68वें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्र के नाम संदेश देते राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी
नई दिल्ली:
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा है कि एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिए विचारों की एकता से अधिक, सहिष्णुता, धैर्य और दूसरों का सम्मान जैसे मूल्यों की आवश्यकता होती है, और ये मूल्य प्रत्येक भारतीय के हृदय और मस्तिष्क में रहने चाहिए, ताकि उनमें समझदारी और दायित्व की भावना भरती रहे. उन्होंने कहा कि लोकतंत्र के फलने-फूलने के लिए, एक बुद्धिमान और विवेकपूर्ण मानसिकता की जरूरत है.
68वें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्र के नाम संबोधन में प्रणब मुखर्जी ने कहा, 'मुझे पूरा विश्वास है कि भारत का बहुलवाद और उसकी सामाजिक, सांस्कृतिक, भाषायी और धार्मिक अनेकता हमारी सबसे बड़ी ताकत है. हमारी परंपरा ने सदैव 'असहिष्णु' भारतीय की नहीं, बल्कि 'तर्कवादी' भारतीय की सराहना की है. सदियों से हमारे देश में विविध दृष्टिकोणों, विचारों और दर्शन ने शांतिपूर्वक एक-दूसरे के साथ स्पर्धा की है.'
उन्होंने कहा, 'हमारा लोकतंत्र कोलाहलपूर्ण है, फिर भी जो लोकतंत्र हम चाहते हैं, वह अधिक हो. हमारे लोकतंत्र की मजबूती इस सच्चाई से देखी जा सकती है कि 2014 के आम चुनाव में कुल 83 करोड़ 40 लाख मतदाताओं में से 66 प्रतिशत से अधिक ने मतदान किया. हमारे लोकतंत्र का विशाल आकार हमारे पंचायती राज संस्थाओं में आयोजित किए जा रहे नियमित चुनावों से झलकता है. फिर भी हमारे कानून निर्माताओं को व्यवधानों के कारण सत्र का नुकसान होता है, जबकि उन्हें महत्वपूर्ण मुद्दों पर बहस करनी चाहिए और विधान बनाने चाहिए। बहस, परिचर्चा और निर्णय पर पुन: ध्यान देने के सामूहिक प्रयास किए जाने चाहिए.
राष्ट्रपति ने कहा, 'हमारा गणतंत्र अपने अड़सठवें वर्ष में प्रवेश कर रहा है, हमें यह स्वीकार करना होगा कि हमारी प्रणालियां श्रेष्ठ नहीं हैं. त्रुटियों की पहचान की जानी चाहिए और उनमें सुधार लाना चाहिए. स्थायी आत्मसंतोष पर सवाल उठाने होंगे. विश्वास की नींव मजबूत करनी होगी. चुनावी सुधारों पर रचनात्मक परिचर्चा करने और स्वतंत्रता के बाद के उन शुरुआती दशकों की परंपरा की ओर लौटने का समय आ गया है, जब लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ आयोजित होते थे. राजनीतिक दलों के विचार-विमर्श से इस कार्य को आगे बढ़ाना चुनाव आयोग का दायित्व है.
उन्होंने कहा, हमारे देश में सदियों से विविध विचार, दर्शन एक-दूसरे के साथ शांतिपूर्ण ढंग से प्रतिस्पर्धा करते रहे हैं. लोकतंत्र के फलने फूलने के लिए बुद्धिमतापूर्ण और विवेकसम्मत मन की जरूरत है. प्रणब मुखर्जी ने भारतीय लोकतंत्र की ताकत को रेखांकित किया लेकिन संसद और राज्य विधानसभाओं में व्यवधान के प्रति सचेत भी किया.
राष्ट्रपति ने कहा, हमारा मुखर लोकतंत्र है और इसलिए हमें लोकतंत्र से कम किसी और की जरूरत नहीं है. उन्होंने कहा कि इस बात को स्वीकार करने का यह सही समय है कि व्यवस्था सटीक नहीं है और जो कमियां हैं, उन्हें पहचान कर उसमें सुधार करना होगा.
प्रणब मुखर्जी ने कहा, शिथिलता पर सवाल उठना चाहिए. विश्वास की व्यवस्था को मजबूत बनाया जाना चाहिए. समय आ गया है कि चुनाव सुधार पर रचनात्मक चर्चा हो. आजादी के बाद के शुरुआती दशकों के उस चलन की ओर लौटने का समय आ गया है जब लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनाव साथ-साथ होते थे.
उन्होंने कहा, इस कार्य को चुनाव आयोग को आगे बढ़ाना है जो राजनीतिक दलों के साथ विचार विमर्श करके आगे बढ़े. राष्ट्रपति ने कहा कि भारतीय लोकतंत्र की गहराई और प्रभाव नियमित रूप से पंचायती राज व्यवस्था के चुनाव से स्पष्ट होता है.
उन्होंने कहा कि इसके बावजूद हमारी विधायिका में व्यवधान के कारण सत्र का वह समय बर्बाद होता है जब चर्चा होनी चाहिए और महत्वपूर्ण मुद्दों पर विधान बनने चाहिए. चर्चा, परिचर्चा और निर्णय करने के मार्ग पर ध्यान देने के लिए सामूहिक प्रयास किये जाने चाहिए.
68वें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्र के नाम संबोधन में प्रणब मुखर्जी ने कहा, 'मुझे पूरा विश्वास है कि भारत का बहुलवाद और उसकी सामाजिक, सांस्कृतिक, भाषायी और धार्मिक अनेकता हमारी सबसे बड़ी ताकत है. हमारी परंपरा ने सदैव 'असहिष्णु' भारतीय की नहीं, बल्कि 'तर्कवादी' भारतीय की सराहना की है. सदियों से हमारे देश में विविध दृष्टिकोणों, विचारों और दर्शन ने शांतिपूर्वक एक-दूसरे के साथ स्पर्धा की है.'
उन्होंने कहा, 'हमारा लोकतंत्र कोलाहलपूर्ण है, फिर भी जो लोकतंत्र हम चाहते हैं, वह अधिक हो. हमारे लोकतंत्र की मजबूती इस सच्चाई से देखी जा सकती है कि 2014 के आम चुनाव में कुल 83 करोड़ 40 लाख मतदाताओं में से 66 प्रतिशत से अधिक ने मतदान किया. हमारे लोकतंत्र का विशाल आकार हमारे पंचायती राज संस्थाओं में आयोजित किए जा रहे नियमित चुनावों से झलकता है. फिर भी हमारे कानून निर्माताओं को व्यवधानों के कारण सत्र का नुकसान होता है, जबकि उन्हें महत्वपूर्ण मुद्दों पर बहस करनी चाहिए और विधान बनाने चाहिए। बहस, परिचर्चा और निर्णय पर पुन: ध्यान देने के सामूहिक प्रयास किए जाने चाहिए.
राष्ट्रपति ने कहा, 'हमारा गणतंत्र अपने अड़सठवें वर्ष में प्रवेश कर रहा है, हमें यह स्वीकार करना होगा कि हमारी प्रणालियां श्रेष्ठ नहीं हैं. त्रुटियों की पहचान की जानी चाहिए और उनमें सुधार लाना चाहिए. स्थायी आत्मसंतोष पर सवाल उठाने होंगे. विश्वास की नींव मजबूत करनी होगी. चुनावी सुधारों पर रचनात्मक परिचर्चा करने और स्वतंत्रता के बाद के उन शुरुआती दशकों की परंपरा की ओर लौटने का समय आ गया है, जब लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ आयोजित होते थे. राजनीतिक दलों के विचार-विमर्श से इस कार्य को आगे बढ़ाना चुनाव आयोग का दायित्व है.
उन्होंने कहा, हमारे देश में सदियों से विविध विचार, दर्शन एक-दूसरे के साथ शांतिपूर्ण ढंग से प्रतिस्पर्धा करते रहे हैं. लोकतंत्र के फलने फूलने के लिए बुद्धिमतापूर्ण और विवेकसम्मत मन की जरूरत है. प्रणब मुखर्जी ने भारतीय लोकतंत्र की ताकत को रेखांकित किया लेकिन संसद और राज्य विधानसभाओं में व्यवधान के प्रति सचेत भी किया.
राष्ट्रपति ने कहा, हमारा मुखर लोकतंत्र है और इसलिए हमें लोकतंत्र से कम किसी और की जरूरत नहीं है. उन्होंने कहा कि इस बात को स्वीकार करने का यह सही समय है कि व्यवस्था सटीक नहीं है और जो कमियां हैं, उन्हें पहचान कर उसमें सुधार करना होगा.
प्रणब मुखर्जी ने कहा, शिथिलता पर सवाल उठना चाहिए. विश्वास की व्यवस्था को मजबूत बनाया जाना चाहिए. समय आ गया है कि चुनाव सुधार पर रचनात्मक चर्चा हो. आजादी के बाद के शुरुआती दशकों के उस चलन की ओर लौटने का समय आ गया है जब लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनाव साथ-साथ होते थे.
उन्होंने कहा, इस कार्य को चुनाव आयोग को आगे बढ़ाना है जो राजनीतिक दलों के साथ विचार विमर्श करके आगे बढ़े. राष्ट्रपति ने कहा कि भारतीय लोकतंत्र की गहराई और प्रभाव नियमित रूप से पंचायती राज व्यवस्था के चुनाव से स्पष्ट होता है.
उन्होंने कहा कि इसके बावजूद हमारी विधायिका में व्यवधान के कारण सत्र का वह समय बर्बाद होता है जब चर्चा होनी चाहिए और महत्वपूर्ण मुद्दों पर विधान बनने चाहिए. चर्चा, परिचर्चा और निर्णय करने के मार्ग पर ध्यान देने के लिए सामूहिक प्रयास किये जाने चाहिए.
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