भारतीय सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
सिनेमाघरों में राष्ट्रगान को अनिवार्य करने के फ़ैसले के एक साल बाद इस मामले में नया मोड़ आ गया है. अब सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र से कहा है कि वो इस मामले में खुद फ़ैसला करे, हर काम कोर्ट पर नहीं थोपा जा सकता. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को कहा कि सिनेमाघरों व अन्य स्थानों पर राष्ट्रगान बजाना अनिवार्य हो या नहीं ये वो तय करे. इस संबंध में कोई भी सर्कुलर जारी किया जाए तो सुप्रीम कोर्ट के अंतरिम आदेश से सरकार प्रभावित ना हो. सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि ये भी देखना चाहिए कि सिनेमाघर में लोग मनोरंजन के लिए जाते हैं. ऐसे में देशभक्ति का क्या पैमाना हो, इसके लिए कोई रेखा तय होनी चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस तरह के नोटिफिकेशन या नियम का मामला संसद का है. ये काम कोर्ट पर क्यों थोपा जाए. सुप्रीम कोर्ट 9 जनवरी को मामले में अगली सुनवाई करेगा.
फिलहाल सुप्रीम कोर्ट का अंतरिम आदेश लागू रहेगा जिसमें सिनेमाघरों में राष्ट्रगान बजाना अनिवार्य है. जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि लोग सिनेमाघर सिर्फ मनोरंजन के लिए जाते हैं. हम क्यों देशभक्ति को अपनी बांहों में रखें. ये सब मामले मनोरंजन के हैं. फ्लैग कोड काफी नहीं है, सरकार एग्जीक्यूटिव आदेश जारी करने चाहिए. कोर्ट क्यों इसका बोझ उठाए. लोग शॉर्टस पहनकर सिनेमा जाते हैं, क्या आप कह सकते हैं कि वो राष्ट्रगान का सम्मान नहीं करते. आप ये क्यों मानकर चलते हैं कि जो राष्ट्रगान के लिए खड़ा नहीं होता वो देशभक्त नहीं होते. सभी जो नहीं गाते या खड़े नहीं होते वो भी कम देशभक्त नहीं हैं. इस दौरान इस आदेश का विरोध देखते हुए चीफ जस्टिस ने कहा कि हम अपने आदेश में संशोधन करते हुए shall को may कर देंगे.
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लेकिन AG के के वेणुगोपाल ने कहा कि ये केंद्र सरकार का अधिकारक्षेत्र है और केंद्र पर इसे छोड़ दिया जाए. AG ने कहा कि देश में विभिन्न धर्मों के लोग हैं और क्षेत्रीय और जातियों में विविधता है कि जब लोग सिनेमाघर से बाहर आएं तो वो सब भारतीय होंगे.
सिनेमाघरों में राष्ट्रगान के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की. पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश पर रोक लगाने और उसे वापस लेने से इनकार कर दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि किसी सिनेमा, न्यूजरील या डॉक्यूमेंटरी में राष्ट्रगान का इस्तेमाल किया गया है तो लोगों को खड़े होने की जरूरत नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने ये भी साफ किया कि सिनेमाघरों में राष्ट्रगान के वक्त लोगों को खड़ा होना पड़ेगा लेकिन ये जरूरी नहीं कि वे राष्ट्रगान गाएं.
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का समर्थन किया. मामले में कोर्ट में सुनवाई के दौरान तत्कालीन अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कहा था कि ये सवाल देश के नागरिकों की देशभक्ति की भावना दिखाने का है. जब इसे लेकर कोई कानून नहीं है तो सुप्रीम कोर्ट का आदेश अहम हो जाता है. राष्ट्रगान को सिनेमाघरों के अलावा सभी स्कूलों में जरूरी किया जाए क्योंकि देशभक्ति की भावना की शुरुआत बच्चों से की जानी चाहिए.
VIDEO: सिनेमाहॉल में राष्ट्रगान बजाना अनिवार्य होगा : सुप्रीम कोर्ट
वहीं, सुप्रीम कोर्ट में इस आदेश को लेकर दाखिल याचिकाओं में कहा गया है कि इस आदेश को वापस लें क्योंकि ये आदेश अधिकारों का हनन करते हैं. कोर्ट को सिनेमा जैसे इंटरटेनमेंट जगहों पर ये लागू नहीं करना चाहिए.
पिछले साल 30 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रगान, यानी 'जन गण मन' से जुड़े एक अहम अंतरिम आदेश में कहा था कि देशभर के सभी सिनेमाघरों में फिल्म शुरू होने से पहले राष्ट्रगान बजेगा. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि राष्ट्रगान बजते समय सिनेमाहॉल के पर्दे पर राष्ट्रीय ध्वज दिखाया जाना भी अनिवार्य होगा, तथा सिनेमाघर में मौजूद सभी लोगों को राष्ट्रगान के सम्मान में खड़ा होना होगा.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राष्ट्रगान राष्ट्रीय पहचान, राष्ट्रीय एकता और संवैधानिक देशभक्ति से जुड़ा है. कोर्ट के आदेश के मुताबिक, ध्यान रखा जाए कि किसी भी व्यावसायिक हित में राष्ट्रगान का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता. इसके अलावा किसी भी तरह की गतिविधि में ड्रामा क्रिएट करने के लिए भी राष्ट्रगान का इस्तेमाल नहीं होगा, तथा राष्ट्रगान को वैरायटी सॉन्ग के तौर पर भी नहीं गाया जाएगा.
दरअसल, श्याम नारायण चौकसे की याचिका में कहा गया था कि किसी भी व्यावसायिक गतिविधि के लिए राष्ट्रगान के चलन पर रोक लगाई जानी चाहिए, और एंटरटेनमेंट शो में ड्रामा क्रिएट करने के लिए राष्ट्रगान को इस्तेमाल न किया जाए. याचिका में यह भी कहा गया था कि एक बार शुरू होने पर राष्ट्रगान को अंत तक गाया जाना चाहिए, और बीच में बंद नहीं किया जाना चाहिए.
याचिका में कोर्ट से यह आदेश देने का आग्रह भी किया गया था कि राष्ट्रगान को ऐसे लोगों के बीच न गाया जाए, जो इसे नहीं समझते. इसके अतिरिक्त राष्ट्रगान की धुन बदलकर किसी और तरीके से गाने की इजाज़त नहीं मिलनी चाहिए. याचिका में कहा गया कि इस तरह के मामलों में राष्ट्रगान नियमों का उल्लंघन है और यह वर्ष 1971 के कानून के खिलाफ है. इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जब लोग राष्ट्रगान और राष्ट्रीय ध्वज का आदर करेंगे तो इससे लोगों के मन में देशभक्ति और राष्ट्रवाद की भावना जगेगी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ये लोगों की फंडामेंटल ड्यूटी है कि वह संविधान का आदर करें और उसका पालन करें और फिर संवैधानिक संस्थानों, राष्ट्रगान और राष्ट्रीय ध्वज का सम्मान करें.
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस दीपक मिश्रा की बेंच ने ये भी कहा था कि ये बात साफ है कि सभी नागरिकों का दायित्व है कि वह संविधान के आदर्श को मानें. अदालत ने कहा था कि समय की मांग है कि देश के नागरिक महसूस करें कि वह देश में रहते हैं और उनकी ड्यूटी है कि वह राष्ट्रगान का सम्मान करें जो कि संवैधानिक देशभक्ति और राष्ट्रीयता का प्रतीक है. व्यक्तिगत सोच के नाम पर इस मामले में आजादी नहीं दी जा सकती. यहीं किसी व्यक्तिगत सोच की जगह नहीं है. संवैधानिक आदर्श के तहत ये स्वीकार्य नहीं है.
फिलहाल सुप्रीम कोर्ट का अंतरिम आदेश लागू रहेगा जिसमें सिनेमाघरों में राष्ट्रगान बजाना अनिवार्य है. जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि लोग सिनेमाघर सिर्फ मनोरंजन के लिए जाते हैं. हम क्यों देशभक्ति को अपनी बांहों में रखें. ये सब मामले मनोरंजन के हैं. फ्लैग कोड काफी नहीं है, सरकार एग्जीक्यूटिव आदेश जारी करने चाहिए. कोर्ट क्यों इसका बोझ उठाए. लोग शॉर्टस पहनकर सिनेमा जाते हैं, क्या आप कह सकते हैं कि वो राष्ट्रगान का सम्मान नहीं करते. आप ये क्यों मानकर चलते हैं कि जो राष्ट्रगान के लिए खड़ा नहीं होता वो देशभक्त नहीं होते. सभी जो नहीं गाते या खड़े नहीं होते वो भी कम देशभक्त नहीं हैं. इस दौरान इस आदेश का विरोध देखते हुए चीफ जस्टिस ने कहा कि हम अपने आदेश में संशोधन करते हुए shall को may कर देंगे.
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लेकिन AG के के वेणुगोपाल ने कहा कि ये केंद्र सरकार का अधिकारक्षेत्र है और केंद्र पर इसे छोड़ दिया जाए. AG ने कहा कि देश में विभिन्न धर्मों के लोग हैं और क्षेत्रीय और जातियों में विविधता है कि जब लोग सिनेमाघर से बाहर आएं तो वो सब भारतीय होंगे.
सिनेमाघरों में राष्ट्रगान के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की. पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश पर रोक लगाने और उसे वापस लेने से इनकार कर दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि किसी सिनेमा, न्यूजरील या डॉक्यूमेंटरी में राष्ट्रगान का इस्तेमाल किया गया है तो लोगों को खड़े होने की जरूरत नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने ये भी साफ किया कि सिनेमाघरों में राष्ट्रगान के वक्त लोगों को खड़ा होना पड़ेगा लेकिन ये जरूरी नहीं कि वे राष्ट्रगान गाएं.
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का समर्थन किया. मामले में कोर्ट में सुनवाई के दौरान तत्कालीन अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कहा था कि ये सवाल देश के नागरिकों की देशभक्ति की भावना दिखाने का है. जब इसे लेकर कोई कानून नहीं है तो सुप्रीम कोर्ट का आदेश अहम हो जाता है. राष्ट्रगान को सिनेमाघरों के अलावा सभी स्कूलों में जरूरी किया जाए क्योंकि देशभक्ति की भावना की शुरुआत बच्चों से की जानी चाहिए.
VIDEO: सिनेमाहॉल में राष्ट्रगान बजाना अनिवार्य होगा : सुप्रीम कोर्ट
वहीं, सुप्रीम कोर्ट में इस आदेश को लेकर दाखिल याचिकाओं में कहा गया है कि इस आदेश को वापस लें क्योंकि ये आदेश अधिकारों का हनन करते हैं. कोर्ट को सिनेमा जैसे इंटरटेनमेंट जगहों पर ये लागू नहीं करना चाहिए.
पिछले साल 30 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रगान, यानी 'जन गण मन' से जुड़े एक अहम अंतरिम आदेश में कहा था कि देशभर के सभी सिनेमाघरों में फिल्म शुरू होने से पहले राष्ट्रगान बजेगा. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि राष्ट्रगान बजते समय सिनेमाहॉल के पर्दे पर राष्ट्रीय ध्वज दिखाया जाना भी अनिवार्य होगा, तथा सिनेमाघर में मौजूद सभी लोगों को राष्ट्रगान के सम्मान में खड़ा होना होगा.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राष्ट्रगान राष्ट्रीय पहचान, राष्ट्रीय एकता और संवैधानिक देशभक्ति से जुड़ा है. कोर्ट के आदेश के मुताबिक, ध्यान रखा जाए कि किसी भी व्यावसायिक हित में राष्ट्रगान का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता. इसके अलावा किसी भी तरह की गतिविधि में ड्रामा क्रिएट करने के लिए भी राष्ट्रगान का इस्तेमाल नहीं होगा, तथा राष्ट्रगान को वैरायटी सॉन्ग के तौर पर भी नहीं गाया जाएगा.
दरअसल, श्याम नारायण चौकसे की याचिका में कहा गया था कि किसी भी व्यावसायिक गतिविधि के लिए राष्ट्रगान के चलन पर रोक लगाई जानी चाहिए, और एंटरटेनमेंट शो में ड्रामा क्रिएट करने के लिए राष्ट्रगान को इस्तेमाल न किया जाए. याचिका में यह भी कहा गया था कि एक बार शुरू होने पर राष्ट्रगान को अंत तक गाया जाना चाहिए, और बीच में बंद नहीं किया जाना चाहिए.
याचिका में कोर्ट से यह आदेश देने का आग्रह भी किया गया था कि राष्ट्रगान को ऐसे लोगों के बीच न गाया जाए, जो इसे नहीं समझते. इसके अतिरिक्त राष्ट्रगान की धुन बदलकर किसी और तरीके से गाने की इजाज़त नहीं मिलनी चाहिए. याचिका में कहा गया कि इस तरह के मामलों में राष्ट्रगान नियमों का उल्लंघन है और यह वर्ष 1971 के कानून के खिलाफ है. इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जब लोग राष्ट्रगान और राष्ट्रीय ध्वज का आदर करेंगे तो इससे लोगों के मन में देशभक्ति और राष्ट्रवाद की भावना जगेगी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ये लोगों की फंडामेंटल ड्यूटी है कि वह संविधान का आदर करें और उसका पालन करें और फिर संवैधानिक संस्थानों, राष्ट्रगान और राष्ट्रीय ध्वज का सम्मान करें.
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस दीपक मिश्रा की बेंच ने ये भी कहा था कि ये बात साफ है कि सभी नागरिकों का दायित्व है कि वह संविधान के आदर्श को मानें. अदालत ने कहा था कि समय की मांग है कि देश के नागरिक महसूस करें कि वह देश में रहते हैं और उनकी ड्यूटी है कि वह राष्ट्रगान का सम्मान करें जो कि संवैधानिक देशभक्ति और राष्ट्रीयता का प्रतीक है. व्यक्तिगत सोच के नाम पर इस मामले में आजादी नहीं दी जा सकती. यहीं किसी व्यक्तिगत सोच की जगह नहीं है. संवैधानिक आदर्श के तहत ये स्वीकार्य नहीं है.
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