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This Article is From Jan 11, 2016

लेखकों को अभिव्यक्ति की पूरी आजादी होनी चाहिए : तसलीमा नसरीन

लेखकों को अभिव्यक्ति की पूरी आजादी होनी चाहिए : तसलीमा नसरीन
तसलीमा नसरीन (फाइल फोटो)
नई दिल्ली: भारत में निर्वासन में रह रही बांग्लादेशी लेखिका तसलीमा नसरीन ने कहा कि अगर लेखकों के लेखन से कुछ लोगों या समूहों की भावनाएं आहत होती हैं तब भी उन्हें अभिव्यक्ति की अबाधित आजादी मिलनी चाहिए।

तस्लीमा ने दिल्ली हाट में चल रहे दिल्ली साहित्योत्सव में ‘‘असहिष्णुता के युग का आगमन’’ विषय पर एक चर्चा में हिस्सा लेते हुए कहा, ‘‘मैं समझती हूं कि बावजूद इसके कि हमारी अभिव्यक्ति से कुछ लोग आहत हो सकते हैं, हमें अभिव्यक्ति की आजादी होनी चाहिए। अगर हम मुंह नहीं खोलेंगे तो समाज का विकास नहीं होगा। बेशक, हमें समाज को बेहतर बनाने के लिए नारीद्वेष, धार्मिक रूढ़िवाद और सभी किस्म की बुरी ताकतों के खिलाफ संघर्ष करना चाहिए।’’

लेखिका ने कहा, ‘‘जब राजा राम मोहन राय सती प्रथा के खिलाफ लड़ रहे थे तो लोगों की भावनाएं आहत हुई। जब ईश्वर चंद्र विद्यासागर बच्चियों को शिक्षित करने की कोशिश कर रहे थे तो अनेक नारीद्वेषियों की भावनाएं आहत हुईं। लेकिन अगर हम रूढ़िवाद की आलोचना करते हैं तो हो सकता है कि रूढ़िवादी भावनाएं आहत हों। तो क्या हमें अपना मुंह बंद रखना चाहिए?’’

पिछले साल स्याही के हमले का शिकार होने वाले पूर्व भाजपा विचारक सुधीन्द्र कुलकर्णी ने कहा कि जहां यह अहम है कि लेखक अभिव्यक्ति की अपनी आजादी का इस्तेमाल करने में सक्षम रहें, पूर्ण एवं अबाध आजादी कोई विकल्प नहीं है। कुलकर्णी ने कहा कि अभिव्यक्ति की इस तरह की आजादी का इस्तेमाल केवल जिम्मेदारी के साथ ही किया जा सकता है।

 

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