फाइल फोटो
नैनीताल:
उत्तराखंड हाईकोर्ट ने गौवध और गौमांस की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया है. अदालत ने गाय, बछड़ा और बैलों के वध के लिए उनके परिवहन और उनकी बिक्री पर भी प्रतिबंध लगा दिया. इस संबंध में दायर एक जनहित याचिका में कहा गया है कि रूड़की के एक गांव में कुछ लोगों ने वर्ष 2014-15 में पशुओं का वध करने और मांस बेचने की अनुमति ली थी जिसका बाद में कभी नवीनीकरण नहीं हुआ. याचिका में कहा गया है कि हालांकि, अब भी कुछ लोग गायों का वध कर रहे हैं और गंगा में खून बहा रहे हैं. यह न केवल कानून के खिलाफ है बल्कि यह गांव के निवासियों के स्वास्थ्य के लिए भी खतरा है.
राजस्थान हाई कोर्ट के जज ने कहा- गाय राष्ट्रीय पशु घोषित हो, यह मेरी अंतरात्मा की आवाज
मुख्य न्यायाधीश राजीव शर्मा और न्यायाधीश मनोज कुमार तिवारी की खंडपीठ ने पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 के प्रावधानों के तहत आदेशों का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने के आदेश दिये. न्यायालय ने उत्तराखंड गौवंश संरक्षण अधिनियम 2007 की धारा सात के तहत सड़कों, गलियों और सार्वजनिक स्थानों पर घूमते पाये जाने वाले मवेशियों के मालिकों के खिलाफ भी प्राथमिकी दर्ज करने को कहा. आदेश में कहा गया है कि मुख्य अभियंता, अधिशासी अधिकारी और ग्राम प्रधान यह सुनिश्चित करेंगे कि गाय और बैल समेत कोई आवारा मवेशी उनके क्षेत्र में सडकों पर न आये और ऐसे पशुओं को सड़कों से हटाते समय उन पशुओं को अनावश्यक दर्द और कष्ट न सहना पडे़.
गौहत्या को लेकर योगी आदित्यनाथ की वेबसाइट पर हो रहा है जनमत संग्रह...
अदालत ने पूरे प्रदेश के सरकारी पशु अधिकारियों और चिकित्सकों को सभी आवारा मवेशियों का इलाज करने के निर्देश देते हुए कहा कि उनके इलाज की जिम्मेदारी नगर निकायों, नगर पचायतों और सभी ग्राम पंचायतों के अधिशासी अधिकारियो की होगी. इसके अलावा, अदालत ने जानवरों के इलाज और उनकी देखभाल के लिए राज्य सरकार को तीन सप्ताह के भीतर अस्पताल खोलने के निर्देश भी दिये. सभी नगर निगमों, नगर निकायों और जिलाधिकारियों को अपने क्षेत्रों में गौवंश और आवारा मवेशियों को रखने के लिए एक साल की अवधि में गौशालाओं का निर्माण करना होगा. (इनपुट भाषा से)
VIDEO: राजस्थान हाईकोर्ट के जज ने कहा- गाय राष्ट्रीय पशु घोषित की जाए
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मुख्य न्यायाधीश राजीव शर्मा और न्यायाधीश मनोज कुमार तिवारी की खंडपीठ ने पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 के प्रावधानों के तहत आदेशों का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने के आदेश दिये. न्यायालय ने उत्तराखंड गौवंश संरक्षण अधिनियम 2007 की धारा सात के तहत सड़कों, गलियों और सार्वजनिक स्थानों पर घूमते पाये जाने वाले मवेशियों के मालिकों के खिलाफ भी प्राथमिकी दर्ज करने को कहा. आदेश में कहा गया है कि मुख्य अभियंता, अधिशासी अधिकारी और ग्राम प्रधान यह सुनिश्चित करेंगे कि गाय और बैल समेत कोई आवारा मवेशी उनके क्षेत्र में सडकों पर न आये और ऐसे पशुओं को सड़कों से हटाते समय उन पशुओं को अनावश्यक दर्द और कष्ट न सहना पडे़.
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अदालत ने पूरे प्रदेश के सरकारी पशु अधिकारियों और चिकित्सकों को सभी आवारा मवेशियों का इलाज करने के निर्देश देते हुए कहा कि उनके इलाज की जिम्मेदारी नगर निकायों, नगर पचायतों और सभी ग्राम पंचायतों के अधिशासी अधिकारियो की होगी. इसके अलावा, अदालत ने जानवरों के इलाज और उनकी देखभाल के लिए राज्य सरकार को तीन सप्ताह के भीतर अस्पताल खोलने के निर्देश भी दिये. सभी नगर निगमों, नगर निकायों और जिलाधिकारियों को अपने क्षेत्रों में गौवंश और आवारा मवेशियों को रखने के लिए एक साल की अवधि में गौशालाओं का निर्माण करना होगा. (इनपुट भाषा से)
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