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This Article is From Dec 13, 2015

पेरिस में हुए 'ऐतिहासिक' जलवायु समझौते से भारत ने क्या पाया और क्या खोया

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पेरिस में हुए 'ऐतिहासिक' जलवायु समझौते से भारत ने क्या पाया और क्या खोया
पेरिस: पृथ्वी के बढ़ते तापामन और जलवायु परिवर्तन के मसले पर पेरिस में आयोजित संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन में हुए समझौते की हर ओर तारीफ हो रही और इसे ऐतिहासिक समझौता करार करार दिया है। धरती के बढ़ते तापमान और कार्बन उत्सर्जन पर अंकुश लगाने वाले इस समझौते को 196 देशों ने स्वीकार किया है।

इस समझौते के अनुसार, वैश्विक तापमान की सीमा दो डिग्री सेल्सियस से 'काफी कम' रखने प्रस्ताव है। तापमान वृद्धि पर अंकुश की यह बात भारत और चीन जैसे विकासशील देशों की पसंद के अनुरूप नहीं है, जो औद्योगिकीकरण के कारण कार्बन गैसों के बड़े उत्सर्जक हैं। लेकिन भारत ने शिखर बैठक के इन नतीजों को 'संतुलित' और आगे का रास्ता दिखाने वाला बताया।

पेरिस समझौते में इन बिंदुओ पर भारत को करना पड़ा समझौता:-
  1. विशेषज्ञों की राय है कि मूल संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन में विकसित देशों में कड़े शब्दों में जिम्मेदारी डाली गई थी, लेकिन मौजूदा समझौते की भाषा कमजोर है। इसमें कई ऐसी बाते हैं, जिससे जलवायु वित्तपोषण के मुद्दों पर भ्रम हो सकता है, जैसे कि- विकास के लिए दी जाने वाली सहायता या ऋण जलवायु वित्त के रूप में गिना जा सकता है।
  2. भारत के पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर भी कहते हैं कि यह समझौता और अधिक महत्वाकांक्षी हो सकता था, क्योंकि विकसित देशों की कार्रवाई उनकी ऐतिहासिक जिम्मेदारियों और निष्पक्ष शेयरों की तुलना में 'काफी कम' है।
  3. कई विशेषज्ञों का कहना है कि अमेरिका और विकसित देशों के समूह के भारी दबाव के बाद विकसित देशों की जिम्मेदारियों में कटौती की गई है।
  4. पेरिस समझौते में कहा गया है कि सभी पक्ष, जिसमें विकासशील देश भी शामिल हैं- कार्बन उत्सर्जन कम करने के कदम उठाये। इसका अर्थ हुआ कि विकासशील देशों को इसके लिए कदम उठाने होंगे, जो कि विकास के उनके सपने में एक रोड़ा साबित हो सकता है।
  5. अगर क्षति और घाटे की बात करें तो, इस समझौते में कहा गया है कि इन्हें दायित्व या मुआवजे के संदर्भ में नहीं देखा जाएगा, तो इस अनुसार  विकसित देशों पर कोई वास्तविक दायित्व भी नहीं होगा।
जलवायु समझौते से भारत और दूसरे विकासशील देशों ने ये सब पाया:-
  1. इस समझौते में 'साझा लेकिन विविध जिम्मेदारी' के सिद्धांत को जगह दी गई है, जिसकी भारत लंबे अर्से से मांग करता रहा है। जबकि अमेरिका और दूसरे विकसित देश इस प्रावधान को कमजोर करना चाहते थे।
  2. भारत इस समझौते में टिकाऊ जीवन शैली और उपभोग का जिक्र चाहता है, जिसे कि इस मसौदे में जगह दी गई है।
  3. हालांकि इस समझौते में एक बड़ी चुनौती ग्लोबल वार्मिंग को औद्योगिक क्रांति से पहले के वैश्विक तापमान से अधिकतम दो फीसदी और यहां तक 1.5 फीसदी वृद्धि में सीमित करने को लेकर ही सकती है।
  4. विकासशील देशों को स्वच्छ ईंधन और प्रौद्योगिकी अपनाने में मदद करने के लिए समृद्ध देशों द्वारा 2020 से सालाना 100 अरब डॉलर देने पर सहमति बनी है, लेकिन इसमें तकनीकों के हस्तांतरण की बात नहीं।

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