जैन मुनि तरुण सागर (Jain Muni Tarun Sagar) की अंतिम यात्रा को लेकर पिछले दो दिनों से सोशल मीडिया पर तमाम तरह की चर्चाएं चल रही हैं. खासकर जैन मुनि की देह को लकड़ी की डोली पर बिठाकर अंतिम यात्रा निकाले जाने पर विमर्श चल रहा है, लेकिन यह पहली बार नहीं हुआ है. जैन संतों का दाह-संस्कार इसी प्रक्रिया से संपन्न किया जाता है. जैन परंपरा के मुताबिक अगर कोई संत समाधि या संथारा लेता है तो देह त्याग करने के बाद उसकी अंतिम यात्रा में भी देह को समाधि की मुद्रा में ही बैठाया जाता है. इसको डोला निकालना भी कहते हैं.
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जैन धर्म में मान्यता है कि यदि किसी संत ने समाधि की मुद्रा में देह त्याग की है तो उसे मोक्ष भी उसी मुद्रा में ही मिलती है. जैन मुनि तरुण सागर की अंतिम यात्रा भी ठीक इसी तरह निकाली गई. आपको बता दें कि जैन मुनि तरुण सागर (Jain Muni Tarun Sagar) को पीलिया हो गया था और दिल्ली में उनका इलाज चल रहा था. बताया जा रहा है कि उन्होंने दवाइयां लेनी बंद कर दी थी. इसके बाद उनके शिष्य उन्हें दिल्ली स्थित चातुर्मास स्थल पर ले गए. यहां जैन मुनि ने समाधि यानी संथारा लेने का निर्णय लिया और अन्न-जल त्याग दिया. इसके बाद 1 सितंबर को उनका निधन हो गया.
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जैन मुनि के निधन के बाद उसी दिन दिल्ली से करीब 28 किलोमीटर दूर गाजियाबाद के मुरादनगर स्थित तरुणसागरम में उनका अंतिम संस्कार किया गया. अंतिम यात्रा पैदल ही निकाली गई और इस दौरान दिल्ली-एनसीआर के अलावा देश भर से हजारों श्रद्धालु अंतिम यात्रा में उमड़े. हालांकि बाद में अंतिम यात्रा की तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हुईं और इसको लेकर बहस छिड़ गई.
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