Tamil Nadu polls updates: तमिलनाडु के विधानसभा चुनाव में एमके स्टालिन की पार्टी द्रविड़ मुन्नेत्र कडगम (DMK) ने शानदार प्रदर्शन किया है. अब तक के रुझानों के अनुसार, डीएमके 133 सीटों पर बढ़त हासिल किए है जबकि सत्तारूढ़ एआईडीएमके को इस समय 100 सीटों की बढ़त हासिल है. राज्य की 234 विधानसभा सीटों पर चुनाव हुए हैं, इस लिहाज से डीएमके बहुमत के लिए जरूरी 118 के आंकड़े को हासिल कर चुकी है. डीएमके प्रमुख एमके स्टालिन सीएम पद के लिए प्रबल दावेदार माने जा रहे हैं. नजर डालते हैं उन पांच कारणों पर जो डीएमके के इस शानदार प्रदर्शन (रुझान के लिहाज से) के लिहाज से अहम रहे..
एआईडीएमके में अंदरूनी खींचतान
कद्दावर नेता और पूर्व सीएम जयराम जयललिता के निधन के बाद एआईए डीएमके में अंदरूनी खींचतान चलती रही. मौजूदा सीएम पलानीस्वामी और ओ. पनीरसेल्वम के बीच वर्चस्व की लड़ाई लंबे समय तक चली. जयललिता के निधन के बाद पनीरसेल्वम को सीएम बनाया गया लेकिन बाद में सुलह के फार्मूले के तहत सत्ता पलानीस्वामी के पास आई. स्वाभाविक रूप से इस अंदरूनी खींचतान का असर पार्टी के प्रदर्शन और कार्यकर्ताओं के मनोबल पर पड़ा.
सत्ता विरोधी रुझान
तमिलनाडु और केरल जैसे दक्षिणी राज्यों में आमतौर पर यह परंपरा रही है कि कोई पार्टी या गठबंधन बारी-बारी से सत्ता में आता रहा है. पिछले चुनाव में जयललिता ने इस परंपरा को तोड़ते हुए दूसरी बार एआईएडीएमके को जीत दिलाते हुए सत्ता की बागडोर संभाली थी. 2011 के विधानसभा चुनावों के बाद 2016 के विधानसभा चुनावों में भी एआईएडीएमके सत्ता में आई. पार्टी 10 साल से सत्ता में है ऐसे में स्वाभाविक रूप से एंटी इनकमबेंसी (सत्ता विरोधी रुझान) पार्टी को भारी पड़ा.
प्रभावी नेता का न होना
जयराम जयललिता का करिश्माई व्यक्तित्व था और महिलाओं के बीच उनकी गजब की अपील थी. उनके निधन के बाद एआईएडीएमके में ऐसे नेता के लिहाज से बड़ा शून्य पैदा हो गया जो अपनी लोकप्रियता से वोटरों को आकर्षित कर सके. पलानीस्वामी और पनीरसेल्वम दोनों, बेशक इस समय पार्टी के बड़े नेता हैं, लेकिन लोकप्रियता के मामले में वे जयललिता के आसपास भी नहीं ठहरते. दूसरी ओर, इनके मुकाबले डीएमके प्रमुख एमके स्टालिन ज्यादा लोकप्रिय हैं..
करुणानिधि के परिवार के खिलाफ IT रेड
चुनाव के दौरान ही तमिलनाडु के बेहद लोकप्रिय एम करुणानिधि के परिवार (स्टालिन की बेटी और दामाद के ठिकानों) पर इनकम टेक्स की रेड पड़ी. आयकर विभाग की इस कार्रवाई के भले ही जायज कारण रहे हों लेकिनडीएमके ने इसे केंद्र सरकार की बदले की कार्रवाई के रूप में पेश किया. वह लोगों के बीच यह बात पहुंचाने में सफल रही कि केंद्र सरकार ने बदले की कार्रवाई के तहत करुणानिधि के परिवार को टारगेट किया. इसके कारण से भी कई लोगों ने भावनात्मक रूप से डीएमके के पक्ष में वोट किया.
डीएमके के लोकलुभावन चुनावी वादे
यह कहा जा सकता है कि डीएमके ने चुनाव को अच्छे तरीके से मैनेज किया. उसके मैनिफेस्टो के वादों ने भी वोटरों को लुभाया. पार्टी ने नौकरियों में स्थानीय लोगों को 75% आरक्षण का वादा करके जहां युवाओं को आकर्षित किया, वहीं बसों में फ्री पास और एक साल का मातृत्व अवकाश का वादा कर वह महिलाओं को अपने पक्ष में करने में सफल रही. राशनकार्ड रखने वालों को 4000 रुपये की वित्तीय मदद और एलपीजी सिलेंडर पर 100 रुपये की सब्सिडी के वादे में भी 'अपना काम' बखूबी किया.
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