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This Article is From May 17, 2017

तीन तलाक : लॉ बोर्ड और केंद्र के तर्कों के बीच कुरान के अंग्रेजी अनुवाद से व्याख्या देती है संविधान पीठ

सुप्रीम कोर्ट ने कपिल सिब्बल को सुझाव दिया है कि मुस्लिम महिलाओं को निकाहनामे के वक्त ही तीन तलाक के लिए इनकार करने का विकल्प दिया जा सकता है?

तीन तलाक : लॉ बोर्ड और केंद्र के तर्कों के बीच कुरान के अंग्रेजी अनुवाद से व्याख्या देती है संविधान पीठ
तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई
नई दिल्ली: 1862 पन्नों की अंग्रेजी की कुरान सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ रोज तीन तलाक के मुद्दे की सनुवाई कर रही है. सुनवाई के 5वें दिन सुप्रीम कोर्ट ने All India Muslim Personal Low Board (ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड) के वकील कपिल सिब्बल को सुझाव दिया है कि मुस्लिम महिलाओं को निकाहनामे के वक्त ही तीन तलाक के लिए इनकार करने का विकल्प दिया जा सकता है? आप ये प्रस्ताव पास क्यों नहीं करते कि निकाह के वक्त ही काजी महिला को ये विकल्प दे कि वह निकाहनामे में तीन तलाक को मना करने को कह सकती है. ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड की ओर से कपिल सिब्बल ने कहा- ये अच्छा सुझाव है.

उधर, सुप्रीम कोर्ट में तीन तलाक के खिलाफ अपना पक्ष मजबूत करते हुए केंद्र ने इस तर्क को खारिज कर दिया कि तीन तलाक को अनुमति दी जानी चाहिए क्योंकि यह सदियों से अभ्यास में रहा है. केंद्र के शीर्ष कानून अधिकारी मुकुल रोहतगी ने कहा कि तलाक निश्चित रूप से इस्लाम का एक जरूरी हिस्सा नहीं था और अदालत में इसे जारी रखने की अनुमति नहीं दी जा सकती थी, सिर्फ इसलिए कि वह 1,400 साल पुरानी परंपरा है.

तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट में AG मुकुल रोहतगी ने कहा- यह मामला बहुसंख्यक बनाम अल्पसंख्यक का नहीं है. यह टकराव मुस्लिम समुदाय में ही है. 

CJI खेहर ने कहा- लेकिन सिब्बल कह रहे हैं कोई टकराव नहीं है.
AG ने कहा- यह टकराव समुदाय में ही महिलाओं और पुरुषों के बीच है. इसकी वजह यह है कि पुरुष कमाने वाले हैं, ज्यादा शिक्षित हैं.

CJI ने पूछा-एक बार फिर आपसे पूछ रहे हैं कि तीन तलाक रद्द कर दिए जाएं तो क्या होगा

AG- अगर कोर्ट ऐेसा फैसला देता है तो सरकार कानून लाने को तैयार है. 

CJI- यह काम आप पहले क्यों नहीं करते? हमारे आदेश का इंतजार क्यों ? 

AG- यहां सवाल सरकार का नहीं बल्कि ये बरकरार है कि कोर्ट इस मामले में क्या करता है. 

AG- हलफनामे में पर्सनल लॉ बोर्ड खुद कह रहा है कि तीन तलाक पाप है, अवांछनीय है तो ऐसे में साफ है कि तीन तलाक इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है, जो अनिवार्य नहीं है उसे संविधान द्वारा प्रोटेक्शन कैसे दिया जा सकता है? 

जस्टिस कूरियन ने पूछा- कपिल सिब्बल कह रहे हैं कि यह पर्सनल लॉ का मामला है इसे संवैधानिक अधिकारों की कसौटी पर टेस्ट नहीं जा सकता? 

AG- तीन तलाक का मामला भी संवैधानिक अधिकार के तहत ही देखा जाना चाहिए. पर्सनल लॉ भी संविधान की कसौटी पर टेस्ट होते हैं, क्योंकि ये धर्म का अभिन्न हिस्सा नहीं है इसलिए इस मामले में धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का हवाला नहीं दिया जा सकता. 

CJI खेहर ने AG से पूछा - बोर्ड कह रहा है कि यह 1400 साल पुरानी परंपरा है जो आस्था है. इसमें कोर्ट को दखल नहीं देना चाहिए? 

AG- यहां परंपराओं की बात है तो सती प्रथा, छूआछूत और विधवाओं के पुनर्विवाह जैसी परंपराएं खत्म की गईं 

जस्टिस कूरियन ने कहा- आप इनका जिक्र कर रहे हैं लेकिन ये तो विधायिका द्वारा कानून बनाकर खत्म किया गया 

AG-लेकिन पंरपरा के नाम पर क्या कोई भी समुदाय यह कह सकता है कि नरबलि हमारी परंपरा है? 

जस्टिस कूरियन- लेकिन क्या यह बात पशुओं की बली में भी लागू होती है? 

AG- मैंने जानबूझकर नरबलि का जिक्र किया है ये संवैधानिक अधिकारों से जुड़ा मामला है.

CJI ने कहा- लेकिन संविधान धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार भी देता है? 

AG- धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार अपने आप में संपूर्ण नहीं है. उदाहरण के तौर पर संविधान कहता है कि कोई भी शख्स अपनी मर्जी से किसी भी मस्जिद में जाकर नमाज पढ़ सकता है, लेकिन कोई ताजमहल में जाकर नमाज नहीं पढ़ सकता क्योंकि ये पब्लिक आर्डर का मामला है.

इससे पूर्व मंगलवार को AIMPLB बोर्ड की ओर से कपिल सिब्बल ने कहा- तीन तलाक 1400 साल पुरानी प्रथा है और यह स्वीकार की गई है. यह मामला आस्था से जुडा है, जो 1400 साल से चल रहा है तो ये गैर-इस्लामिक कैसे है. जैसे मान लीजिए मेरी आस्था राम में है और मेरा यह मानना है कि राम अयोध्या में पैदा हुए. अगर राम को लेकर आस्था पर सवाल नहीं उठाए जा सकते तो तीन तलाक पर क्यों? यह सारा मामला आस्था से जुडा है. पर्सनल लॉ कुरान और हदीस से आया है. क्या कोर्ट कुरान में लिखे लाखों शब्दों की व्याख्या करेगा? संवैधानिक नैतिकता और समानता का सिद्धांत तीन तलाक पर लागू नहीं हो सकता क्योंकि यह आस्था का विषय है.

सुनवाई के दौरान कपिल सिब्बल ने हिन्दुओं से तुलना की. संविधान सभी धर्मों के पर्सनल लॉ को पहचान देता है . हिंदुओं में दहेज के खिलाफ दहेज उन्मूलन एक्ट लेकर आए, लेकिन प्रथा के तौर पर दहेज लिया जा सकता है.  इस तरह हिंदुओं में इस प्रथा को सरंक्षण दिया गया है तो वहीं मुस्लिम के मामले में इसे अंसवैधानिक करार दिया जा रहा है. कोर्ट को इस मामले में दखल नहीं देना चाहिए नहीं तो सवाल उठेगा कि इस मामले को क्यों सुना जा रहा है? क्यों संज्ञान लिया गया. शरियत पर्सनल लॉ है, इसकी तुलना मौलिक अधिकारों के आधार पर नहीं की जा सकती. हमें हर धर्म की संस्कृति को सरंक्षण देना चाहिए. अगर वह खराब भी है तो लोगों को इसके विषय में शिक्षित करना चाहिए. महसूस कराया जाना चाहिए कि वे गलत हैं और कानून बनाना चाहिए.  हर मुस्लिम बहुसंख्यक देश में हिन्दुओं को सरंक्षण मिलना चाहिए और उसी तरह हिन्दू बहुसंख्यक देश में मुस्लिमों को सरंक्षण मिले.

जस्टिस कूरियन ने कपिल सिब्बल से कई बार पूछा- पवित्र कुरान में पहले से ही तलाक की प्रक्रिया बताई गई है तो फिर तीन तलाक की क्या जरूरत? जब कुरान में तीन तलाक का कोई जिक्र नहीं तो ये कहां से आया?  इस पर कपिल सिब्बल ने कहा- कुरान में तीन तलाक का जिक्र नहीं है, लेकिन कहा गया है कि अल्लाह के मैसेंजर की बात मानो. अल्लाह के मैसेंजर और उनके साथियों से तीन तलाक की प्रथा शुरू हुई. ये आस्था का मामला है, कोर्ट इसकी व्याख्या नहीं कर सकता. जस्टिस कूरियन ने कहा - कम से कम हम ये तो पता लगा ही सकते हैं कि तीन तलाक आस्था का हिस्सा है या नहीं? 

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने पूछा इस मुद्दे पर समुदाय कुछ क्यों नहीं कर रहा. इस पर कपिल सिब्बल ने कहा- हम ये नहीं कह रहे कि तीन तलाक सही है. ये तलाक का सबसे अवांछनीय तरीका है.  हम सभी को समझा रहे हैं कि इसका इस्तेमाल ना करें. हम ये भी कह रहे हैं कि तीन तलाक परमानेंट नहीं है, लेकिन हम ये नहीं चाहते कि कोई दूसरा हमें बताए कि तीन तलाक खराब है. समुदाय के लोग ही इससे बाहर निकलेंगे.

बता दें कि इस मामले में सुनवाई के दौरान संविधान पीठ के सभी जज मुस्लिमों के पवित्र ग्रंथ कुरान का अंग्रेजी अनुवाद लेकर बैठेते हैं और जिरह के दौरान अंग्रेजी की कुरान से लॉ बोर्ड और सरकार के तर्कों की व्यख्या दी जाती है. 

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