विश्व बैंक की मध्यस्थता में 1960 में हुई सिंधु जल संधि
नई दिल्ली:
उरी आतंकी हमले के बाद से देश में इस बात को लेकर काफी चर्चा है कि भारत, पाकिस्तान पर कार्रवाई के नाम पर क्या कदम उठाएगा? तमाम विकल्पों में से एक विकल्प सिंधु जल समझौते को खत्म करने का है. सूत्रों के मुताबिक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सोमवार को सिंधु जल समझौते के बारे में एक बैठक करने जा रहे हैं, जिसमें कई उच्च अधिकारी शामिल होंगे.
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क्या है सिंधु नदी संधि? भारत और पाकिस्तान के लिए क्यों है अहम?
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बैठक में जल संसाधन मंत्रालय और विदेश मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों सहित अन्य संबंधित मंत्रालयों के अधिकारी शामिल होंगे. इस बैठक को भारत की वॉटर डिप्लोमेसी के तौर पर देखा जा रहा है, जहां सिंधु जल समझौते के नफे-नुकसान पर चर्चा होगी.
बता दें कि शनिवार को केरल के कोझिकोड में पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पाकिस्तान को आतंकवाद का निर्यातक देश बताया था. पिछले हफ्ते कश्मीर के उरी में एक आर्मी बटालियन हेडक्वार्टर पर जैश-ए-मोहम्मद के आतंकियों द्वारा किए गए हमले में 18 सैनिक शहीद हो गए थे. इस हमले के बाद से ही देश में पाकिस्तान के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग उठ रही है.
बता दें कि सिंधु जल समझौता 1960 में करीब एक दशक तक विश्व बैंक की मध्यस्थता में बातचीत के बाद भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल अयूब खान के बीच हुआ था.
विशेषज्ञ इस बात पर एकमत नहीं हैं कि सिंधु नदी समझौते को तोड़ देना चाहिए या नहीं. जबकि यह अंतरराष्ट्रीय जल संधि भारत और पाकिस्तान के बीच दो बड़े युद्धों और तमाम खराब रिश्तों के बीच भी बनी रही है.
विशेषज्ञों का कहना है कि यह एक अंतरराष्ट्रीय संधि है और भारत अकेले इसे नहीं तोड़ सकता. अगर ऐसा हुआ तो इसका मतलब यह होगा कि हम कानूनी रूप से लागू संधि का उल्लंघन कर रहे हैं और इससे भारत को अंतरराष्ट्रीय आलोचनाओं का सामना करना पड़ेगा.
सिंधु नदी का उद्गम स्थल चीन में है और भारत-पाकिस्तान की तरह उसने जल बंटवारे की कोई अंतरराष्ट्रीय संधि नहीं की है. अगर चीन ने सिंधु नदी के बहाव को मोड़ने का निर्णय ले लिया तो भारत को नदी के पानी का 36 फीसदी हिस्सा गंवाना पड़ेगा.
सिंधु जल संधि के अनुसार भारतीय उपमहाद्वीप में पश्चिम की ओर बहने वाली 6 नदियों में से तीन (सतलुज, व्यास और रावी) पर भारत का पूरा अधिकार है, जबकि पाकिस्तान को झेलम, चेनाव और सिंधु नदियों का पानी लगभग बेरोक-टोक के मिलता है.
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क्या है सिंधु नदी संधि? भारत और पाकिस्तान के लिए क्यों है अहम?
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बैठक में जल संसाधन मंत्रालय और विदेश मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों सहित अन्य संबंधित मंत्रालयों के अधिकारी शामिल होंगे. इस बैठक को भारत की वॉटर डिप्लोमेसी के तौर पर देखा जा रहा है, जहां सिंधु जल समझौते के नफे-नुकसान पर चर्चा होगी.
बता दें कि शनिवार को केरल के कोझिकोड में पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पाकिस्तान को आतंकवाद का निर्यातक देश बताया था. पिछले हफ्ते कश्मीर के उरी में एक आर्मी बटालियन हेडक्वार्टर पर जैश-ए-मोहम्मद के आतंकियों द्वारा किए गए हमले में 18 सैनिक शहीद हो गए थे. इस हमले के बाद से ही देश में पाकिस्तान के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग उठ रही है.
बता दें कि सिंधु जल समझौता 1960 में करीब एक दशक तक विश्व बैंक की मध्यस्थता में बातचीत के बाद भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल अयूब खान के बीच हुआ था.
विशेषज्ञ इस बात पर एकमत नहीं हैं कि सिंधु नदी समझौते को तोड़ देना चाहिए या नहीं. जबकि यह अंतरराष्ट्रीय जल संधि भारत और पाकिस्तान के बीच दो बड़े युद्धों और तमाम खराब रिश्तों के बीच भी बनी रही है.
विशेषज्ञों का कहना है कि यह एक अंतरराष्ट्रीय संधि है और भारत अकेले इसे नहीं तोड़ सकता. अगर ऐसा हुआ तो इसका मतलब यह होगा कि हम कानूनी रूप से लागू संधि का उल्लंघन कर रहे हैं और इससे भारत को अंतरराष्ट्रीय आलोचनाओं का सामना करना पड़ेगा.
सिंधु नदी का उद्गम स्थल चीन में है और भारत-पाकिस्तान की तरह उसने जल बंटवारे की कोई अंतरराष्ट्रीय संधि नहीं की है. अगर चीन ने सिंधु नदी के बहाव को मोड़ने का निर्णय ले लिया तो भारत को नदी के पानी का 36 फीसदी हिस्सा गंवाना पड़ेगा.
सिंधु जल संधि के अनुसार भारतीय उपमहाद्वीप में पश्चिम की ओर बहने वाली 6 नदियों में से तीन (सतलुज, व्यास और रावी) पर भारत का पूरा अधिकार है, जबकि पाकिस्तान को झेलम, चेनाव और सिंधु नदियों का पानी लगभग बेरोक-टोक के मिलता है.
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