, "अगर कोई ये कहे कि बिना ब्याज के ही लोन ले लो और दस-बीस नहीं, 50 साल में चुकाओ, तो आप यकीन करेंगे क्या? हम देश के फ्यूचर प्रूफिंग पर ध्यान दे रहे हैं ताकि आने वाली पीढ़ियों के हिसाब से इन्फ्रास्ट्रक्चर का निर्माण किया जा सके."
इस पूरे प्रोजेक्ट का सबसे अहम पहलू टेक्नोलॉजी ट्रांसफर है. एनडीटीवी के पास जापान सरकार के मिनिस्ट्री ऑफ लैंड, इन्फ्रास्ट्रक्चर और ट्रांसपोर्ट मंत्रालय के दस्तावेज़ हैं जिनमें विस्तार से इस प्रोजेक्ट के लिए टेक्नोलॉजी ट्रांसफर करने के पूरे प्लान का ज़िक्र है जो अगले साल से शुरू हो जाएगा. इसमें जापानी हाई स्पीड रेल टेक्नालाजी का इस्तेमाल होगा जिसे शिंकासेन सिस्टम के नाम से जाना जाता है.
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हाई स्पीड रेल सिस्टम के निर्माण में जापान सरकार तकनीकी सहायता देगी. इसके तहत रॉलिंग स्टॉक के निर्माण, उपकरण और मशीनरी में 'मेक इन इंडिया' को प्रमोट किया जाएगा. तैयारी भविष्य में रेल उद्योग से जुड़ी दोनों देशों की कंपनियों के बीच हाई स्पीड रेल नेटवर्क के लिए साझेदारी बढ़ाने की है. साथ ही, इस समझौते में बड़े स्तर पर भारतीय रेल के अधिकारियों और कर्मचारियों की जापान में ट्रेंनिंग की बात भी कही गई है.
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इस प्रोजेक्ट को लॉन्च करते हुए पीएम मोदी ने कहा, "टेक्नोलॉजी ट्रांसफर? रेलवे को फायदा होगा, तकनीशियन, निर्माताओं को लाभ मिलेगा और एक तरह से पूरा रेलवे नेटवर्क लाभान्वित होगा. मैं मानता हूं कि टेक्नोलॉजी सभी के लिए है. टेक्नोलॉजी का लाभ तभी है जब देश का सामान्य नागरिक भी इसका उपयोग कर सके." इस प्रोजेक्ट को लागू करने के लिए एक नेशनल हाई स्पीड रेल कार्पोरेशन गठित किया गया है जिसमें 50% हिस्सेदारी रेल मंत्रालय की है और 25% - 25% हिस्सेदारी महाराष्ट्र और गुजरात सरकार की है. ये पूरी तरह से एलिवेटेड कॉरिडोर होगा. इसकी वजह से 50% कम ज़मीन के अधिग्रहण करने की ज़रूरत होगी.
VIDEO: बुलेट ट्रेन की पाठशाला
इस पूरे प्रोजेक्ट का सबसे अहम पहलू टेक्नोलॉजी ट्रांसफर है. एनडीटीवी के पास जापान सरकार के मिनिस्ट्री ऑफ लैंड, इन्फ्रास्ट्रक्चर और ट्रांसपोर्ट मंत्रालय के दस्तावेज़ हैं जिनमें विस्तार से इस प्रोजेक्ट के लिए टेक्नोलॉजी ट्रांसफर करने के पूरे प्लान का ज़िक्र है जो अगले साल से शुरू हो जाएगा. इसमें जापानी हाई स्पीड रेल टेक्नालाजी का इस्तेमाल होगा जिसे शिंकासेन सिस्टम के नाम से जाना जाता है.
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हाई स्पीड रेल सिस्टम के निर्माण में जापान सरकार तकनीकी सहायता देगी. इसके तहत रॉलिंग स्टॉक के निर्माण, उपकरण और मशीनरी में 'मेक इन इंडिया' को प्रमोट किया जाएगा. तैयारी भविष्य में रेल उद्योग से जुड़ी दोनों देशों की कंपनियों के बीच हाई स्पीड रेल नेटवर्क के लिए साझेदारी बढ़ाने की है. साथ ही, इस समझौते में बड़े स्तर पर भारतीय रेल के अधिकारियों और कर्मचारियों की जापान में ट्रेंनिंग की बात भी कही गई है.
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इस प्रोजेक्ट को लॉन्च करते हुए पीएम मोदी ने कहा, "टेक्नोलॉजी ट्रांसफर? रेलवे को फायदा होगा, तकनीशियन, निर्माताओं को लाभ मिलेगा और एक तरह से पूरा रेलवे नेटवर्क लाभान्वित होगा. मैं मानता हूं कि टेक्नोलॉजी सभी के लिए है. टेक्नोलॉजी का लाभ तभी है जब देश का सामान्य नागरिक भी इसका उपयोग कर सके." इस प्रोजेक्ट को लागू करने के लिए एक नेशनल हाई स्पीड रेल कार्पोरेशन गठित किया गया है जिसमें 50% हिस्सेदारी रेल मंत्रालय की है और 25% - 25% हिस्सेदारी महाराष्ट्र और गुजरात सरकार की है. ये पूरी तरह से एलिवेटेड कॉरिडोर होगा. इसकी वजह से 50% कम ज़मीन के अधिग्रहण करने की ज़रूरत होगी.
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