यह ख़बर 25 जुलाई, 2013 को प्रकाशित हुई थी

शिक्षकों का काम पढ़ाना है, खाना बनवाना नहीं : इलाहाबाद उच्च न्यायालय

खास बातें

  • बिहार के एक स्कूल में मध्याह्न भोजन योजना के तहत दिए गए भोजन को खाने से हुई 23 बच्चों की मौत के कुछ ही दिनों बाद इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा है कि सरकारी स्कूल के शिक्षकों और प्रधानाध्यापकों का काम छात्रों को पढ़ाना है, न कि भोजन बनाने की प्रक्रिया की न
इलाहाबाद/पटना:

बिहार के एक स्कूल में मध्याह्न भोजन योजना के तहत दिए गए भोजन को खाने से हुई 23 बच्चों की मौत के कुछ ही दिनों बाद इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा है कि सरकारी स्कूल के शिक्षकों और प्रधानाध्यापकों का काम छात्रों को पढ़ाना है, न कि भोजन बनाने की प्रक्रिया की निगरानी करना।

न्यायालय की यह टिप्पणी इसलिए भी अहम है क्योंकि पूरे बिहार में करीब तीन लाख प्राथमिक स्कूल शिक्षकों ने आज मध्याह्न भोजन योजना से जुड़े काम का बहिष्कार किया। इन शिक्षकों का कहना है कि मध्याह्न भोजन योजना के काम में लग जाने से बच्चों को पढ़ाने का उनका काम प्रभावित हो रहा है।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति शिवकीर्ति सिंह और न्यायमूर्ति विक्रम नाथ की खंडपीठ ने कल कहा था, ‘‘स्कूलों के शिक्षकों एवं प्रधानाध्यापकों का काम छात्रों को पढ़ाना है, न कि भोजन बनाने की प्रक्रिया की निगरानी करना।’’ खंडपीठ ने इन सवालों के बीच यह टिप्पणी की कि सरकारी स्कूलों में शिक्षणकर्मियों को मध्याह्न भोजन योजना के क्रियान्वयन के काम में शामिल करना चाहिए।

उच्च न्यायालय मेरठ स्थित उत्तर प्रदेश प्रधानाचार्य परिषद की ओर से दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी।

जनहित याचिका में स्कूलों के जिला निरीक्षक के 19 जून के उस आदेश को चुनौती दी गयी थी जिसमें मध्याह्न भोजन तैयार करने की जिम्मेदारी गैर-सरकारी संगठनों को देने की व्यवस्था खत्म कर दी गई थी और प्रधानाध्यापकों को निर्देश दिया गया था कि वे अपने-अपने स्कूल में अपनी निगरानी में खाना बनवाएंगे।

याचिका दायर करने वालों की दलील थी कि मेरठ में नई व्यवस्था से शिक्षकों के पढ़ाने का काम बाधित होता है। उनका यह भी कहना था कि पड़ोस के कई जिलों में मध्याह्न भोजन से जुड़े काम की जिम्मेदारी गैर-सरकारी संगठन ही पूरी कर रहे हैं।

याचिकाकर्ताओं की ओर से कही गई इन बातों पर हैरत जताते हुए न्यायालय ने कहा, ‘‘मध्याह्न भोजन बनाने जैसे किसी खास काम की जिम्मेदारी दिए जाने के मामले में पूरे राज्य में समानता होनी चाहिए।’’

न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार को निर्देश दिया कि वह मध्याह्न भोजन योजना के बाबत अपनी नीति पांच अगस्त को होने वाली अगली सुनवाई के दिन पेश करे।

उच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि अगले आदेश तक मेरठ में पिछली व्यवस्था यानी गैर-सरकारी संगठनों द्वारा मध्याह्न भोजन बनवाने का काम जारी रहेगा।

बहरहाल, बिहार में प्राथमिक स्कूलों के शिक्षकों ने अपनी पूर्व घोषणा के मुताबिक आज मध्याह्न भोजन से जुड़े कामों का बहिष्कार किया। शिक्षकों के इस कदम के बाबत राज्य सरकार ने कहा कि वह इस बारे में उच्चतम न्यायालय को सूचित करेगी क्योंकि उसी के निर्देश के मुताबिक योजना को लागू कराया जा रहा है।

बिहार प्राथमिक स्कूल शिक्षक संघ के अध्यक्ष ब्रजनंदन शर्मा ने कहा कि पूरे राज्य में करीब तीन लाख प्राथमिक स्कूल शिक्षकों ने मध्याह्न भोजन से जुड़े काम का बहिष्कार किया। संघ ने इस बहिष्कार की घोषणा 23 जुलाई को ही कर दी थी। केंद्र सरकार की यह महत्वाकांक्षी योजना राज्य के 70,200 स्कूलों में लागू की गयी है और इससे 1.30 करोड़ से ज्यादा छात्रों को फायदा हो रहा है।

शर्मा ने दोहराया कि मध्याह्न भोजन योजना से जुड़े काम करने पर बच्चों को पढ़ाने का काम बाधित होता है और अन्य लोगों द्वारा किए जा रहे भ्रष्टाचार की वजह से उनकी बदनामी भी होने लगी है।

उन्होंने कहा कि सरकार से बार-बार अनुरोध किया गया कि वह मध्याह्न भोजन योजना के काम से शिक्षकों को मुक्त कर दे और इस काम के लिए एक एजेंसी का गठन करे पर उनके इस अनुरोध की अनदेखी की गई। शर्मा ने कहा कि बार-बार की अनदेखी की वजह से संघ यह कदम उठाने को मजबूर हुआ है और जब तक सरकार योजना के लिए एक अलग एजेंसी नियुक्त नहीं करती, उस वक्त तक बहिष्कार जारी रहेगा।

बिहार सरकार के मानव संसाधन विकास विभाग के प्रधान सचिव अमरजीत सिन्हा ने प्राथमिक स्कूलों के शिक्षकों के फैसले को ‘गैर-जिम्मेदाराना’ करार देते हुए कहा कि स्थिति पर नजर रखी जा रही है और इस बारे में उच्चतम न्यायालय को सूचित किया जाएगा।

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सिन्हा ने बताया ‘‘उच्चतम न्यायालय के निर्देश पर योजना लागू करायी जा रही है, आप अचानक से काम का बहिष्कार कैसे कर सकते हैं?’’ प्रधान सचिव ने कहा कि उन्होंने शिक्षकों से अपील की है कि वे छात्रों के हित में अपना बहिष्कार वापस ले लें।